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आज रात आसमान से होगी उल्कापिंड की बारिश, जानें क्या है टूटते तारों का विज्ञान

अगर आप अंतरिक्ष में रुचि रखते हैं, तो रविवार की रात का नजारा आपके लिए अद्भुत हो सकता है. इस बार 12 और 13 अगस्त को शूटिंग स्टार्स के समागम का खास नजारा दिखेगा. वीर बहादुर सिंह नक्षत्र शाला (तारामण्डल ) के खगोलशास्त्री अमर पाल सिंह ने बताया कि वैसे तो लगभग रात आठ बजे के बाद से ही ये अद्भुत नजारा दिखना शुरू हो जाएगा. लेकिन 12 तारीख की देर रात से 13 तारीख की सुबह तक ये उल्का वृष्टि का बेहद ही खूबसूरत नजर आएगा. उन्होंने बताया कि इस बार अगस्त 12 से 13 की रात को आप एक घण्टे में कम से कम लगभग 60 से लेकर 100 टूटते हुए तारे तक देख सकते हैं, हालांकि इनका दिखना मौसमी घटनाओं पर भी निर्भर करता है.

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अगस्त के इस महीने में होने वाली उल्का वृष्टि को परसीड्स उल्का वृष्टि भी कहा जाता है, क्योंकि ये उल्काएं पर्सियस तारामंडल से आती हुई दिखाई देती हैं. उल्काएं जिस तारामंडल के बिंदु की तरफ से आती हुई दिखाई देती हैं, उसे खगोल विज्ञान की भाषा में मीटियर रेडिएंट प्वाइंट (उल्का बिकीर्णक बिंदु) कहा जाता है. मगर यह ध्यान में रखना ज़रूरी है कि किसी तारामंडल के एक बिंदु से उल्काओं का ये नजारा सिर्फ एक दृष्टि भ्रम है. वास्तव में तारे हमसे बहुत दूर हैं, लेकिन उल्काएं करीब 100 से 120 किलोमीटर ऊपर ही बायुमंडल में पहुंचने पर उद्दीप्त हो जाती हैं, उल्का वृष्टि किसी न किसी धूमकेतु से ही संबंधित होती हैं.

क्या है टूटते तारों का साइंस

किसी धूमकेतु द्वारा जोकि लंबी दीर्घ कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं. उनसे निकले हुए कई कण उनकी कक्षाओं में चक्कर लगाते रहते हैं और उनके द्वारा छोड़े गए मलबे से गुजरती है तो उसी दौरान छोटे, बड़े आकार के ये टुकड़े जो कि कंकड़ पत्थर, जलवाष्प, गैसों ,धूल कणों आदि के बने हुए होते हैं. ये अंतरिक्षीय मलबे के टुकड़े जब पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल होने पर गुरूत्वाकर्षण बल और वायुमंडलीय घर्षण के कारण क्षण भर के लिए चमक लिए जल उठते हैं और रात के आसमान में चमकते हुए दिखाई देते हैं और कुछ समय में ही गायब हो जाते हैं. उसे ही खगोल विज्ञान की भाषा में उल्का और सामान्य भाषा में टूटता हुआ तारा यानी कि शूटिंग स्टार कहा जाता है. इनकी गति लगभग 70 किलोमीटर प्रति सेकंड से भी ज्यादा हो सकती है.

ऐसे होता तारे के टूटने का आभास

अधिकांश उल्काएं 130 से 180 किलोमीटर की ऊंचाई पर जलकर राख हो जाती हैं. यही आकाश में टूटते हुए तारों का आभास कराते हैं. जिन्हें ही आम बोलचाल की भाषा में टूटते हुए तारे भी कहा जाता है. जबकि वास्तव में ये टूटते हुए तारे नहीं होते हैं, इन्हें ही खगोल विज्ञान की भाषा में उल्काएं कहा जाता है, जो कि वैसे तो छिटपुट तौर से तो वर्षभर होता रहता है लेकिन ये कुछ ख़ास महीनों में ज्यादा नजर आती हैं.

 

खगोलविद अमर पाल सिंह ने बताया कि आप रात के आकाश का अनुसरण करें और इन्हें देखने के लिए बिना किसी खास दूरबीन या अन्य सहायक उपकरणों के भी यह नजारा भव्य दिखाई देगा, इसके लिए किसी भी प्रकार के खास उपकरणों की आवश्यक्ता नहीं पड़ेगी, आप सीधे तौर पर अपने घरों से ही किसी भी साफ स्वच्छ अंधेरे वाली जगह से सावधानी पूर्वक ही अपनी साधारण आंखों से ही इस नजारे का लुत्फ उठा सकते हैं.

 

क्या थी टूटते तारे को लेकर पुरानी सोच

पुराने समय में लोगों की मान्यताएं थीं कि इस आकाश में प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक तारा है जब उन्हें कोई “टूटता हुआ तारा” ( शूटिंग स्टार) दिखाई देता था तो उन्हें लगता था कि कोई व्यक्ति जरूर ही इस लोक से उस लोक की महा यात्रा पर निकला है, लेकिन धीरे धीरे कुछ हद तक अंध विश्वास दूर होता गया और आज सभी लोग जानते हैं कि टूटते हुए तारे वास्तविक तारे नहीं होते हैं, बल्कि वो वास्तव में उल्काएं होती हैं, जो रात में कुछ देर के लिए चमक उठती हैं और एक सुंदर नजारा बनाती हैं.

 

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