रविवार को जब TRP गेम जोन राजकोट में भयानक आग लगी, तो कई निर्दोष लोगों की जान चली गई. जबकि शासन प्रशासन दोषियों को कड़ी सजा देने और मृतकों एवं घायलों को आर्थिक मदद की पेशकश कर रहा है. लेकिन यह कुछ मलयालों की बात है जो पूरे सिस्टम की जेब काट रहे हैं. असफलता, जिनके लिए कानून और व्यवस्था ही उनकी जागीर मानी जाती है. यह बात पूरे भारत पर लागू होती है. लेकिन आज हमें केवल गुजरात क्षेत्र के बारे में बात करनी है, हम अब ऐसी मानव निर्मित त्रासदियों में निर्दोषों को मारने के आदी हो गए हैं. तक्षशिला सूरत, श्रेय अस्पताल अहमदाबाद आग की घटना, जुलता पुल मोरबी, हरणी नदी घटना बड़ौदा, टीआरपी गेम जोन राजकोट आदि कई त्रासदियां हुईं, जिनमें केवल निर्दोष लोग मारे गए. जबकि अपराधी 4/6 महीने में अपना आम जीवन जीने लगे.
25 मई को हुई इस दु:खद घटना के बाद TRP गेम जोन पर कई सवाल उठे कि पर्याप्त इंतजाम ना होने के बावजूद गेम जोन क्यों जारी रहा? साथ ही सरकार और अधिकारियों की आलोचना की.
*TRP गेम जोन के उद्घाटन के समय उपस्थित अतिथियों की सूची पर नजर डालें तो राजकोट कलेक्टर अरुण महेश बाबू, राजकोट जिला SP बलराम मीना, राजकोट नगर आयुक्त अमित अरोड़ा, डीसीपी जोन-1 प्रवीण मीना और कई अन्य शामिल थे। (यह फोटो और अतिथि सूची टीआरपी गेम ज़ोन के आधिकारिक इंस्टाग्राम पेज से ली गई है)*
ये सभी अधिकारी हाथों में गुलदस्ते लेकर तस्वीरें खींच रहे हैं, क्या उन्होंने उद्यम की सुरक्षा की जांच की है या आतिथ्य का आनंद लेने के बाद चले गए हैं?
हालांकि, जब सरकार ने SIT का गठन किया और सुभाष त्रिवेदी जैसे सक्षम अधिकारी को इस जांच का जिम्मा सौंपा गया, तो सवाल यह है कि हत्यारे नज़र में हैं और हत्यारे पहले भी सामने थे लेकिन हुआ क्या?
यदि यह सब कृपा से ही संभव है तो प्रश्न यह है कि कृपा किसकी? नेता? अधिकारियों का? अगर आपको जवाब मिल जाए तो मुझे जरूर बताएं.