साल था 1998. भारत के पोखरण में कुछ लोग जुटे. एक पूरी टीम जिस मिशन के लिए जुटी थी, उसे पूरा होने तक गुप्त रखना सबसे बड़ी चुनौती थी. भारत परमाणु परीक्षण कर रहा था, लेकिन दुनिया की निगाहों से बचकर. इसके लिए इस मिशन में शामिल वैज्ञानिक टीम ने एक प्लान बनाया. प्लान था कि, अमेरिकी सैटेलाइट्स की सतर्क निगरानी के बावजूद, भारत ने परीक्षण स्थल पर एक्टिविटी को ऐसे छिपाया कि, रेगिस्तानी इलाका सामान्य नजर आए. वैज्ञानिकों और सैनिकों ने मजदूरों जैसा भेष अपनाया, उपकरणों को बालू से ढका गया, और सैटेलाइट के ऑर्बिटल शेड्यूल की स्टडी कर अधिकतर कार्य रात में किए गए. नतीजा, भारत परमाणु शक्ति बन गया और अमेरिका व अन्य देश देखते रह गए.
क्या पराली जलाने के लिए सैटेलाइट को चकमा दे रहे हैं किसान?
26 साल पुरानी इस बात का जिक्र आज भी जब होता है तो हम गौरव का अनुभव करते हैं, लेकिन आज जिस सिलसिले में इस ऐतिहासिक घटना का जिक्र हो रहा है, वह सीधे आम आदमी से जुड़ी है, हमसे और आपसे जुड़ी है, हमारी सांसों से जुड़ी है. नासा के एक वैज्ञानिक का दावा है, पराली जलाने के लिए किसान उसी ‘पोखरण प्लान’ के तहत ही काम कर रहे हैं. लेकिन यह कोई गर्व की बात नहीं बल्कि शर्मनाक है.
Nov 17: Intense stubble burning in Punjab, on both sides of the border. AQI/PM2.5 in hazardous category in Delhi (US Embassy data). Do we need more evidence and proofs to convince policy makers that open field burning is a major, giant source of air pollution during this season? pic.twitter.com/9UhZhlfoHY
— Hiren Jethva (@hjethva05) November 17, 2024
एक्सपर्ट्स आशंका जता रहे हैं कि कहीं किसान निगरानी तंत्र को चकमा देकर तो पराली नहीं जला रहे हैं? इसके लिए वह कोई मामूली तरीका नहीं अपना रहे, बल्कि इतने हाइटेक स्टेप ले रहे हैं कि वह सीधे सैटेलाइट को ही चकमा दे रहे हैं. इन नए हथकंडों ने पराली प्रबंधन और निगरानी की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
NASA के वैज्ञानिक ने किया विश्लेषण
राजधानी दिल्ली गैस चैंबर बनी हुई है. NCR और आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक सीमा तक पहुंच चुका है. ‘सांसों का ये आपातकाल’ कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को भी बढ़ा रहा है. इस गंभीर स्थिति के बीच एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है पराली. किसानों द्वारा पराली जलाने को प्रदूषण का बड़ा कारण माना जा रहा है. हालांकि, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस साल पराली जलाने की घटनाएं घटी हैं, लेकिन प्रदूषण का स्तर जस का तस बना हुआ है. विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों ने पराली जलाने के समय में बदलाव किया है ताकि सैटेलाइट के जरिए उनकी एक्टिविटी का पता न लगाया जा सके. TOI में पब्लिश हुई एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. यह दावा नासा वैज्ञानिक हीरेन जेठवा के विश्लेषण पर आधारित है.
सैटेलाइट के मूविंग टाइम को समझ कर अंजाम दे रहे करतूत
नासा के वरिष्ठ वैज्ञानिक हीरेन जेठवा ने सोशल मीडिया पर अपना एनालिसिस शेयर किया है. वह बीते महीनों से इस पर काम कर रहे थे. इसी क्रम में 25 अक्टूबर को उन्होंने X पर लिखा, ‘क्या उत्तर-पश्चिम भारत और पाकिस्तान के किसान सैटेलाइट के मूविंग टाइम पर पराली जलाने से बच रहे हैं? GEO-KOMPSAT 2A सैटेलाइट के डेटा से दोपहर बाद के दौरान धुएं के गुबार देखे गए हैं. इस फैक्ट की जमीनी हकीकत की जांच की जानी चाहिए.
किस समय भारत-पाकिस्तान से गुजरती है सैटेलाइट
जेठवा का कहना है कि नासा और NOAA के सैटेलाइट दोपहर 1:30 से 2:00 बजे के बीच भारत और पाकिस्तान के ऊपर से गुजरते हैं. उनका अनुमान है कि किसान संभवतः इस समय के बाद पराली जला रहे हैं, ताकि उनकी ये एक्टिविटी रिकॉर्ड में न आ सकें. उन्होंने साउथ कोरिया के GEO-KOMPSAT-2A सैटेलाइट के डेटा का हवाला देते हुए कहा कि यह सैटेलाइट हर 10 मिनट पर डेटा रिकॉर्ड करता है और उसमें दोपहर बाद के समय में आग जलने की घटनाएं ज्यादा देखी गईं.
