बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में चाइल्ड वेलफेयर कमिटी (सीडब्ल्यूसी) को निर्देश दिया है कि वे एक 15 वर्षीय नाबालिग लड़की के माता-पिता द्वारा दायर की गई अभिरक्षा (कस्टडी) याचिकाओं पर फैसला लें. इस लड़की को मिरा भयंदर वसई विरार पुलिस की मानव तस्करी विरोधी इकाई ने 28 मार्च को बचाया था. लड़की को एक नकली ग्राहक भेजकर बड़े खतरे से बाहर निकाला गया था.
ठाणे सेशन्स कोर्ट ने लड़की को एक गैर-सरकारी संगठन, रेस्क्यू फाउंडेशन की अभिरक्षा में रखा था. इस आदेश पर लड़की के पिता ने 17 मई को अभिरक्षा की याचिका दाखिल की, जिसे स्वीकार किया गया, लेकिन, इस आदेश को एनजीओ ने वकील एश्ले कुशर के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी.
पिता पर लड़की को वेश्यावृत्ति धकेलने का आरोप
एनजीओ ने आरोप लगाया कि पिता ने ही लड़की को वेश्यावृत्ति में धकेला था. उन्होंने अनुरोध किया कि सेशन्स कोर्ट का आदेश गैरकानूनी है और यह सीडब्ल्यूसी के अधिकार का उल्लंघन भी है. सीडब्ल्यूसी के लिए पेश हुईं वकील स्वाति दुबे ने कहा कि सीडब्ल्यूसी लड़की की मां द्वारा दायर आवेदन पर पहले से विचार कर रही है और अगर पिता आवेदन करेंगे, तो वे मामले की गुणवत्ता के आधार पर फैसले लेंगे.
हाईकोर्ट ने सेशन्स कोर्ट के आदेश को खारिज किया
जस्टिस शिवकुमार डिजे की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की उन दिशानिर्देशों का हवाला दिया जिनमें कहा गया है कि जुवेनाइल (पीड़ित) को तभी माता-पिता/अभिभावक की देखभाल और अभिरक्षा में छोड़ा जाना चाहिए जब सीडब्ल्यूसी द्वारा उसे इस लायक पाया गया हो. मसलन, हाईकोर्ट ने सेशन्स कोर्ट के 17 मई के आदेश को खारिज कर दिया और सीडब्ल्यूसी को फैसले लेने का निर्देश दिया है.
गौरतलब है कि मिरा भयंदर वसई विरार पुलिस ने इम्मोरल ट्रैफिक (प्रीवेंशन) एक्ट (आईटीपीए) के तहत कार्रवाई की थी. लड़की के बारे में जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम ने एक नकली ग्राहक भेजा और फिर लड़की को बड़े खतरे से बचाया था. अब उसके माता-पिता उसकी कस्टडी चाहते हैं.