जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव का असर अब राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में साफ नजर आने लगा है. भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे गांवों के निवासी न सिर्फ सतर्क हैं, बल्कि किसी भी संभावित स्थिति का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. ग्रामीणों का कहना है कि वे सेना को हर संभव सहायता देने को तत्पर हैं और जरूरत पड़ने पर अपने घर-द्वार छोड़ने में भी हिचकिचाएंगे नहीं.
लोहे की मोटी प्लेट से बने बुलेटप्रूफ बंकर जैसलमेर बॉर्डर इलाके के आखिरी गांव में अभी भी मौजूद हैं. साल 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान सुरक्षा की दृष्टि से सेना ने इस गांव को खाली करवाया था.
500 लोगों की आबादी वाला है बॉर्डर का आखिरी गांव
करीब 500 लोगों की आबादी वाला गांव कहलाता है बॉर्डर का आखिरी गांव. गांव में कोई संदिग्ध नहीं दिखे इसलिए इंटेलिजेंस के अधिकारी लगातार नजर रखते हैं.
इसी गांव के पास भारत-पाक सीमा की पुरानी फेंसिंग और बंकर मौजूद हैं. तपते रेतीले धोरों के बीच यहां का तापमान 47 डिग्री से ऊपर है. तपते धोरो में जहां खड़ा रह पाना मुश्किल है. वहीं से भारतीय सैनिकों ने 1971 का युद्ध लड़ा और पाकिस्तानी सेना को धूल चटाई थी.
1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान को भारत की पुरानी सीमा से करीब 20 किलोमीटर आगे तक खदेड़ा था और पाकिस्तान की सीमा पर कब्जा कर लिया था. अब भारत-पाकिस्तान की सीमा करीब 20 किलोमीटर आगे है.
1971 में पाकिस्तान से हुए युद्ध की यादें बरकरार
एक बुजुर्ग ग्रामीण ने 1971 के भारत-पाक युद्ध को याद करते हुए कहा, जब बम गिर रहे थे, तब मैं रामगढ़ में था. इन गांवों में बंकरों का निर्माण पहले ही किया जा चुका है, जो युद्ध जैसी स्थिति में ग्रामीणों और जवानों दोनों के लिए आश्रय बन सकते हैं. हालांकि, कुछ ग्रामीणों ने चिंता जाहिर की कि अगर युद्ध होता है तो गर्मी में उनके मवेशियों की देखभाल कैसे होगी.
एक ग्रामीण ने कहा, हम तो बंकरों में चले जाएंगे, लेकिन पशुओं का क्या? इतनी गर्मी में अगर उनकी देखभाल न हो सके तो वे मर सकते हैं. फिर भी, राष्ट्र पहले आता है, यह कीमत भी मंजूर है.
ग्रामीणों का मानना है कि पाकिस्तान को कड़ा जवाब देना बेहद जरूरी है. जब तक पाकिस्तान को उसकी हरकतों का सही जवाब नहीं मिलेगा, वो नहीं सुधरेगा.