दिल्ली के शाहदरा इलाके से शुरू हुई एक सोशल मीडिया चैट ने साइबर ठगी के एक ऐसे जाल का पर्दाफाश किया है, जिसकी जड़ें नेपाल तक जुड़ी हुई थीं. शुरुआती नजर में यह एक आम ठगी जैसा मामला लगा, लेकिन जब पुलिस ने छानबीन शुरू की, तो पूरे नेटवर्क की परतें खुलती चली गईं. ठगी की रकम 10.40 करोड़ रुपए थी, जिसे महज एक महीने में ठगों ने अपने फर्जी बैंक खातों में ट्रांसफर कराए थे.
जानकारी के मुताबिक, शाहदरा के रहने वाले सचिन कुमार तोमर ने जब थाने में शिकायत दर्ज कराई, तब जाकर मामले का खुलासा हुआ. पीड़ित ने बताया कि सोशल मीडिया पर साक्षी यादव नामक एक महिला से उसकी मुलाकात हुई थी. महिला ने खुद को एक निवेश सलाहकार बताया. इसके बाद धीरे-धीरे बातचीत करके उसने अपना भरोसा बनाया और सचिन को ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म में पैसा लगाने के लिए राजी कर लिया.
इसके बाद सचिन कुमार तोमर को एक मैसेजिंग ग्रुप में जोड़ा गया. शुरू में छोटे-छोटे लाभ दिखाए गए. इस दौरान 8.15 लाख रुपए निवेश करवा लिया गया. लेकिन जब सचिन ने मुनाफा निकालने की कोशिश की, तो ट्रांजैक्शन फेल होने लगे और फिर एक दिन उसको ग्रुप से ही हटा दिया गया. इसके बाद पीड़ित ने साक्षी से संपर्क करने की कोशिश, लेकिन उसने उसका नंबर ब्लॉक कर दिया. तब जाकर वो थाने पहुंचा.
इस मामले के संज्ञान आने में आने के बाद साइबर सेल ने साक्षी सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज करके जांच शुरू कर दी. इस दौरान पता चला कि ठगे गए 8.15 लाख में से 5.75 लाख एक निजी बैंक खाते में ट्रांसफर हुए थे. खाता शशि प्रताप सिंह नामक युवक और उसके पिता रमाशंकर सिंह के नाम से संयुक्त रूप से था. पूछताछ में पिता ने अनभिज्ञता जताई, लेकिन संयुक्त खाता धारक होने की बात स्वीकार की.
नेपाल के होटल में बैठकर हिंस्तान के लोगों से ठगी
पुलिस ने जब शशि से सख्ती से पूछताछ हुई, तो उसने कबूल किया कि वो इस गिरोह का हिस्सा था. असल मास्टरमाइंड निहाल पांडे नाम का युवक था, जिसने उसे नेपाल ले जाकर इस काम को अंजाम दिया था. शशि ने बताया कि निहाल उसे नेपाल ले गया था, जहां वे तीन अन्य लोगों के साथ एक होटल में रुके. वहां एक शख्स को बैंकिंग क्रेडेंशियल्स और सिम कार्ड सौंपे गए. इसके बदले शशि को कमीशन की लालच दी गई.
उससे कहा गया कि हर लेन-देन पर उसे 1.5 फीसदी कमीशन दिया जाएगा. इसके बाद 8 से 10 लाख रुपए नकद भी दिए गए. पुलिस की जांच में खुलासा हुआ कि केवल एक निजी बैंक खाते का इस्तेमाल करते हुए महज एक महीने में 10.40 करोड़ रुपए का लेन-देन किया गया. इस तरह ये कोई छोटा-मोटा साइबर फ्रॉड नहीं था, बल्कि पूरी तरह से संगठित अंतरराष्ट्रीय साइबर मनी लॉन्ड्रिंग रैकेट था
शेयर बाजार में बड़े मुनाफे का लालच दिया जाता था
पुलिस उपायुक्त (शाहदरा) प्रशांत गौतम ने बताया कि गिरोह के सदस्य सोशल मीडिया पर महिलाओं के फर्जी प्रोफाइल बनाकर लोगों को संपर्क करते थे. उन्हें शेयर बाजार में ऊंचे रिटर्न्स का लालच दिया जाता था. शुरुआत में पीड़ितों को कुछ लाभ ट्रांसफर कर विश्वास कायम किया जाता, फिर उन्हें मोटी रकम निवेश के लिए उकसाया जाता. बड़ी रकम आते ही ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर फर्जी एरर मैसेज दिखाए जाते.
इसके बाद कहा जाता कि खाता फ्रीज हो गया है. इसके बाद या तो व्यक्ति को ग्रुप से निकाल दिया जाता या नंबर ब्लॉक कर दिया जाता. पुलिस जांच में यह भी सामने आया कि आरोपी देशभर में युवाओं को फंसाकर बैंक खाते और सिम कार्ड जुटाते थे. इन लोगों को मोटी कैश पेमेंट का लालच दिया जाता था. ज्यादातर लोग यह समझ ही नहीं पाते कि उनका खाता किसी इंटरनेशनल ठगी का हिस्सा बन चुका है.