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भारतीय संविधान की प्रस्तावना सनातन धर्म के सार को दर्शाती है, जयपुर में बोले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

जयपुर में हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला 2024 में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि हम एक नीति के रूप में संरचित तरीके से बहुत दर्दनाक धार्मिक रूपांतरण देख रहे हैं. यह हमारे मूल्यों और संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत है. उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना सनातन धर्म के सार को दर्शाती है. हिंदू धर्म सच्चे अर्थ में समावेशी है.यह पृथ्वी पर सभी जीवों का ध्यान रखता है.आज भी सेवा का भाव हिंदू समाज में प्रबल रूप से विद्यमान है.

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उपराष्ट्रपति ने ‘न त्वहं कामये राज्यं, न स्वर्गं नापुनर्भवम् . कामये दुःखतप्तानां प्राणिनाम् आर्तनाशनम् ‘ का जिक्र किया. उन्होंने इसका अर्थ भी बताया कि-न तो मुझे राज्य की इच्छा है. न स्वर्ग की और न मोक्ष की कामना है. मैं तो यही चाहता हूं कि दुखों से पीड़ित लोगों की पीड़ा को मिटाने में मेरा जीवन काम आये. मेरा जीवन दूसरों की सेवा में खप जाए, यह हमारी भारतीय संस्कृति का निचोड़ है, मूलमंत्र है.

हमारे सेवा संस्कार में कमी नहीं रही

उपराष्ट्रपति ने कहा कि आक्रमणकारी आए, विदेशी ताकतें आईं, उनका शासन रहा फिर भी हमारे सेवा संस्कार में कोई कमी नहीं रही. हम लगातार इस पथ पर चलते रहे. आज भी हिंदू समाज में सेवा का भाव प्रबल रूप से विद्यमान है. जब देश में COVID का संकट आया, हमने देखा कि यह भाव कितना ऊपर उठकर आया.यह आर्यावर्त की वैदिक संस्कृति है जो देश-काल-समाज एवं वर्गविशेष की सीमा से मुक्त रही है. यह किसी जंजीर में नहीं बंधी है. हिंदू धर्म सच्चे अर्थ में समावेशी है. इसमें केवल मनुष्य मात्र नहीं, बल्कि संपूर्ण जगत में विद्यमान जीव-जंतु और प्रकृति के संरक्षण की बात कही गई है. हमारी सभ्यता का विस्तार केवल मानव कल्याण तक नहीं है. यह पृथ्वी पर सभी जीवों के कल्याण तक फैली हुई है. हमारी सभ्यता के विभिन्न पहलुओं पर नजर डालें. हमें यह दर्शन भरपूर मात्रा में मिलेगा.

सनातन समावेशी है, सनातन ही मानवता का मार्ग है

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान के मूल्य बखूबी सनातन धर्म को परिभाषित करते हैं. प्रस्तावना में सनातन धर्म निहित है. हमारे संविधान के मूल्य सनातन धर्म से उत्पन्न होते हैं. हमारे संविधान की प्रस्तावना में सनातन धर्म का सारांश है. सनातन समावेशी है, सनातन ही मानवता के आगे बढ़ने का एकमात्र मार्ग है.यह कार्यक्रम वर्तमान समय में अत्यंत प्रासंगिक है. हमारे सामने कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो चुनौतीपूर्ण हैं, जिनका समाधान विश्व को भारत ही दे सकता है.

जलवायु परिवर्तन एक अस्तित्वगत चुनौती है. हमारे पास रहने के लिए धरती के अलावा कोई दूसरा ग्रह नहीं है. और हमारी संस्कृति में झांकिए, सनातन की फ़िलॉसफी में जाइए, गहराई से अध्ययन कीजिए. आपको पता लगेगा कि हम तो कभी भी जलवायु परिवर्तन को आने नहीं देते. यदि दुनिया हमारी बात मानती और यहां रहने वाले कुछ लोग हमारी बात मानते तो भी हम ऐसा नहीं होने देते. आज के दिन भारत एक बड़ी लीड ले रहा है. हमारे दर्शन दुनिया अपनाकर रही है. सनातन कभी विष नहीं फैलाता; सनातन स्व शक्तियों का संचार करता है.

एक संकेत जो खतरनाक है…

एक और संकेत दिया गया है जो बहुत खतरनाक है, और यह देश की राजनीति को भी बदलने वाला है. यह नीतिगत तरीके से हो रहा है, संस्थागत तरीके से हो रहा है, सुनियोजित षड्यंत्र के तरीके से हो रहा है, और वह है धर्म परिवर्तन! शुगर-कोटेड फिलॉसफी बेची जा रही है. कहां जाते हैं? वे समाज के कमजोर वर्गों को निशाना बनाते हैं. वे हमारे आदिवासी लोगों में अधिक घुसपैठ करते हैं. लालच देते हैं.

भारत को खंडित करने के लिए जो लोग आज सक्रिय हैं, उनका आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते. जब मैं सामने राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति को देखता हूं, और पड़ोसी देश में कुछ होता है, तो एक व्यक्ति जो संवैधानिक पद पर रहा है, केंद्र में मंत्री रहा है, वकालत के पेशे में वरिष्ठ अधिवक्ता है, एक नैरेटिव चलाता है, यह कहता है कि यह भारत में भी हो सकता है. क्या हमारा प्रजातंत्र कमजोर है?

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