UPSC में लेटरल एंट्री को लेकर बहस छिड़ गई है. इस बीच, केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का बयान आया है. उन्होंने कहा, लेटरल एंट्री पर कांग्रेस देश को गुमराह कर रही है. वैष्णव ने कांग्रेस शासन में डॉ. मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया की लेटरल एंट्री का हवाला दिया. वैष्णव का कहना था कि कांग्रेस भ्रामक दावे कर रही है. इससे अखिल भारतीय सेवाओं में एससी/ एसटी वर्ग की भर्ती पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
दरअसल, UPSC ने 17 अगस्त को एक विज्ञापन जारी किया, जिसमें लेटरल एंट्री के जरिए 45 जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल की भर्तियां निकालीं. लेटरल भर्ती में कैंडिडेट्स बिना UPSC की परीक्षा दिए रिक्रूट किए जाते हैं. इसमें आरक्षण के नियमों का भी फायदा नहीं मिलता है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसका विरोध किया और कहा, महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती कर खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है.
विवाद बढ़ा तो केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मोर्चा संभाला. उन्होंने सफाई में कहा, नौकरशाही में लेटरल एंट्री नई बात नहीं है. 1970 के दशक से कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों के दौरान लेटरल एंट्री होती रही है और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी ऐसी पहलों के प्रमुख उदाहरण हैं. मंत्री ने तर्क दिया कि नौकरशाही में लेटरल एंट्री के लिए 45 पद प्रस्तावित हैं. ये संख्या 4,500 से ज्यादा अधिकारियों वाली भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की कैडर शक्ति का 0.5 प्रतिशत है और यह किसी भी सेवा के रोस्टर में कटौती नहीं करेगा.
Lateral entry
INC hypocrisy is evident on lateral entry matter. It was the UPA government which developed the concept of lateral entry.
The second Admin Reforms Commission (ARC) was established in 2005 under UPA government. Shri Veerappa Moily chaired it.
UPA period ARC…
— Ashwini Vaishnaw (@AshwiniVaishnaw) August 18, 2024
अश्विनी वैष्णव ने गिनाए हस्तियों के नाम
लेटरल एंट्री नौकरशाहों का कार्यकाल तीन साल का है और दो साल का विस्तार संभव है. वैष्णव ने कहा कि मनमोहन सिंह 1971 में तत्कालीन विदेश व्यापार मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में एक लेटरल एंट्री के रूप में सरकार में आए और वित्त मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री बने. उन्होंने कहा कि अन्य प्रमुख लोगों में टेक्नोक्रेट सैम पित्रोदा और वी. कृष्णमूर्ति, अर्थशास्त्री बिमल जालान, कौशिक बसु, अरविंद विरमानी, रघुराम राजन और अहलूवालिया का नाम शामिल हैं.
राजन ने मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में काम किया
बिमल जालान ने सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार और बाद में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में कार्य किया. विरमानी और बसु को क्रमशः 2007 और 2009 में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में भी नियुक्त किया गया था. रघुराम राजन ने मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में भी कार्य किया और बाद में 2013 से 2016 तक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर के रूप में कार्य किया.
अहलूवालिया को शिक्षा जगत और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से सरकारी भूमिकाओं में लाया गया. उन्होंने 2004 से 2014 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया. वैष्णव ने कहा, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि को 2009 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था.
कांग्रेस लेकर आई लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट
वैष्णव ने X पर लिखे पोस्ट में कहा, यह UPA सरकार ही थी, जो लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट लेकर आई. दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) 2005 में UPA सरकार में ही लाया गया था. इस आयोग की अध्यक्षता वीरप्पा मोइली ने की थी. UPA सरकार के कार्यकाल की ARC ने सुझाव दिया था कि जिन पदों पर स्पेशल नॉलेज की जरूरत है, वहां विशेषज्ञों की नियुक्ति होनी चाहिए. NDA सरकार ने ARC की इस सिफारिश को लागू करने के लिए पारदर्शी तरीका अपनाया है और निष्पक्ष तरीके से भर्तियां की जाएंगी.
वहीं, केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर हमला बोला है. मेघवाल ने कहा, राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं. वो एक संवैधानिक पद पर हैं. वो इन चीजों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. उनका कहना है कि लेटरल एंट्री के जरिए आरएसएस के लोगों की भर्ती हो रही है. डॉ. मनमोहन सिंह भी लेटरल एंट्री का हिस्सा हैं. हम पूछना चाहते हैं कि 1976 में आपने उन्हें सीधे वित्तीय सचिव कैसे नियुक्त कर दिया? आपके योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष (मोंटेक सिंह अहलूवालिया) भी लेटरल एंट्री के जरिए आए. आपको ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिलेंगे. लेटरल एंट्री आपने शुरू की. 2005 में प्रशासन सुधार आयोग का गठन किया गया. इसकी रिपोर्ट सामने आ गई. आप कह रहे हैं कि हम आरक्षण खत्म कर रहे हैं. जब आप भर्तियां कर रहे थे तो आप क्या कर रहे थे? अब अचानक उनका ओबीसी के प्रति प्रेम उमड़ पड़ा. राजीव गांधी ने लोकसभा में कहा था कि वो ओबीसी के लिए आरक्षण के खिलाफ हैं. अब अचानक उनका (कांग्रेस) ओबीसी के प्रति प्रेम जाग गया है और वे एससी/एसटी ओबीसी छात्रों को गुमराह कर रहे हैं.