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सैलरी पर बात नहीं, देते हैं मनचाहा पैकेज… बेंगलुरु के CEO का हायरिंग का तरीका वायरल

किसी इंसान को जॉब करने की कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन इनमें सबसे बड़ी वजह सैलरी होती है. किसी कैंडिडेट के जॉब रिक्रूटमेंट प्रोसेस में सबसे कॉम्प्लेक्स प्रोसेस सैलरी नेगोसिएशन ही होता है. कई बार इस प्रोसेस से गुजरने के बाद कैंडिडेट को मनचाही सैलरी मिल जाती है और कई बार ऐसा नहीं भी होता. लेकिन क्या आपने सोचा है कि भारत में कोई ऐसी भी कंपनी है जो सैलरी नेगोसिएशन जैसा राउंड ही नहीं रखती?

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‘कैंडिडेट से सैलरी पर बातचीत नहीं होती’

बेंगलुरू के एक CEO ने लिंक्डइन पर बताया कि उन्होंने अपनी कंपनी की हाइरिंग प्रोसेस से सैलरी नेगोसिएशन को पूरी तरह हटा दिया है. उन्होंने बताया की कैंडिडेट से सैलरी पर बातचीत क्यों नहीं करते और उम्मीदवारों को उनकी मांगी गई पूरी रकम क्यों देते हैं. ये पोस्ट लिंक्डइन पर बेंगलुरू स्थित कंपनी Zoko के सह-संस्थापक और CEO अरजुन V द्वारा साझा की गई है.

आइये देखते हैं उन्होंने अपनी लिंक्डइन पोस्ट पर क्या लिखा-अपनी टीम के लिए 18 से अधिक सदस्यों को नियुक्त करने के बाद, मैंने विश्वस्तरीय प्रतिभा को बनाए रखने का राज खोज लिया है, हम सैलरी पर बातचीत नहीं करते. हम सचमुच वही सैलरी देते हैं जो वे मांगते हैं.

‘साल में एक बार करते हैं रिवीजन’

फिर हम साल में एक बार रिवीजन करते हैं. उन्होंने अपनी इस फैसले के पीछे कई कारण गिनाए. उनकी कैंडिडेट को मनचाही सैलरी मिलने से उससे टॉप परफरामेंस करवाई जा सकती है. सैलरी उसके स्किल को सम्मान देती है.

AI और एनालिटिक्स में काम करने वाली नीता एल्सा निनान ने पोस्ट किया-मुझे यह जानने की जिज्ञासा है कि ये एनुअल रिवीजन कैसे किए जाते हैं. यह बहुत अच्छा है कि यह मॉडल आपके लिए काम करता है, और मुझे यकीन है कि इसके परिणाम आशाजनक हैं.

मुझे लगता है कि यह इन्वेस्टमेंट और रिटर्न के बीच सही संतुलन खोजने के बारे में है, जिसमें मानव भावनाओं और बिहेवियर पैटर्न को ध्यान में रखा गया है. सीमित संसाधनों वाले स्टार्टअप्स या बड़े पैमाने पर रिक्रूटमेंट करने वाली बड़ी कंपनियों के लिए यह एक अलग खेल हो सकता है.

एक तीसरे व्यक्ति ने कहा,-इस पोस्ट का उपयोग रिक्रूटमेंट के लिए एक मिनी गाइड के रूप में किया जाना चाहिए. वहीं एक और यूजर ने लिखा, यह बहुत बढ़िया है और इसे अन्य रिक्रूटर्स द्वारा अपनाया जाना चाहिए. एक ऐसी स्थिति जहां रिक्रूटर नियोक्ता के लिए पैसे बचाने के लिए कैंडिडेट पर दबाव डाल रहा हो, वहां ऐसी पहल की तारीफ तो बनती है.

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