भारत में प्राइवेट सेक्टर में काम कर रहे लाखों कर्मचारियों के लिए यह एक गंभीर चेतावनी है. एक हालिया सर्वे के अनुसार, निजी क्षेत्र के करीब 50% सैलरीड प्रोफेशनल्स के पास कोई रिटायरमेंट प्लानिंग नहीं है. यानी भले ही आज उनके पास स्थिर नौकरी और आय है, लेकिन रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी के लिए उन्होंने कोई ठोस योजना नहीं बनाई है.
दरअसल, भारत में प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लगभग आधे वेतनभोगी कर्मचारी अपनी रिटायरमेंट के लिए बहुत कम बचत कर रहे हैं, जबकि बाकी आधे केवल अपनी तनख्वाह का 1% से 10% हिस्सा ही पेंशन फंड में डालते हैं. यह जानकारी ग्रांट थॉर्नटन भारत की एक सर्वे रिपोर्ट में सामने आई है. यह रुझान बताता है कि लोगों में बचत को लेकर सतर्कता तो है, लेकिन या तो उनकी आय सीमित है या फिर उनकी प्राथमिकताएं अलग हैं, जिससे रिटायरमेंट प्लानिंग पीछे छूट रही है.
ज्यादा कमाई, फिर भी कम निवेश
हालांकि ज्यादा कमाने वाले लोग रिटायरमेंट से जुड़ी योजनाओं में थोड़ा अधिक योगदान करते हैं, लेकिन कुल मिलाकर ज़्यादातर लोगों की बचत अपेक्षाकृत कम है. यह दर्शाता है कि अधिकतर भारतीय अपनी सेवानिवृत्ति के लिए पर्याप्त धन नहीं जुटा पा रहे हैं.
उम्मीद और हकीकत के बीच भारी फासला
“Indias Pension Landscape: A Study on Retirement Reality and Readiness” नामक यह सर्वे 25 से 54 वर्ष के प्राइवेट सेक्टर में कार्यरत लोगों के बीच किया गया. रिपोर्ट के अनुसार, 55% प्रतिभागी रिटायरमेंट के बाद हर महीने ₹1 लाख से ज्यादा पेंशन की उम्मीद रखते हैं, लेकिन केवल 11% को लगता है कि उनकी मौजूदा बचत इतनी पेंशन के लिए पर्याप्त है. यह भारी अंतर इस बात की ओर इशारा करता है कि भारत में रिटायरमेंट की योजना और उसकी तैयारी के बीच एक बड़ी खाई है, जिसे बेहतर वित्तीय समझ और योजना के ज़रिए भरने की ज़रूरत है.
भरोसा सिर्फ पारंपरिक स्कीम्स पर
करीब 83% कर्मचारी अपनी रिटायरमेंट जरूरतों के लिए EPF, ग्रैच्युटी और NPS जैसे पारंपरिक स्कीम्स पर ही निर्भर हैं. इससे यह भी स्पष्ट होता है कि लोगों की रिटायरमेंट पोर्टफोलियो में विविधता की कमी है, और वे नए विकल्पों की ओर कम झुकाव रखते हैं.
क्यों नहीं कर रहे लोग रिटायरमेंट की प्लानिंग?
इसका सबसे बड़ा कारण है वित्तीय जागरूकता की कमी. बहुत से लोग मानते हैं कि PF (प्रोविडेंट फंड) या कंपनी की ओर से मिलने वाला ग्रैच्युटी फंड ही काफी होगा, जबकि हकीकत में बढ़ती महंगाई, स्वास्थ्य खर्च और लंबी उम्र के चलते ये रकम अक्सर नाकाफी साबित होती है.
कुछ लोग निवेश की प्रक्रिया को जटिल मानते हैं, जबकि कुछ को अपनी मौजूदा सैलरी से बचत निकालना ही मुश्किल लगता है. खासतौर पर युवा कर्मचारी सोचते हैं कि रिटायरमेंट की चिंता करने का वक्त अभी नहीं आया है, जो एक खतरनाक भ्रम है.
क्या होना चाहिए उपाय?
वित्तीय सलाहकारों का कहना है कि रिटायरमेंट की योजना जितनी जल्दी शुरू की जाए, उतना बेहतर होता है. 25-30 की उम्र में अगर सही दिशा में निवेश शुरू किया जाए तो 60 की उम्र तक एक मजबूत फंड तैयार किया जा सकता है. इसके लिए NPS (नेशनल पेंशन स्कीम), म्यूचुअल फंड SIPs, और पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF) जैसे विकल्प काफी प्रभावी माने जाते हैं.