दमोह : जिले की ऐतिहासिक धरोहरों में शुमार दमयंती संग्रहालय किला इन दिनों बदहाली और प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार बना हुआ है.कभी जिले के गौरव का प्रतीक रहा यह संग्रहालय अब जर्जर दीवारों, उखड़ते प्लास्टर और टूटती ईंटों के बीच अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद कर रहा है.
दीवारें जर्जर, संरक्षण नदारद
किले की बाहरी और आंतरिक दीवारें कई जगह से टूट चुकी हैं.प्लास्टर उखड़ चुका है और ईंटें बाहर झांकने लगी हैं.कई वर्षों से इसकी रंगाई-पुताई तक नहीं कराई गई, जिससे इसका स्थापत्य सौंदर्य भी क्षतिग्रस्त हो रहा है.गर्मियों में स्थिति स्थिर नजर आ सकती है, लेकिन जैसे ही बरसात दस्तक देगी, दीवारों में सीलन और रिसाव की समस्या बढ़ सकती है, जो अंदर संग्रहित धरोहरों के लिए बड़ा खतरा है.
अद्वितीय मूर्तियां, अनमोल विरासत
दमयंती संग्रहालय में जिले के इतिहास से जुड़ी सैकड़ों साल पुरानी मूर्तियां, शिलालेख और अन्य कलाकृतियां संरक्षित हैं.इनमें हयग्रीव, नृत्यरत अप्सरा, रावणानुग्रह, उमा-महेश्वर, अभिज्ञान राम, और प्राचीन मंदिर का सिरदल प्रमुख हैं। ये मूर्तियां लाल बेशकीमती पत्थरों से निर्मित हैं और बुंदेलखंड की उत्कृष्ट शिल्पकला की पहचान हैं.
प्रशासन की उदासीनता
स्थानीय इतिहासकारों और कला प्रेमियों का कहना है कि प्रशासन की बेरुखी के कारण यह विरासत धीरे-धीरे दम तोड़ रही है.यदि समय रहते मरम्मत और संरक्षण के ठोस उपाय नहीं किए गए, तो आने वाले वर्षों में ये अनमोल धरोहरें क्षतिग्रस्त हो सकती हैं, जिनकी भरपाई कभी नहीं हो पाएगी. सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण या संस्कृति विभाग के माध्यम से तत्काल मरम्मत संरक्षण कार्य शुरू कराया जाए.