नदी भी सूखी, बोर हुए बंद… 350 परिवार बूंद-बूंद पानी को तरस रहे, गुरेदा गांव की बदहाली की कहानी…

छत्तीसगढ़ के बालोद जिला मुख्यालय से 42 किमी दूर तांदुला नदी के किनारे गुरेदा गांव बसा हुआ है, जहां विकास के दावे दम तोड़ रहे है. लोग सरकारी योजाओं के लाभ के लिए तरस रहे हैं. लोगों को पीने का पानी भी नहीं मिल पा रहा है. जिम्मेदार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने ग्रामीणों की आवाज को अनसुना कर सिर्फ खानापूर्ति में लगे हैं. गांव वालों को उनके हाल पर छोड़ दिया है. 2011-12 में पीएचई विभाग के द्वारा गांव के शासकीय प्राथमिक शाला, राशन दुकान के समीप, आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक-1 और हाईस्कूल परिसर कुल 4 जगह फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगाया गया था, जो मेंटिनेंस और देखरेख के अभाव में कबाड़ में तब्दील हो गए हैं. जिन्हें अभी तक चालू नहीं किया जा सकता है.

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लोगों ने बताया कि सिर्फ हाईस्कूल परिसर में लगा फ्लोराइड रिमूवल प्लांट ही चालू है. बाकी तीनों स्थानों में लगाये गए प्लांट बंद पड़े हैं. जिसे विभाग चालू नहीं कर पाया है. विभाग के जिम्मेदारों की अनदेखी और लापरवाही का खामियाजा ग्रामीण भुगत रहे हैं. जल जीवन मिशन अंतर्गत यहां पानी की टंकी का निर्माण तो किया गया है. कुछ घरो में नल कनेक्शन भी किया गया है, लेकिन उन नलों से पानी निकलने का ग्रामीणों को बेसब्री से इंतेजार है.

लोगों को हो रही ये समस्या

जानकारी के मुताबिक 2008 में गुरेदा के ग्रामीण हैंडपंप के पानी का इस्तेमाल कर रहे थे. जिसमें फ्लोराइड की मात्रा निर्धारित मापदंड 1.50 मिलीग्राम से कहीं अधिक मिली. जानकारी के अभाव में किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया. वर्ष 2008 के 2-3 साल पहले गांव में स्वास्थ्य विभाग ने यहां शिविर लगाया. उसमें चिकित्सकों ने फ्लोराइडयुक्त पानी का ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे दुष्प्रभाव से अवगत कराया. तब गांव के लोगों ने दूषित पानी से निजात पाने के लिए लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग ((पीएचई)) से संपर्क किया. दो-तीन साल तक विभागीय दफ्तर के चक्कर लगाने पर भी मदद नहीं मिली.

जिसके बाद ग्रामीणों ने पानी की सप्लाई के लिए खुद चंदा करके नदी के किनारे बोर कराया, पाइप लाइन बिछाई और घर-घर पानी पहुंचाया. लेकिन अब नदीं के सूखने पर लोगों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. कई बार शिकायत के बाद भी शासन और प्रशासन से कोई मदद नहीं मिल रही है.

चंदा करके कराया बोर

ग्रामीणों ने अपने स्तर पर योजना तैयार की. वर्ष 2008 में ग्राम विकास समिति का गठन कर हर घर से रकम जुटाई गई. चंदे में करीबन साढ़े तीन लाख रुपए जमा हुए. जिससे तांदुला नदी किनारे 2 बोर कराया, मोटर लगवाया, पाईपलाईन बिछाई, अब घर-घर पानी की सप्लाई हो रही है. सार्वजनिक स्थलों में भी नल लगाए गए है, समिति ग्रामीणों से रखरखाव के नाम पर शुल्क भी ले रही है. जिनके घर में नल कनेक्शन लगा है, उनसे 50 रुपये और जो सार्वजनिक स्थानों से पानी भरते है, उनसे 25 रुपये प्रतिमाह शुल्क ले रही है.

नदी सूखने से स्थित जस की तस

ग्राम गुरेदा के सरपंच महेंद्र साहू ने कहा कि 17 साल से अधिक समय से यहां फ्लोराइड की समस्या है. जब पता चला कि फ्लोराइड पानी पीने से हड्डियां कमजोर हो रही हैं. जिन हैंडपंपो में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा थी, उसे विभाग द्वारा बन्द कर दिया गया. फिर ग्राम समिति व ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित कर नदी में बोर कराया गया और वहां से पानी की सप्लाई हो रही है. उन्होंने कहा कि फ्लोराइड कि समस्या को दूर करने के लिए शासन-प्रशासन गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं. 12 साल पहले लगाए गए फ्लोराइड रिमूवल प्लांट मेंटनेंस के अभाव में कबाड़ हो गए है. फ्लोराइड पानी की वजह से पहले हड्डियां कमजोर होने से एक बच्चे की मौत भी हुई है. बच्चों सहित कई ग्रामीणों के दांतों में पीलेपन की भी शिकायत सामने आई है.

क्या बोले अधिकारी?

उप खंड गुंडरदेही के पीएचई विभाग के एसडीओ एसआर ठाकुर ने बताया की गुरेदा में फ्लोराइड की बहुत पुरानी समस्या है. इसका मानक 1.50 से ज्यादा है. जल जीवन का काम संपादित किया जा रहा है. काम अभी बाकी है. फ्लोराइड की मात्रा के कारण जल स्रोत पर्याप्त नहीं हो पा रहा है. ग्रामीणों द्वारा पहले से नदी किनारे सेलो ट्यूबवेल करा के जल प्रदाय की जा रही है. मेन चीज़ स्रोत का है, गांव से बाहर दूर पानी का स्रोत देख योजना को शुरू करवाना होगा. फ्लोराइड रिमूवल प्लांट जो खराब है, उसे ठीक करवा लिया जाएगा.

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