The "browning effect" or "darkening effect" of clouds/fog, caused by light-absorbing smoke aerosols, either mixed with clouds or positioned above them, strengthens temperature inversion (warmer air above cooler air), traps air pollutants near-surface and deteriorates AQ pic.twitter.com/dR0zl6eng2
— Hiren Jethva (@hjethva05) November 14, 2024
क्या कहते हैं सरकार आंकड़े
इस मामले पर सरकारी आंकड़े क्या कह रहे हैं, इस पर भी निगाह डाल लेते हैं. आंकड़ों की मानें तो पंजाब और हरियाणा में इस साल पराली जलाने की घटनाओं में बड़ी गिरावट दर्ज की गई. 15 सितंबर से 17 नवंबर 2024 तक पंजाब में केवल 8,404 पराली जलाने की घटनाएं रिपोर्ट हुईं, जो पिछले साल इसी अवधि में 33,082 थीं. हरियाणा में यह संख्या 2,031 से घटकर 1,082 हो गई.
इसके बावजूद, वायुमंडल में एरोसोल का लेवल (जो प्रदूषण का मुख्य कारण है) पिछले छह-सात वर्षों से स्थिर बना हुआ है. iFOREST के सीईओ चंद्र भूषण ने कहा, “अगर पराली जलाने की घटनाओं में 80-90% की कमी आई है, तो एरोसोल का स्तर क्यों नहीं घटा?” भूषण ने यह भी बताया कि 17 नवंबर को दिल्ली के पीएम 2.5 स्तर में 37.5% योगदान पराली जलाने का था, जो सीजन का सबसे ज्यादा था, जबकि पराली जलाने की घटनाएं इस साल कम बताई जा रही हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि “पराली जलाने की समस्या को मापने का बेहतर तरीका कुल जले हुए क्षेत्र का विश्लेषण करना है.”
दूसरे राज्यों में बढ़ रही पराली जलाने की घटनाएं
पंजाब और हरियाणा में भले ही घटनाएं घटी हों, लेकिन उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ रही हैं. इससे स्पष्ट होता है कि समस्या केवल कुछ राज्यों तक सीमित नहीं है और इसका प्रभाव व्यापक है.
स्थानीय अधिकारियों का दावा: डेटा सटीक है
हालांकि विशेषज्ञों के इन दावों को स्थानीय अधिकारियों ने खारिज कर दिया. पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन आदर्शपाल विग ने कहा कि “पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर ISRO और NASA के सैटेलाइट्स का इस्तेमाल कर पराली जलाने की घटनाएं रिकॉर्ड करता है, जिनमें रात में होने वाली घटनाएं भी शामिल हैं. सैटेलाइट से बचने की बात कल्पना मात्र है.” पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने भी कहा कि घटनाओं में कमी वास्तविक है और यह किसानों द्वारा पराली प्रबंधन के लिए अपनाई गई नई तकनीकों का परिणाम हो सकता है.
अगर किसान ऐसा कर रहे हैं तो आगे क्या?
यह साफ है कि पराली जलाने की घटनाओं में कमी और प्रदूषण के स्तर के बीच एक बड़ा अंतर है. विशेषज्ञ सटीक आंकड़ों के लिए भारत के भूस्थिर सैटेलाइट्स का इस्तेमाल करने का सुझाव दे रहे हैं. यह समस्या जटिल है और इसके समाधान के लिए पराली प्रबंधन पर ध्यान देना होगा. सरकार और किसानों के बीच बेहतर समन्वय के साथ-साथ सटीक निगरानी और डेटा संग्रह की जरूरत है. यह सुनिश्चित करना होगा कि पराली जलाने की घटनाओं को सही तरीके से रिकॉर्ड किया जाए ताकि पर्यावरण पर इसके प्रभाव को कम किया जा सके.
किसान बोले- प्रशासन खुद कहता है कि शाम 4 बजे के बाद जलाओ पराली
उधर, पंजाब के बंठिडा प्रशासन की लापरवाही के भी दावे सामने आए हैं. बठिंडा के कई इलाकों में अभी धान की फसल खेतों में तैयार खड़ी है उनकी कटाई नहीं हुई इसके साथ ही कई खेतों में पराली के ढेर लगे हुए जिसे जब मर्जी आग लगाई जा सकती है. ऐसे में अब किसान नेता कह रहे हैं पराली जलाने के मुख्य दोषी सरकार और प्रशासन हैं, क्योंकि किसान पराली को आग नहीं लगना चाहता उसे मजबूर किया जाता है. कहा जाता है कि कोई मुकम्मल प्रबंध नहीं है.
ऐसे में अगर किसान पराली को आग नहीं लगाएगा तो क्या करेगा. उनका कहना है कि या तो सरकार 5 हज़ार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से किसानों को मुआवजा राशि दे तो पंजाब में कोई भी किसान पराली को आग नहीं लगाएगा. नहीं तो सरकार को मुकदमे दर्ज करने हैं तो वह जो मर्जी कर ले, लेकिन जब तक कोई पक्का समाधान नहीं किया जाता इस तरह ही पराली जलाते रहेंगे. किसानों ने यहां तक कहा कि प्रशासन खेतों में पहुंचकर कहता है शाम 4 बजे के बाद पराली को आग लगा लिया करो.
प्रशासन ने कहा- आरोप गलत, लगातार हो रही है कार्रवाई
वहीं प्रशासन ने कहा, लगातार गांवों में पहुंचकर किसानों को समझाया जा रहा है पराली को आग न लगाई जाए. किसानों को जागरूक किया जा रहा है, लेकिन जब कोई जानबूझ कर पराली को जलाता है तो उसके खिलाफ कानूनी कारवाई भी की जा रही है. अब तक करीब 174 केस दर्ज करके जुर्माना लगाते हुए रेड एंट्री भी की जा रही है. पुलिस ने कहा जैसा किसान नेता बोल रहे है ऐसा कुछ नहीं है. पराली को आग लगाने पर पूरी तरह से रोक लगी हुई है. आग लगाने वाले किसानों के खिलाफ लगातार कार्रवाई भी की जा रही है.