सीधी : जिले में आदिवासी बाहुल्य वनांचल क्षेत्र भुईमाढ़ एक ऐसा स्थान है जहां मौत के बाद लाश को 50 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है, यहां मरने वाले को पोस्टमार्टम के लिए कुसमी लेजाना पड़ता है.क्यूंकि चिकित्सक उपलब्ध नहीं है.
“जब मौत के बाद भी इंसाफ नहीं मिले, तो समझिए सिस्टम मर चुका है.”
सीधी जिले के भुइमाड़ थाना क्षेत्र में एक ऐसी ही विवश कर देने वाली घटना सामने आई है, जिसने शासन और प्रशासन दोनों की संवेदनहीनता को नंगा कर दिया है.
ग्राम पंचायत दुधमनिया के रहने वाले पियारे साकेत (60 वर्ष) की 14 मई को जंगल में पेड़ से पत्ते तोड़ते वक्त गिरने से मौत हो गई. परिजनों ने तत्काल भुइमाड़ पुलिस को सूचना दी.पुलिस ने मौके पर पहुंचकर पंचनामा तैयार कर शव को कठौतिया के शवगृह में रखवा दिया, लेकिन यहीं से शुरू हुआ मानवता को शर्मसार करने वाला इंतजार जो अभी दूसरे दिन भी बरकरार है,अब परिजन व्यवस्था में लगे हैं.
पोस्टमार्टम नहीं, डॉक्टर नहीं, संवेदना नहीं
14 मई को डॉक्टर नहीं पहुंचे, जिससे पोस्टमार्टम नहीं हो सका.परिजन भूखे-प्यासे शव के पास रात भर चीरघर में सोते रहे.
सुबह जब उम्मीद से पुलिस से मिले, तो उन्हें कहा गया कि अब शव को कुसमी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाना होगा, जहां पोस्टमार्टम होगा.ये सुनकर परिजनों के होश उड़ गए — न शव वाहन, न कोई मदद, और अब 50 किलोमीटर का सफर। आज खबर लिखे जाने तक शव भुईमाढ़ में पड़ा हुआ है.
सवाल खड़ा करता सिस्टम
यह कोई पहली घटना नहीं है। भुइमाड़ उप स्वास्थ्य केंद्र और आसपास के क्षेत्र में पोस्टमार्टम के लिए डॉक्टरों की कमी कोई नई बात नहीं है.
सरकारी चीरघर होते हुए भी अगर शवों को दूसरी तहसीलों में भेजना पड़े, तो यह न केवल लापरवाही है, बल्कि गरीबों के साथ अमानवीय व्यवहार भी है.स्थानीय संवाददाता की माने तो यहां आए दिन यही हाल रहता है एक ओर जहां जिंदा लोगों को इलाज के लिए 50 किलोमीटर का सफर तय कर कुसमी जाना पड़ता है वही मुर्दों को भी वही दूरी तय करनी पड़ती है वनांचल क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र मैं स्वास्थ्य सुविधाओं का आकाल पड़ा हुआ है. कुसमी बीएमओ अजय प्रजापति करीब दो वर्षों से सीधी से ही ड्यूटी बजा रहे हैं.
स्थानीय लोगों का कहना है कि विधायक द्वारा दिया गया शव वाहन भी लगभग बेकार ही है क्यूंकी न तो उसमें प्रापर ड्रायवर है और न फ्यूल की व्यवस्था जरूरत पड़ने पर परिजनों को ही इसका खर्च उठाना पड़ता है. जब वाहन भी नहीं और डॉक्टर भी नहीं, तो क्या सिर्फ कागजों में हो रहा विकास?
प्रशासन की चुप्पी = अपराध?
परिजनों ने जिला कलेक्टर से मांग की है कि भुइमाड़ क्षेत्र में नियमित रूप से डॉक्टरों की नियुक्ति की जाए और उनकी मौजूदगी भी सुनिश्चित की जए अगर किसी परिस्थिति में चिकित्सक बाहर है तो वैकल्पिक व्यवस्था भी सुदृढ़ की जाए.तकि शवों का पोस्टमार्टम स्थानीय स्तर पर ही किया जाए.
ये घटना सिर्फ एक परिवार की पीड़ा नहीं है, बल्कि एक पूरी व्यवस्था पर सवाल है, जो मौत के बाद भी सम्मान नहीं दे सकती.
आज सीधी जिले के दौरे पर प्रदेश के मुखिया डॉक्टर मोहन यादव आ रहें हैं जिले को करोड़ों रुपए की सौगात भी देंगे लेकिन जिले में घटने वाली ऐसी घटनाएं उनकी सौगात का स्वाद फीका कर देती है.
क्या यही है हमारा सिस्टम? क्या मौत के बाद भी गरीबों को इलाज और इंसाफ के लिए भटकना होगा?
सरकार और प्रशासन जवाब दें — आखिर कब तक ऐसे ही इंतजार करते रहेंगे लोग, जीते जी भी और मरने के बाद भी?