संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश में पिछले साल प्रदर्शनों और उसके बाद बांग्लादेशी हिंदू, अहमदिया मुस्लिम और स्वदेशी समुदायों के कुछ सदस्यों को मानवाधिकार उल्लंघन का सामना करना पड़ा. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘बांग्लादेश की पूर्व सरकार, सुरक्षा और खुफिया सेवाएं, अवामी लीग पार्टी से जुड़े हिंसक तत्वों के साथ मिलकर पिछले साल के छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों के दौरान व्यवस्थित रूप से कई गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों में शामिल थीं.”
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल शेख हसीना सरकार के अपदस्थ होने के बाद, ‘‘हिंदुओं के घरों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और उपासना स्थलों पर व्यापक हमले हुए, विशेष रूप से ग्रामीण और तनाव वाले क्षेत्रों जैसे ठाकुरगांव, लालमोनिरहाट, दिनाजपुर, सिलहट, खुलना और रंगपुर जैसे अन्य स्थानों पर हमले हुए.”
इसमें कहा गया है, ‘‘हिंदुओं, अहमदिया मुसलमानों और चटगांव पहाड़ी इलाकों के मूल निवासियों को भी मानवाधिकारों के हनन का सामना करना पड़ा जबकि अलग-अलग धार्मिक और मूल निवासियों पर हमलों के बारे में लगभग 100 गिरफ्तारियां की गई हैं.” इसके अनुसार एक साक्षात्कारकर्ता ने कहा कि ठाकुरगांव में हिंदू अंत्येष्टि स्थलों और मंदिरों में तोड़फोड़ की गई.
अन्य गवाहों ने बताया कि उनकी संपत्ति पर हमलों के बाद, सांप्रदायिक हिंसा के डर से उन गांवों के लगभग 3,000-4,000 हिंदुओं ने भारत की सीमा के पास शरण ली. रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रभावित परिवारों ने व्यापक असुरक्षा की भावना और भारी वित्तीय नुकसान की बात कही है.
इसके अनुसार हिंसक भीड़ द्वारा हिंदू प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर करने के कई आरोप सामने आए. रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश में उपासना स्थलों, विशेषकर मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर हमलों का लंबा रिकॉर्ड रहा है. इसके अनुसार पांच से 15 अगस्त के बीच, मीडिया और अन्य स्थानीय स्रोतों ने कई क्षेत्रों में हिंदू, अहमदिया, बौद्ध और ईसाई समुदायों से जुड़े उपासना स्थलों पर हमलों की सूचना दी. इसमें कहा गया है कि मेहरपुर में अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) के मंदिर में भी आगजनी की गई.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने कहा कि बांग्लादेश में पिछले साल गर्मियों में छह सप्ताह के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ छात्रों के नेतृत्व में हुए प्रदर्शनों पर की गई कार्रवाई में 1,400 से अधिक लोगों की मौत होने की आशंका है.