मध्य प्रदेश के बैतूल जिले से धर्मांतरण का हैरान करने वाला मामला सामने आया है. यहां धर्मांतरण के विवाद के चलते एक महिला का अंतिम संस्कार रोक दिया गया. साथ ही महिला के अंतिम संस्कार में शामिल होने गांव का कोई भी व्यक्ति नहीं पहुंचा. यहां तक की गांव के लोगों ने महिला के शव को श्मशान दफनाने भी नहीं दिया. लोगों का कहना था कि मृतक महिला के परिवार ने समाज से अलग होकर ईसाई धर्म अपना लिया था.
ममला जिले के आमला ब्लॉक के कन्नड़गांव का है. यहां शनिवार धर्मांतरण के विवाद के चलते महिला का अंतिम संस्कार रुक गया. जानकारी के मुताबिक, गांव के रहने वाले राजाराम परते की मां ललिता परते का शनिवार को निधन हो गया. उनकी उम्र करीब 50 साल थी. राजाराम को उम्मीद थी कि इस दुखद समय में गांव के लोग उसके साथ खड़े होंगे, लेकिन गांव के लोगों ने उनसे या मुंह मोड़ लिया.
शव को श्मशान घाट में दफनाने से रोका
ग्रामीणों का कहना है कि ललिता का परिवार कई साल पहले ईसाई धर्म अपना चुका है. वे आदिवासी समाज के रीति रिवाजों को नहीं मानते. उसका अदिवासी समाज से कोई लेना देना नहीं है तो ऐसे में वे उसके उसके घर क्यों ही जाएं. गांव वाले उससे इतना नाराज थे कि उन्होंने मृतका के शव को श्मशान घाट में दफनाने तक नहीं दिया.
ऐसे सुलझा विवाद
मामला तब जाकर शांत हुआ, जब मृतका के परिवार ने गांव की पंचायत के सामने माफी मांगी. साथ में उन लोगों ने गांव के देवी-देवताओं की कसम ली और कहा कि वे फिर से आदिवासी समाज और परंपराओं को अपनाएंगे और फिर से कभी दूसरे धर्म को नहीं अपनाएंगे. इसके बाद गांव के लोगों ने मृतका का अंतिम संस्कार गांव के श्मशान घाट में करने का इजाजत दिया.
मामले में जब मृतका के परिवार ने आदिवासी समाज को अपनाया लिया तो गांव के लोग मान गए. इसके बाद गांव के बड़े बुजुर्ग और पंचायत की मौजूदगी में देर रात महिला का अंतिम संस्कार किया गया. अंतिम संस्कार आदिवासी समाज के रीति-रिवाजों से संपन्न हुआ. इस गांव में करीब 70 फीसदी लोग आदिवासी समाज के हैं.