उत्तराखंड चारधाम यात्रा शुरू हो चुकी है. पहले गंगोत्री- यमुनोत्री के कपाट खुले, फिर केदारनाथ धाम और अब रविवार को बदरीनाथ धाम के भी कपाट खुल गए हैं. बदरीनाथ मंदिर के कपाट में लगे ताले को तीन चाबियों से खोला गया. इसमें से एक चाबी टिहरी राजपरिवार के प्रतिनिधि ने लगाई. वहीं दूसरी और तीसरी चाबी हक हकूकधारी बामणी गांव के भंडारी थोक और मेहता थोक ने लगाई.
इसके बाद रावल ने सबसे पहले मंदिर में प्रवेश किया और भगवान बदरी विशाल से अनुमति लेकर उनका श्रृंगार किया गया. इस दौरान देश भर से हजारों की संख्या में पहुंचे भक्तों ने भगवान के जयकारे लगाए और दर्शन पूजन किया. जानकारी के मुताबिक टिहरी राज परिवार ने मंदिर के कपाट खोलने के लिए जिस चाबी का इस्तेमाल किया, वह चाबी बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के पास रहती है.
वहीं दूसरी चाबी बदरीनाथ मंदिर के हक हकूकधारी बामणी गांव के भंडारी थोक के पास और तीसरी चाबी हक हकूक धारी बामणी गांव के मेहता थोक के पास रहती है.बता दें कि 28 अप्रैल को ही गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुल गए थे. इसी प्रकार केदारनाथ धाम के कपाट भी पूरे विधि विधान के साथ 2 मई को खोले गए.
हजारों साल पुरानी परंपरा
परंपरा के मुताबिक बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने पर मंदिर के गर्भगृह में सबसे पहले बदरीनाथ के रावल ने प्रवेश किया. उन्होंने भगवान बदरी विशाल के सामने दंडवत प्रणाम किया और फिर उनकी अनुमति से उन्हें ओढ़ाए गए ऊनी कंबल उतार दिया. यह कंबल कपाट बंद होने से पहले भगवान को ओढ़ाए गए थे. भगवान के विग्रह से उतारे गए इस घृत कंबल का एक-एक रेशा भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. मंदिर के पूर्व धर्माधिकारी पंडित भुवन उनियाल के मुताबिक यह परंपरा हजारों साल पुरानी है.
#WATCH | Uttarakhand: The portals of Badrinath Dham opened amid melodious tunes of the Army band and chants of Jai Badri Vishal by the devotees pic.twitter.com/BHzt7gWx4V
— ANI (@ANI) May 4, 2025
25 कुंटल फूलों से सजावट
मंदिर के कपाट खुलने से पहले पूरे परिसर को 25 कुंटल फूलों से सजाया गया. इसके अलावा तमाम तरह की आकर्षक लाइटें लगाई गईं. मंदिर में फूलों की सजावट का काम बीते 20 साल से एक ही परिवार के लोग करते आ रहे हैं. बदरीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी पंडित राधाकृष्ण थपलियाल के मुताबिक जब तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, उस समय में देवर्षि नारद भगवान के मुख्य पुजारी होते हैं. वहीं कपाट खुलने के बाद यह जिम्मेदारी केरल प्रांत के नम्बूदरी ब्राह्मण रावल मुख्य पुजारी हो जाते हैं.