ब्रेकअप का झूठ और कत्ल की सच्चाई… कानपुर में सूटकेस के अंदर कैद मोहब्बत वाली कहानी में ट्विस्ट

रात अंधेरी थी, नदी के उफान का शोर गूंज रहा था. बांदा का चिल्लाघाट पुल उस रात दो सायों का गवाह बना. बाइक की पिछली सीट पर एक बड़ा नीला सूटकेस बंधा था. बाइक रुकी, दोनों उतरे और हांफते हुए भारी सूटकेस को खींचकर पुल की रेलिंग पर टिकाया. एक ने दूसरे की तरफ देखा, फिर दोनों ने एक साथ धक्का दिया. ‘छपाक…’ पानी की लहरों ने सूटकेस को निगल लिया. उन दोनों ने सोचा ये राज हमेशा के लिए डूब चुका है. लेकिन सच हमेशा पानी में डूबता नहीं, वो उभरकर सामने आता है. और इस बार भी वही हुआ.

लव स्टोरी की शुरुआत

कहानी कानपुर देहात के रूरा कस्बे से शुरू होती है. विजयश्री की चार बच्चों में दो बेटे और दो बेटियां. उन्हीं में से एक, 24 साल की आकांक्षा, हनुमंत बिहार (कानपुर) में रहकर रेस्टोरेंट में काम करती थी. आत्मनिर्भर बनने का उसका सपना था. इसी दौरान उसकी जिंदगी में आया फतेहपुर का रहने वाला सूरज. पहले दोस्ती, फिर प्यार और कुछ ही महीनों में लिव-इन रिलेशनशिप. दोनों ने किराए पर कमरा लिया और वहीं साथ रहने लगे. लेकिन मोहब्बत का जोश धीरे-धीरे शक और झगड़ों में बदलने लगा. सूरज दूसरी लड़कियों से बात करता था, आकांक्षा इसका विरोध करती. रिश्ता खट्टा होने लगा.

21 जुलाई का वो आखिरी दिन

आकांक्षा ने साफ कह दिया था कि अब वह सूरज से अलग रहना चाहती है. मगर सूरज मानने को तैयार नहीं. 21 जुलाई की रात वह जबरन आकांक्षा के कमरे में घुसा. वहां दोनों के बीच जोरदार बहस हुई. गुस्से में सूरज ने आकांक्षा का सिर दीवार पर दे मारा. वह गिरकर बेहोश हो गई. उस पल सूरज के पास दो रास्ते थे या तो उसे बचाने का, या हमेशा के लिए खत्म करने का. उसने दूसरा रास्ता चुना. दोनों हाथों से गला दबाकर उसकी सांसें रोक दीं. आकांक्षा अब सिर्फ़ एक शव बन चुकी थी.

दोस्त की भूमिका

हत्या के बाद सूरज ने घबराकर अपने दोस्त आशीष (फतेहपुर निवासी) को फोन मिलाया. आशीष मौके पर पहुंचा. दोनों ने मिलकर आकांक्षा की लाश को बड़े सूटकेस में भरा. रात का अंधेरा गहराता गया. बाइक पर पीछे बंधे सूटकेस को देखकर किसी ने सोचा भी नहीं कि उसमें इंसानी लाश है. दोनों 100 किलोमीटर दूर बांदा के चिल्लाघाट पहुंचे और यमुना में सूटकेस फेंककर लौट आए. उन्हें लगा कि सबूत मिट गया.

कातिल का शातिर खेल

लेकिन कत्ल के बाद सूरज ने जो खेल खेला, उसने कहानी को और रहस्यमयी बना दिया. उसने आकांक्षा का मोबाइल अपने पास रख लिया. उसकी मां विजयश्री को संदेश मिला मम्मी, मैं लखनऊ आ गई हूं. यहां नौकरी मिल गई है. सूरज से ब्रेकअप कर लिया है. आप चिंता मत करिए. रेस्टोरेंट मालिक को भी मैसेज गया कि अब मैं लखनऊ में शिफ्ट हो गई हूं. कई दिनों तक सूरज यही खेल खेलता रहा. मैसेज भेजकर यह दिखाता रहा कि आकांक्षा जिंदा है. लेकिन एक मां का दिल कभी धोखा नहीं खाता. विजयश्री को महसूस हुआ कि वह ना तो फोन उठाती है ना ही कॉल बैक करती है.

मां की जद्दोजहद और पुलिस की नींद

21 जुलाई के बाद से विजयश्री ने थाना चौकियों के चक्कर काटने शुरू किए. बार-बार कहा कि मेरी बेटी के साथ कुछ अनहोनी हुई है, सूरज ने उसे मार दिया है. पर पुलिस ने हर बार उन्हें टरका दिया. कोई कहता लड़की अपने प्रेमी के साथ कहीं चली गई होगी. तो कोई गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखकर रख लेता. दो महीने गुजर गए. मां थक चुकी थी, लेकिन हार नहीं मानी. आखिरकार उन्होंने पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार से मिलकर अपनी गुहार रखी.

सच का खुलासा

कमिश्नर के आदेश के बाद जांच दोबारा शुरू हुई. पुलिस ने सूरज का मोबाइल सीडीआर और लोकेशन निकाली. धागा वहीं से खुलना शुरू हुआ. लोकेशन ने दिखाया कि 21 जुलाई की रात सूरज कानपुर से बांदा तक गया था. और यहीं से पुलिस को शक गहराया. सूरज और आशीष को हिरासत में लिया गया. सख्ती से पूछताछ हुई. आखिरकार दोनों टूट गए और कत्ल की दास्तान कबूल कर ली. डीसीपी डीएन चौधरी ने इतना भर कहा कि गुमशुदगी की शिकायत पर जांच चल रही थी. मोबाइल रिकॉर्ड से राज खुला. आरोपियों ने लाश यमुना नदी में फेंकी थी, जिसे ढूंढा जा रहा है.

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