हिंदू शादी परंपरा में फेरों के समय अग्नि और सिंदूर का बड़ा महत्व होता है. इसके बगैर शादी अधूरी मानी जाती है. लेकिन गाजीपुर के मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना में कुछ अलग ही नजारा देखने को मिला. यहां 378 जोड़े जब सात फेरे ले रहे थे तो कहीं भी अग्नि प्रज्वलित नहीं हो रही थी. वहीं सिंदूरदान के वक्त भी सिंदूर की कमी देखने को मिली. स्थिति यह थी कि एक प्लेट में रखे थोड़े से सिंदूर से कई दूल्हों ने अपनी दुल्हन की मांग भरी.
आयोजकों पर दूल्हा-दुल्हन के परिवारवाले काफी नाराज दिखे. नाम नहीं छापने की शर्त पर उन्होंने कहा कि शादी के समय दुल्हन की पूरी मांग सिंदूर से भरने की परंपरा है. लेकिन आयोजकों को यह भी कम पड़ गया. वहीं, जिला समाज कल्याण अधिकारी राम नगीना यादव ने बताया कि सभी लोगों को सिंदूर की छोटी डिब्बी दी गई थी, लेकिन जल्दी-जल्दी में जिन लोगों ने खोज नहीं पाया, उन्होंने ही कागज के प्लेट वाली थाली में रखे सिंदूर से सिंदूरदान किया.
हर शादी पर 51 हजार रुपए खर्च
गाजीपुर ही नहीं, पूरे प्रदेश में मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना का आयोजन सरकारी स्तर पर किया जाता रहा है. इसके लिए प्रदेश सरकार प्रत्येक विवाह पर 51 हजार रुपए खर्च करती है, जिसमें से ₹35000 कन्या के खाते में जाता है, जबकि 10000 रुपये का सामान और ₹6000 शादी पर खर्च किया जाता है. इसी कड़ी में गाजीपुर में भी मंगलवार को 378 कन्याओं का विवाह संपन्न कराया गया.
सनातन परंपरा के अनुसार, हिंदू शादी में सिंदूर और सिंदूर के पात्र सिंधोरा का विशेष महत्व है. क्योंकि शादी के वक्त से ही यह विवाहिता के साथ रहता है. लेकिन मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना में सिंधोरा कहीं नहीं दिखा. बल्कि, सिंदूरदान के नाम पर पत्तलों में थोड़ा सा सिंदूर रखा दिखा. एक पत्तल में रखे थोड़े से सिंदूर से एक साथ चार जोड़ों की शादी कराई जा रही थी.
मार्च तक 1575 शादी कराए जाने का लक्ष्य
गाजीपुर में मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना के तहत मार्च तक 1575 शादी कराए जाने का शासन के द्वारा लक्ष्य दिया गया है, जिसमें मंगलवार को हुए 378 शादी के साथ ही कुल अब तक 910 शादियां संपन्न हो चुकी हैं. वहीं अब बचे हुए करीब 30 से 32 दिनों में करीब 665 शादी कराए जाने की जिम्मेदारी समाज कल्याण विभाग पर है. ऐसे में बचे हुए मात्र एक माह में यह शादी कैसे संपन्न हो पाएगी. यह भी अब एक बड़ा सवाल बना हुआ है.