यूपी का कन्नौज अपने सुगंध और इत्र के लिए काफी प्रसिद्ध है. इसे भारत की इत्र राजधानी के रूप में जाना जाता है. कन्नौज में ही 200 से अधिक इत्र भट्टियाँ हैं और यह इत्र और गुलाब जल का बाज़ार केंद्र है. यहां एक ऐसा इत्र बनता है, जो औषधीय गुणों से भरपूर है. इसे नागरमोथा इत्र के नाम से जाना जाता है. इसकी खुशबू बेहद खास होती है और इसका इस्तेमाल आम तौर पर पाक मसालों, इत्र और अगरबत्ती बनाने में किया जाता है.
आयुर्वेद के अनुसार, नागमोथा कोयल अपने डिकॉन्गेस्टेंट और पाचन में सुधार करने में मदद करता है. इसे अनुशंसित मात्रा में लिया जाए. नागरमोथा एक प्रजाति की घास के रूप में उगता है, जिसका पौधा छोटा होता है और इसकी जड़ काफी मजबूत होती है. नागरमोथा का उपयोग हजारों साल से एक विशेष जड़ी-बूटी के रूप में किया जा रहा है. इसके पत्ते, बीज व जड़ सभी में अनेक फायदेमंद गुण पाए जाते हैं.
नागरमोथा इत्र पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादा पैदा होता है. घास फूस जैसा दिखने वाला यह पौधा जिसको लोग इकट्ठा करके कन्नौज के इत्र व्यापारियों को दे देते हैं. इसके बाद इसका इत्र कन्नौज में निकाला जाता है. इसको तेज आंच में पकाया जाता है. वहीं इसकी डेग 400 से 500 किलो की होती है. वहीं इसकी कीमत की बात करे तो तो मार्केट में पिछले साल यह 18000 रूपये किलो तक बिका. वही इस साल 22000 रूपये किलो तक इसकी कीमत पहुंच गई.
नगरमोथा इत्र का प्रयोग कई तरह की औषधीय में भी किया जाता है. जोड़ों के दर्द, घुटनों के दर्द में यह बेहद फायदेमंद होता है. वहीं पूजा की हवन सामग्री में भी इसका प्रयोग होता है. नागरमोथा का इत्र निकल जाने के बाद इसका जो बुरादा बचता है वह भी प्रयोग में आ जाता है, जिसके मसाले से अगरबत्ती बनाई जाती है.