विदेश में नौकरी का झांसा, ‘डिजिटल गुलामी’ का जाल… सूरत पुलिस ने इंटरनेशनल साइबर रैकेट का किया पर्दाफाश 

दुनिया में आज जहां लोग फिशिंग, ऑनलाइन शॉपिंग ठगी, क्रिप्टो स्कैम, मैट्रिमोनियल फ्रॉड, ओटीपी हैकिंग और ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसे साइबर अपराधों से लड़ना सीख ही रहे हैं, वहीं अब एक और नया खतरा तेजी से सामने आ गया है. इसे ‘डिजिटल गुलामी’ कहा जा रहा है. डायमंड सिटी के नाम से मशहूर सूरत में पकड़ा गया यह गिरोह बेरोजगार युवाओं को सुनहरे भविष्य का सपना दिखाकर गुलाम बना लेता था.

उनकी जाल में फंसे लोगों को पहले विजिटर वीजा पर पहले थाईलैंड बुलाया जाता, फिर गुपचुप तरीके से नदी पार कराकर म्यांमार में धकेल दिया जाता था. शुरू में भरोसा दिलाया जाता कि काम आसान होगा. कॉलिंग जॉब या कंप्यूटर पर डेटा एंट्री का काम करना होगा. लेकिन असली हकीकत सामने आने पर लोगों के होश उड़ जाते थे. क्योंकि उन पर दबाव बनाकर जबरन साइबर ठगी के काम में धकेल जाता था.

गुजरात पुलिस की कार्रवाई में इस गैंग का मास्टरमाइंड नीरव चौधरी (24) दबोचा गया है. उसके साथ प्रीत कमानी (21) और आशीष राणा (37) भी सलाखों के पीछे हैं. नीरव उत्तराखंड का रहने वाला है और कॉलेज छोड़ चुका है. 2023 में वह पहली बार म्यांमार गया था, जहां वो एक चीनी फर्म में काम करने लगा. वहां उसने सीखा कि कैसे नकली फेसबुक अकाउंट बनाकर अमीर लोगों से लाखों रुपए ऐंठे जाते हैं.

वहीं से उसके गुनाह की राह शुरू हुई. भारत लौटने के बाद नीरव चौधरी ने तस्करी का धंधा संभाल लिया. पुलिस के मुताबिक अब तक वह 52 युवाओं को म्यांमार भेज चुका है. इनमें सिर्फ गुजरात ही नहीं बल्कि पाकिस्तान, श्रीलंका और इथियोपिया के युवक भी शामिल थे. सौदे का रेट भी तय था. हर इंसान पर नीरव चौधरी को लगभग 3 लाख रुपए और उसके साथियों को 40 से 50 हजार रुपए कमीशन मिलते थे.

सरकारी आंकड़े इस खतरे की गंभीरता को और पुख्ता करते हैं. गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाले आप्रवासन ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है कि जनवरी 2022 से मई 2024 तक 73138 भारतीय विजिटर वीजा पर कंबोडिया, थाईलैंड, म्यांमार और वियतनाम गए. हैरानी की बात है कि इनमें से 29466 लोग अब तक वापस नहीं लौटे. इनमें आधे से ज्यादा 20 से 39 साल के युवा और करीब 90 फीसदी पुरुष थे.

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