1970 से 2010 के बीच भारत के अधिकांश हिस्सों में बाढ़ की तीव्रता में बीते 100 वर्षों की तुलना में कमी देखी गई है, इस दौरान पश्चिमी हिमालय और मालाबार जैसे क्षेत्रों में मानसून पूर्व और मानसून की शुरुआत के समय बाढ़ की तीव्रता बढ़ी है. देश के जल माप गेजों से प्राप्त जल प्रवाह आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित एक स्टडी सामने आई है. पत्रिका नेचर में ‘नदी बाढ़ का बदलता परिमाण’ अध्ययन प्रकाशित हुआ है.
भारत में जल नियामक संस्था ने जल विज्ञान संबंधी उद्देश्यों और बाढ़ की पूर्व चेतावनी प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए कई नदी प्रणालियों में जल प्रवाह मापन के लिए जल सेंसर स्थापित किए हैं. आईआईटी दिल्ली और आईआईटी रुड़की के एक अध्ययन में यह सामने आया है कि गंगा और सिंधु नदी घाटियों के ऊंचे क्षेत्रों में अब अचानक बाढ़ की घटनाएं मानसून की शुरुआत में ही देखने को मिल रही हैं. यह बदलाव संभावित रूप से विनाशकारी असर डाल सकता है. इसको देखते हुए मौजूदा बाढ़ प्रबंधन प्रणाली को पूरी तरह से नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता है.
World War 3 will be for language, not land! pic.twitter.com/0LYWoI3K0r
— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
हाल के वर्षों में मानसून की बारिश अनियमित हो गई
अध्ययन के अनुसार, प्रारंभिक आकस्मिक बाढ़ों की बढ़ती आवृत्ति का एक संभावित कारण जलवायु परिवर्तन द्वारा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बारिश और बर्फ के संक्रमण क्षेत्रों में आया परिवर्तन हो सकता है. इसके चलते बर्फ के पिघलने वाले क्षेत्रों में वसंत या मानसून पूर्व बाढ़ की ज्यादा घटनाएं सामान्य समय से कई हफ्ते पहले हो सकती हैं.मालाबार तट ताद्री से लेकर कन्याकुमारी तक फैली वह पट्टी जहां बाढ़ की तीव्रता में प्रति दशक 8% की दर से वृद्धि देखी गई. जहां पश्चिम की ओर बहने वाली नदियां जैसे चलियार, पेरियार, भरतपुझा, वामनपुरम आदि स्थित हैं. इस क्षेत्र में बाढ़ की यह बढ़ती प्रवृत्ति मानसून पूर्व तेज वर्षा का परिणाम मानी जा रही है.
एक अध्ययन के अनुसार, प्री-मानसून सीजन के दौरान मालाबार तट पर जलस्राव में आई बढ़ोतरी और समय से पहले आने वाली बाढ़ कृषि पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है. 2010 के बाद से स्थिति और भी अधिक बिगड़ी है. हाल के वर्षों में मानसून की बारिश न केवल अनियमित हो गई है, बल्कि अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में भी लगातार बढी हैं.
बाढ़ की घटनाएं 85% केवल मानसून के महीनों में आईं
भारत में सालाना बारिश का लगभग 80% हिस्सा मानसून के दौरान होता है, वर्ष 1975 से 2015 के बीच, देश में बाढ़ की घटनाओं के कारण कुल 1,13,390 लोगों की जान गई.यानी हर साल औसतन करीब 2,765 मौतें हुईं.एक विश्लेषण के अनुसार, देशभर के कई स्टेशनों पर दर्ज की गई कुल बाढ़ की घटनाओं में से लगभग 85% केवल जून से सितंबर के बीच, यानी मानसून के महीनों में सामने आईं.
173 गेजिंग स्टेशनों में से 74% (128) ने बाढ़ की तीव्रता में कमी दिखाई है, जिनमें से 47 स्टेशनों पर यह कमी महत्वपूर्ण थी. केवल 26% (45) स्टेशनों ने बाढ़ की तीव्रता में वृद्धि दिखाई गई है. केवल चार स्टेशनों ने महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की.मुख्य गंगा बेसिन में बाढ़ की तीव्रता में प्रति दशक 17% की गिरावट दर्ज की गई, पश्चिमी और मध्य गंगा बेसिन में 40 वर्षों के दौरान 100 वर्षीय बाढ़ निर्वहन में आधे से भी अधिक की कमी आई है.ऐसा लगता है कि 2010 के बाद से स्थिति और खराब हो गई है.
यह अध्ययन दिखाता है कि दक्कन पठार के मराठवाड़ा क्षेत्र में, जो हाल के वर्षों में गंभीर सूखे से जूझ रहा है, नदियों का प्रवाह मानसून के मौसम में प्रति दशक औसतन 8% और मानसून-पूर्व मौसम में 31% की दर से कम हो रहा है.बड़े जलग्रहण क्षेत्रों में बाढ़ की परिमाण तीव्रता उच्च दरों पर कम हो रही है, जबकि जैसे-जैसे जलग्रहण क्षेत्र का साइज छोटा होता जाता है, परिवर्तन की दर भी कम होती जा रही है. इससे यह स्पष्ट होता है कि बड़े बांध, जो मुख्य रूप से बड़ी नदियों पर बनाए जाते हैं, बाढ़ की तीव्रता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.बड़े बांधों और जलाशयों का निर्माण, जो मुख्य रूप से बड़े जलग्रहण क्षेत्रों में पाए जाते हैं, मौजूदा शोधों से पता चलता है कि ये बाढ़ के चरम स्तर को कम करने में प्रभावी हो सकते हैं.