‘योगी आदित्यनाथ का भी नाम लेने का बनाया गया था दबाव’, मालेगांव ब्लास्ट केस के गवाह का दावा

महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में हुए बम विस्फोट में छह लोगों की मौत के लगभग 17 साल बाद, स्पेशल एनआईए कोर्ट ने पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया. कोर्ट ने 31 जुलाई को दिए गए अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष इन सभी के खिलाफ विश्वसनीय और ठोस सबूत देने में विफल रहा.

इस मामले में अपने बयान से पलटने वाले एक विटनेस ने कोर्ट को बताया कि महाराष्ट्र एटीएस के अधिकारियों ने उस पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य आरएसएस पदाधिकारियों का नाम लेने के लिए दबाव बनाया था और इसके लिए हिरासत में प्रताड़ित किया था. यह बयान मामले में सभी सात आरोपियों को हाल ही में बरी किए जाने के बाद सार्वजनिक हुआ है.

मालेगांव विस्फोट में हुई थी 6 लोगों की मौत

गवाह मिलिंद जोशीराव उन 39 लोगों में शामिल थे जो मुकदमे के दौरान अपने बयान से मुकर गए. उन्हें ‘अभिनव भारत’ (2006 में पुणे में स्थापित एक हिंदुत्ववादी संगठन) के गठन के पीछे के मकसद को समझने में मदद के लिए कोर्ट में लाया गया था. महाराष्ट्र एटीएस ने अभिनव भारत पर 2008 के मालेगांव विस्फोट की साजिश रचने का आरोप लगाया था जिसमें छह लोग मारे गए थे और 100 से ज्यादा घायल हुए थे.

एटीएस के दावों का समर्थन करने के बजाय, मिलिंद जोशीराव ने स्पेशल एनआई कोर्ट को बताया कि एटीएस अधिकारी श्रीराव और परमबीर सिंह (पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर) ने उन्हें यातना देने की धमकी दी थी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य आरएसएस पदाधिकारियों का नाम लेने के लिए मजबूर किया था.

RSS नेताओं को फंसाने की हुई थी साजिश?

फैसले वाले दिन स्पेशल एनआईए कोर्ट के न्यायाधीश एके लाहोटी ने मिलिंद जोशीराव का बयान पढ़ा, जिसमें लिखा था, ‘एटीएस ने मेरे साथ एक आरोपी की तरह व्यवहार किया और मुझे सात दिनों तक अपने कार्यालय में रखा. अधिकारियों ने मुझ पर अपने बयान में योगी आदित्यनाथ, असीमानंद, इंद्रेश कुमार, प्रोफेसर देवधर, साध्वी और काकाजी सहित आरएसएस के पांच लोगों का नाम लेने के लिए दबाव डाला. उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि अगर मैंने ऐसा किया तो मुझे रिहा कर दिया जाएगा. जब मैंने इनकार कर दिया, तो डीसीपी श्रीराव और एसीपी परम बीर सिंह ने मुझे यातना देने की धमकी दी.’

न्यायाधीश ने आगे बताया कि मिलिंद जोशीराव का बयान ‘केवल एक एटीएस अधिकारी द्वारा लिखा/रिकॉर्ड किया गया था.’ अदालत ने कहा, ‘इससे साफ जाहिर होता है कि बयान अनैच्छिक था. अगर जांच अधिकारी इस तरह के बयान को साबित भी कर दें, तो भी यह अपर्याप्त हो सकता है, क्योंकि इससे इसकी स्वीकार्यता और ऐसे अनैच्छिक बयान की प्रामाणिकता पर संदेह पैदा होता है.’

महाराष्ट्र एटीएस के जांच में खामियां: कोर्ट

मुंबई के स्पेशल एनआईए कोर्ट ने मालेगांव ब्लास्ट केस में महाराष्ट्र एटीएस द्वारा की गई जांच में कई खामियों को भी उजागर किया. बाद इस केस को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने अपने हाथ में ले लिया था. आज तक से बातचीत के दौरान एक और विस्फोटक खुलासे में, एक पूर्व एटीएस अधिकारी ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि परमबीर सिंह (वही अधिकारी जिस पर गवाह मिलिंद जोशीराव पर दबाव बनाने का आरोप है) ने उन्हें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और अन्य प्रमुख पदाधिकारियों को गिरफ्तार करने का निर्देश दिया था. अधिकारी महबूब मुजावर ने दावा किया कि इस कदम का उद्देश्य भारत में ‘भगवा आतंकवाद’ का एक नैरेटिव गढ़ना था.

मालेगांव बम विस्फोट के लगभग एक महीने बाद, 28 अक्टूबर 2008 को एटीएस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और 7 नवंबर 2008 तक हिरासत में रखा. उन्हें सात दिनों से अधिक समय तक एटीएस कार्यालय में रखा गया. एटीएस, जिसने इस घटना की शुरुआती जांच की थी, उसने आरोप लगाया था कि विस्फोट कथित दक्षिणपंथी उग्रवादी समूह ‘अभिनव भारत’ से जुड़े व्यक्तियों द्वारा किया गया था, जो कथित तौर पर कर्नल पुरोहित द्वारा स्थापित एक संगठन है. इसमें दावा किया गया कि विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर पंजीकृत थी और सांप्रदायिक तनाव भड़काने की एक बड़ी साजिश के तहत कर्नल पुरोहित सहित अन्य आरोपियों को भी इसमें शामिल किया गया.

ATS और एनआईए की जांच में क्या मिला?  

एटीएस ने आगे आरोप लगाया था, ‘आरोपियों का इरादा भारत को आर्यावर्त नाम से एक हिंदू राष्ट्र में बदलने का था. भारतीय संविधान से मोहभंग होने के बाद, उन्होंने कथित तौर पर एक नया संविधान तैयार करने, निर्वासित सरकार स्थापित करने और लोगों को गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण देने की योजना बनाई थी. अभिनव भारत ने कथित तौर पर हिंदू राष्ट्र के निर्माण का विरोध करने वालों को खत्म करने की भी कोशिश की थी और कर्नल पुरोहित ने इन गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए 21 लाख रुपये जुटाए थे.’

बाद में एनआईए ने इस केस की जांच अपने हाथों में ली. एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट में एनआईए ने सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए प्रज्ञा ठाकुर सहित कई आरोपियों के खिलाफ आरोप हटा दिए गए. मालेगांव विस्फोट मामले में मुकदमा 2018 में शुरू हुआ और साढ़े छह साल से ज्यादा समय तक चला. सभी आरोपियों को बरी करते हुए, मुंबई के स्पेशल एनआई कोर्ट के जज ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि जिस मोटरसाइकिल में बम रखा गया था, वह साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की थी, या कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित ने विस्फोटकों का इंतजाम किया था.

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