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त्रेतायुग से जुड़ी परंपरा टूटी, श्रीराम दर्शन को निकले हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन

अयोध्या : पवित्र धरती बुधवार को एक ऐतिहासिक क्षण की साक्षी बनने जा रही है। पहली बार हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास, अपने चार प्रमुख सहायक महंतों और संतों के साथ रामजन्मभूमि में विराजमान भगवान श्रीराम के दर्शन के लिए हनुमानगढ़ी की 52 बीघा की परंपरागत परिधि को पार करेंगे. यह अवसर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि परंपरा, आस्था और संत परंपरा के एक नये अध्याय की शुरुआत भी मानी जा रही है.

हनुमानगढ़ी अयोध्या की सबसे प्रमुख पीठों में से एक है, जिसका ऐतिहासिक संबंध त्रेतायुग से जोड़ा जाता है.मान्यता है कि लंका विजय के पश्चात जब श्रीराम अयोध्या लौटे, तब उन्होंने अपने परम भक्त हनुमान को इसी स्थान पर निवास करने का आदेश दिया. तब से यह स्थान भगवान हनुमान की उपासना का केंद्र बना हुआ है.तीन सौ वर्षों से गद्दीनशीन परंपरा का पालन करने वाले महंतगण सदैव हनुमानजी की सेवा में संलग्न रहते आए हैं और एक विशेष अपवाद को छोड़ कर कभी इस परिधि से बाहर नहीं निकले.

लेकिन इस बार की बात निराली है.गद्दीनशीन महंत प्रेमदास ने स्वयं बताया कि उन्हें यह प्रेरणा स्वयं बजरंगबली से प्राप्त हुई.रामलला के दर्शन की इच्छा उनके हृदय में जागी और उन्होंने यह संकल्प लिया कि वे श्रीराम के दर्शन करेंगे.प्रारंभ में यह निर्णय सभी के लिए अचरज का विषय था, क्योंकि हनुमानगढ़ी की परंपरा और नियमावली के अनुसार गद्दीनशीन का बाहर निकलना अत्यंत दुर्लभ माना जाता है.

लेकिन जैसे ही पंचायत और संत समाज को इस निर्णय का भाव और मर्म समझ में आया, सभी ने सर्वसम्मति से इस ऐतिहासिक यात्रा का समर्थन किया.इस यात्रा में न केवल गद्दीनशीन महंत शामिल होंगे, बल्कि हनुमानजी का पवित्र निशान भी साथ ले जाया जाएगा, जो भक्ति, वैराग्य, करुणा और शौर्य का प्रतीक है.

रामजन्मभूमि पर रामलला के भव्य मंदिर में यह दर्शन एक ऐतिहासिक क्षण होगा, जहाँ पहली बार हनुमानगढ़ी के सर्वोच्च महंत अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के चरणों में नतमस्तक होंगे। यह दृश्य श्रद्धा, भक्ति और परंपरा का विलक्षण संगम होगा, जिसे देखने के लिए देशभर से संतजन और श्रद्धालु एकत्र होंगे.

यह यात्रा केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि परंपरा में लचीलापन, आत्मानुभूति और सार्वभौमिक आस्था की अभिव्यक्ति भी है.यह दिन अयोध्या के धार्मिक इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा, जब हनुमानगढ़ी से बजरंगबली का प्रतिनिधि श्रीराम के चरणों में उपस्थित होगा.

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