महाराष्ट्र के पुणे में एक हफ्ते के भीतर ही गुलेन बैरी सिंड्रोम (GBS) नामक बीमारी ने 100 से ज्यादा लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है. 16 मरीज वेंटिलेटर पर हैं. वहीं, सोलापुर में GBS से एक मरीज की मौत की भी खबर सामने आई है. हालांकि, इसे लेकर अभी आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ित को पुणे में संक्रमण हुआ था और बाद में उसने सोलापुर की यात्रा की थी. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि आखिर गुलेन बैरी सिंड्रोम क्या है. ये कितना खतरनाक है, इसके लक्षण क्या हैं और इससे बचने के तरीके क्या हैं.
क्या है गुलेन बैरी सिंड्रोम
यह एक ऑटोइम्यून न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है. इस बीमारी में हमारा इम्यून सिस्टम अपनी ही नर्व्स पर अटैक करता है. इसके कारण लोगों को उठने-बैठने और चलने तक में समस्या होती है. यहां तक की लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है. लकवा की समस्या भी इस बीमारी का लक्षण है.
दरअसल, हमारा नर्वस सिस्टम दो हिस्सों में होता है. पहला हिस्सा सेंट्रल नर्वस सिस्टम कहलाता है, जिसमें रीढ़ की हड्डी और ब्रेन वाला पार्ट होता है, जबकि दूसरे हिस्से में पेरिफेरल नर्वस सिस्टम आता है, जिसमें पूरे शरीर की अन्य सभी नर्व्स होती हैं. गुलेन बैरी सिंड्रोम में इम्यून सिस्टम नर्वस सिस्टम के दूसरे हिस्से यानी पेरिफेरल नर्वस सिस्टम पर ही हमला करता है.
इस बीमारी ने ली थी अमेरिका के राष्ट्रपति की जान
इस बीमारी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विश्व स्तर पर इससे प्रभावित लोगों में से करीब 7.5% लोगों की मौत हो जाती है. गुलेन बैरी सिंड्रोम एक रेयर बीमारी है, क्योंकि हर साल एक लाख लोगों में एक या दो लोगों में ये बीमारी देखने को मिलती है. यह बीमारी अमेरिका के राष्ट्रपति रहे फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट की भी मौत का कारण बनी थी. दरअसल, रूजवेल्ट को इस बीमारी के चलते लकवा हुआ था. उनके कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था. लेकिन उस समय कहा गया कि रूजवेल्ट की मौत पोलियो से हुई है. लेकिन बाद में रिसर्च से सामने आया कि उनकी मौत का कारण गुलेन बैरी सिंड्रोम ही था.
इस सिंड्रोम का नाम फ्रांसीसी न्यूरोलॉजिस्ट जॉर्जेस गुलेन और जीन एलेक्जेंडर बैरी के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने फ्रांसीसी डॉक्टर आंद्रे स्ट्रोहल के साथ मिलकर 1916 में इस बीमारी के बारे में काफी रिसर्च किया.
पेरू में लगानी पड़ी थी इमरजेंसी
रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में पेरू में गुलेन बैरी सिंड्रोम ने कहर बरपाया था. इससे निपटने के लिए वहां की सरकार को 90 दिनों के लिए हेल्थ इमरजेंसी लगानी पड़ी थी.
क्या है इसका लक्षण
गुलेन बैरी सिंड्रोम की शुरुआत आमतौर पर हाथों और पैरों में झुनझुनी और कमजोरी से होती है. ये लक्षण तेजी से फैल सकते हैं और लकवे में बदल सकते हैं. इसके शुरुआती लक्षण ये हो सकते हैं…
-हाथों, पैरों, टखनों या कलाई में झुनझुनी.
-पैरों में कमजोरी.
-चलने में कमजोरी, सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत.
– बोलने, चबाने या खाना निगलने में दिक्कत.
– आंखों की डबल विजन या आंखों को हिलाने में दिक्कत.
– तेज दर्द, खासतौर पर मांसपेशियों में तेज दर्द.
– पेशाब और मल त्याग में समस्या.
– सांस लेने में कठिनाई.
गुलेन बैरी सिंड्रोम के लक्षण तेजी से बढ़ते हैं, इससे पैरालिसिस (लकवा) की दिक्कत हो सकती है. यह स्थिति दो हफ्तों के भीतर अपने चरम पर पहुंच सकती है.
कितने तरह का है ये सिंड्रोम
1.एक्यूट इंफ्लेमेटरी डेमायलीनिएटिंग पोलिरैडिकुलोन्यूरोपैथी (AIDP): यह गुलेन बैरी सिंड्रोम का सबसे सामान्य रूप है, जिसका असर उत्तर अमेरिका और यूरोप में सामान्यता देखने को मिलता है. इसमें नर्वस सिस्टम की परत (मायलिन) में सूजन होती है. इस प्रकार में सबसे सामान्य लक्षण पैरों से ऊपर की ओर फैलने वाली मांसपेशियों की कमजोरी होती है.
2. मिलर फिशर सिंड्रोम (MFS): इसका असर सबसे पहले आंखों में देखने को मिलता है. आंखों में जलन और दर्द होता है. यह सिंड्रोम मुख्य रूप से एशिया में अधिक पाया जाता है.
3. एक्यूट मोटर एक्सोनल न्यूरोपैथी और एक्सोनल न्यूरोपैथी: ये दोनों प्रकार चीन, जापान और मेक्सिको में अधिक आम हैं, लेकिन उत्तर अमेरिका में इनकी घटनाएं कम होती हैं.
क्या हैं इसके कारण
गुलेन बैरी सिंड्रोम क्यों होता है इसके बारे में अब भी ज्यादा स्पष्टता नहीं है. लेकिन यह आमतौर पर किसी संक्रमण के बाद देखने को मिलता है. देखा गया है कि गुलेन बैरी सिंड्रोम अक्सर सांस या पाचन तंत्र के संक्रमण के बाद असर दिखाता है.कभी-कभी ये सिंड्रोम किसी गंभीर चोट या सर्जरी के बाद सामने आता है.
क्या हैं इससे बचने के उपाय
गुलेन बैरी सिंड्रोम का कोई सटीक इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को कम करने और रिकवरी की प्रक्रिया को तेज करने के लिए इलाज होता है.
1. प्लाज्मा एक्सचेंजः इसमें ब्लड की प्लाज्मा को बदलने की प्रक्रिया शामिल होती है, जिससे शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है और नर्वस सिस्टम को राहत मिलती है.
2 इम्यूनोग्लोबुलिन थेरेपीः इसमें इम्यून सिस्टम के खिलाफ काम करने वाले एंटीबॉडी की एक खुराक दी जाती है, जो तंत्रिका कोशिकाओं को अधिक नुकसान से बचाती है. इसके अलावा, पेन किलर और फिजियोथेरेपी की भी सलाह दी जाती है.