‘ये World War हारने जैसा…’, जानिए डॉलर को लेकर क्यों चिंता में हैं Trump, सता रहा बड़ा डर

अमेरिका की ओर से नए टैरिफ (US Tariff) लागू होने की तारीख नजदीक आ रही है. अब तक राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से जापान, ब्राजील, साउथ कोरिया, इंडोनेशिया समेत तमाम देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ (Reciprocal Tariff) का ऐलान किया जा चुका है, जो 1 अगस्त से लागू होने वाले हैं. इस बीच ट्रंप लगातार ब्रिक्स देशों को लेकर अपना रुख सख्त किए हुए हैं और उनपर एक्स्ट्रा टैरिफ (Extra Tariff) की धमकी दे रहे हैं, ब्रिक्स पर ट्रंप की सख्ती के पीछे सबसे बड़ी वजह डॉलर का प्रभुत्व (Dollar Global Dominance) है और इससे जुड़ी चिंता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने यहां तक कह दिया कि, ‘इसका रिजर्व करेंसी स्टेटस खोना, एक विश्व युद्ध हारने जैसा होगा.’

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डॉलर का प्रभुत्व कम होना संकट
पहले बताते हैं डॉलर को लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए बयान के बारे में, तो उन्होंने अमेरिकी डॉलर के वैश्विक प्रभुत्व पर जोरदार चेतावनी देते हुए कहा है कि इसका आरक्षित मुद्रा (Reserve Currency) का दर्जा खोना World War हारने जैसा ही होगा. अपने बयान में ट्रंप ने दावा किया है कि डॉलर में गिरावट अमेरिका को पूरी तरह से बदल देगी और ये पहले जैसा देश नहीं रहेगा.

Trump के इस बयान और चिंता के पीछे बड़ा कारण ब्रिक्स देशों की डॉलर के प्रभुत्व को कमजोर करने के स्ट्रेटजी और उठाए जा रहे कदम हैं, क्योंकि BRICS देश डॉलर से अलग अन्य वित्तीय विकल्प बनाने के लिए प्रयास तेज किए हुए हैं और कई तो US Dollar के बजाय अपनी स्थाई करेंसी में ट्रेड कर रहे हैं. इसी वजह से ट्रंप खफा हैं और ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका समेत अन्य) पर आक्रामक टैरिफ लगाने की धमकी दी है, अगर वे डी-डॉलरीकरण (De-Dollarization) पर आगे बढ़ते हैं.

8 दशक से डॉलर है रिजर्व करेंसी
1944 से अमेरिकी डॉलर (US Dollar) अन्य देशों द्वारा उपयोग की जाने वाली प्राथमिक आरक्षित मुद्रा बनी हुई है. दुनिया भर के देशों के सेंट्रल बैंक अपनी फाइनेंशियल सेफ्टी के लिए अपने पास डॉलर रिजर्व रखते हैं. इसके अलावा देश, व्यवसाय और लोग ट्रेड के लिए इसका ही ज्यादातर इस्तेमाल करते हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो करीब 90% के आस-पास विदेशी मुद्रा लेनदेन डॉलर में ही होता है और यही इसे World’s Reserve Currency बनाता है.

हालांकि, BRICS पश्चिमी फाइनेंशियल सिस्टम को दरकिनार करने के लिए सक्रिय रूप से उपाय कर रहा है और इसमें स्विफ्ट पेमेंट नेटवर्क के विकल्प और कमोडिटी-बेस्ड ब्रिक्स करेंसी पर चर्चा शामिल है. हालांकि, कोई एकीकृत मुद्रा अभी तक उभरकर सामने नहीं आई है, लेकिन अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में ब्रिक्स देशों के विस्तार ने व्यापार के बढ़ते आकार को डॉलर की पहुच से बाहर करने का काम किया है. कुछ केंद्रीय बैंक भी अमेरिकी ट्रेजरी में अपनी होल्डिंग कमते हुए Gold Reserve बढ़ा रहे हैं.

1973 के बाद सबसे ज्यादा इस साल टूटा डॉलर
Donald Trump द्वारा ग्लोबल फाइनेंशियल इंफ्रास्ट्रक्चर को अपना हथियार बनाया है और ईरान (2012 में) के अलावा रूस (2022 में) को विश्वव्यापी अंतरबैंक वित्तीय दूरसंचार (SWIFT) सोसायटी से बाहर रखा है, तब से तमाम देशों ने अमेरिकी डॉलर और अमेरिकी नेतृत्व वाली वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर निर्भरता कम करने की कोशिश की है. BRICS, जो कि World GDP में 35% से अधिक का योगदान देता है, अगर ग्लोबल ट्रेड में डॉलर के उपयोग को कम कर देगा, तो ये अमेरिका के लिए संकट की वजह बनेगा और इसका असर भी देखने को मिलने लगा है.

डॉलर दशकों में अपनी सबसे बड़ी गिरावट का सामना कर रहा है और यूरो, पेसो और येन जैसी करेंसी इसके मुकाबले तेजी से बढ़ रही हैं. Dollar साल 2025 में ही अब तक Yen-Euro के मुकाबले 10 फीसदी से ज्यादा गिर चुका है. शुरुआती महीनों में तो इसकी वैल्यू 1973 के बाद सबसे ज्यादा गिरी है. US Dollar Index (DXY) गिरकर 97.48 तक आ गया था, जो कि बीते साल के आखिर में 109 के पार पहुंच गया था.

विश्लेषकों की ये है प्रतिक्रिया
बीते दिनों JP Morgan की ओर से जारी एक रिपोर्ट में एनालिस्ट्स ने कहा था कि Trump Tariff पॉलिसी वैश्विक ग्रोथ में रुकावट पैदा कर सकती हैं. इसमें कहा गया था कि इससे महंगाई का खतरा बढ़ेगा और मंदी की 40% संभावना रहेगी, जिसका असर सीधा डॉलर की वैल्यू पर दिखेगा. इसके अलावा भी कई फाइनेंशियल एनालिस्ट मिली-जुली प्रतिक्रिया जाहिर कर रहे हैं और कह रहे हैं कि डॉलर का वर्चस्व धीरे-धीरे कम हो रहा है, लेकिन इसके आसन्न पतन की बात करना अभी जल्दबाजी होगी. एक ग्लोबल इकोनॉमिस्ट के मुताबिक, डॉलर तेजी से कहीं नहीं जा रहा है, लेकिन इसी जमीन जरूर बदल रही है.

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