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डॉक्टरों को मिलने वाले यूनिक आइडेंटिटी नंबर में धांधली, जाली सर्टिफिकेट का हो रहा उपयोग

नई दिल्ली: नेशनल मेडिकल कमिशन (NMC) देश के सभी डॉक्टरों को एक यूनीक आइडेंटिटी नंबर जारी कर रहा है. यह संबंधित राज्यों में मेडिकल बोर्डों द्वारा जारी किए जाने वाले रजिस्ट्रेशन नंबर से अतिरिक्त है. इसके कारण डॉक्टरों के बारे में सटीक विवरण उपलब्ध हो रहा है.

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इस नंबर से डॉक्टर के बारे में डिटेल हासिल की जा सकती है, जैसे कि उन्होंने कहां पढ़ाई की? वे कहां प्रैक्टिस कर रहे हैं? क्या उनके सार्टिफिकेट असली हैं?इन नंबरों के जरिए वेबसाइट पर डॉक्टरों की डिटेल देखना भी काफी आसान है. देशभर में 13.08 लाख एलोपैथिक डॉक्टर हैं.

आंध्र प्रदेश मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉ रमेश ने कहा कि राज्य में 2016 से 39,249 लोगों ने इसकी प्राथमिक सदस्यता प्राप्त की है और 36,694 ने रेनुअल हासिल किया है. अब तक राज्य के 2,000 लोगों ने नेशनल मेडिकल रजिस्टर (NMR) में रजिस्ट्रेशन कराया है.

फर्जी रजिस्ट्रेशन के मामले
उन्होंने कहा कि बाकी लोगों को भी एनएमसी द्वारा सुझाई गई वेबसाइट पर अपना नाम दर्ज कराना चाहिए. रजिस्ट्रेशन के दौरान जांच के कारण अवैध गतिविधियां भी सामने आ रही हैं. पिछले 2 महीनों में राज्य से संबंधित फर्जी प्रमाण पत्र की 5 घटनाएं आंध्र प्रदेश मेडिकल काउंसिल ऑफिस के संज्ञान में आई हैं.

फर्जी NOCs से रजिस्ट्रेशन का प्रयास
डॉ रमेश ने कहा कि जिन्होंने मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर ली है, उन्हें मेडिकल काउंसिल के दफ्तरों में रजिस्ट्रेशन कराने के बाद ही प्रैक्टिस करनी चाहिए. अगर वे दूसरे राज्य में जाना चाहते हैं… तो उन्हें पहले उस दफ्तर से NOC लेना चाहिए, जहां वे रजिस्टर्ड हैं. फिर उन्हें जिस राज्य में जाना है, वहां के काउंसिल दफ्तर में रजिस्ट्रेशन कराना चाहिए. इस प्रक्रिया में फर्जी प्रमाण पत्र के मामले सामने आ रहे हैं.

इस बीच अधिकारियों ने पाया कि एक व्यक्ति जिसने आंध्र प्रदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की… और यहां काउंसिल दफ्तर में अपना नाम दर्ज कराया, अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया और केरल में अपना नाम दर्ज कराने गया, उसके प्रमाण पत्र फर्जी थे. एक अन्य व्यक्ति ने बिहार में एमबीबीएस की पढ़ाई की और आंध्र प्रदेश में अपना नाम दर्ज कराया.

जब वे वहां से एनओसी लेकर बिहार गए, तो वहां फर्जी प्रमाण पत्र मिला. इसी तरह, हरियाणा में आंध्र प्रदेश से जुड़े दो अन्य मामले सामने आए. डॉ. रमेश ने कहा कि ये धोखाधड़ी तब सामने आई, जब संबंधित राज्यों के अधिकारियों को उनके प्रमाण पत्रों पर संदेह हुआ और उन्हें वेरिफिकेशन के लिए यहां भेजा गया.

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