सरकारी लापरवाही की हद: अधिकारियों की वजह से नाबालिग के साथ दोबारा दुष्कर्म, 10 पर केस दर्ज

पन्ना : जिले में बाल कल्याण समिति (CWC) के गलत निर्णय और अन्य जिम्मेदार संस्थाओं की लापरवाही के कारण एक नाबालिग लड़की को दोबारा दुष्कर्म का शिकार होना पड़ा. इस मामले में बाल कल्याण समिति, वन स्टॉप सेंटर और महिला एवं बाल विकास विभाग की बड़ी लापरवाही उजागर हुई है. चौंकाने वाली बात यह है कि पीड़िता का अब तक मेडिकल भी नहीं हो सका है और जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं.

 

लवकुशनगर (छतरपुर) एसडीओपी नवीन दुबे ने बताया कि जांच में स्पष्ट हुआ कि जिला कार्यक्रम अधिकारी और वन स्टॉप सेंटर के कर्मचारियों ने मामले को दबाने का प्रयास किया. पुलिस ने बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष, पांच सदस्य, जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी, वन स्टॉप सेंटर की प्रशासक, काउंसलर, केस वर्कर और एक अन्य महिला समेत कुल 10 लोगों के खिलाफ पॉक्सो एक्ट सहित विभिन्न धाराओं में FIR दर्ज की है.

 

समिति के सदस्य आशीष बोस को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि महिला एवं बाल विकास अधिकारी अवधेश कुमार सिंह को नोटिस जारी किया गया है. शेष आरोपी फरार हैं.

मामला कैसे शुरू हुआ

16 जनवरी 2025 को पवई क्षेत्र की एक किशोरी स्कूल जाते समय लापता हो गई थी. बाद में पता चला कि उसका 22 वर्षीय रिश्तेदार उसे बहला-फुसलाकर ले गया. 17 फरवरी को पुलिस ने दोनों को गुरुग्राम से बरामद किया और आरोपी को जेल भेज दिया. इसके बाद लड़की को CWC के समक्ष पेश किया गया. परिवार ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उसे वन स्टॉप सेंटर भेजा गया.

करीब एक महीने बाद आरोपी का भाई-भाभी लड़की को लेने पहुंचे. 29 मार्च को बाल कल्याण समिति के आदेश पर वन स्टॉप सेंटर ने लड़की को आरोपी के परिवार को सौंप दिया। कुछ समय बाद जब आरोपी जमानत पर बाहर आया तो लड़की फिर से शोषण का शिकार हुई.

जनसुनवाई में मामला खुला

पीड़िता के भाई ने कलेक्टर जनसुनवाई में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद जांच बैठाई गई। 29 अप्रैल को लड़की को दोबारा वन स्टॉप सेंटर लाया गया, जहां उसने काउंसलिंग में कई बार दुष्कर्म होने की बात कबूल की. हालांकि उसने मेडिकल परीक्षण से इंकार कर दिया.

आरोपियों की भूमिका

मामले में बाल कल्याण समिति की सदस्य अंजली भदौरिया पर भी आरोप हैं। उनके पति योगेंद्र भदौरिया ने सफाई देते हुए कहा कि लड़की को उसकी सहमति और परिवार की स्थिति को देखते हुए आरोपी की भाभी के हवाले किया गया था. उनका कहना है कि पुलिस ने लड़की को नाबालिग बताकर पॉक्सो लगाया, जबकि आधार और पैन कार्ड के अनुसार वह बालिग है.

संस्थाओं पर सवाल

पूरे मामले में बाल कल्याण समिति, वन स्टॉप सेंटर और महिला बाल विकास विभाग की भूमिका गंभीर सवाल खड़े करती है. जिन संस्थाओं पर नाबालिगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी, उन्हीं के फैसलों ने पीड़िता को दोबारा अपराध का शिकार बना दिया. पुलिस ने मामले में जीरो पर केस दर्ज कर डायरी छतरपुर के जुझारनगर थाने को भेज दी है.

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