उत्तर प्रदेश के कानपुर के एक शख्स को पूरे 7 साल बाद जज नियुक्त किया गया है. इस शख्स की नियुक्ति कोई मामूली नहीं है बल्कि प्रदीप कुमार नामक व्यक्ति पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया गया था. इस के बाद अब कई साल तक कोर्ट में लड़ाई लड़ने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदीप कुमार के हक में फैसला सुना दिया है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में प्रदीप कुमार को जज (एचजेएस कैडर) के रूप में नियुक्त करने का आदेश दिया है, याचिकाकर्ता प्रदीप कुमार पर साल 2002 में पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया गया था. इसी के बाद साल 2014 में इनको बरी कर दिया गया था. बरी होने के दो साल बाद साल 2016 में इन्होंने यूपी हायर न्यायिक सेवा का एग्जाम दिया था और 27वां पद हासिल किया था, लेकिन नियुक्ति नहीं की गई थी.
प्रदीप कुमार पर क्या आरोप लगा था?
प्रदीप कुमार को साल 2002 में पाकिस्तान के लिए जासूसी गतिविधियों को अंजाम देने का आरोप लगा था. प्रदीप उस समय 24 साल के थे और लॉ ग्रेजुएट थे. प्रदीप पर राजद्रोह, आपराधिक साजिश और आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के कई प्रावधानों का आरोप लगाया गया था. साल 2014 में कानपुर की एक अदालत ने उन्हें मुकदमों में बरी कर दिया था, लेकिन इन मामलों में उन्हें जेल में भी रहना पड़ा था.
कानपुर जिला मजिस्ट्रेट को सैन्य प्राधिकरण की जुलाई 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, जिस पर हाई कोर्ट ने ध्यान दिया, प्रदीप कुमार को 13 जून 2002 को “सिस्टर खुफिया एजेंसियां” Sister Intelligence Agencies से प्राप्त इनपुट के आधार पर एसटीएफ और सैन्य खुफिया (Military Intelligence ) ने गिरफ्तार किया था. रिपोर्ट में प्रदीप कुमार के पिता का भी जिक्र है और कहा गया था कि कुमार के पिता को भी 1990 में रिश्वतखोरी के आरोप में एक अतिरिक्त न्यायाधीश की सेवा से निलंबित कर दिया गया था.
रिपोर्ट में कथित तौर पर कहा गया था कि कुमार पैसे हासिल करने के आसान तरीकों को तलाश करने के चलते फैजान इलाही नामक शख्स के कॉन्टैक्ट में आए. फैजान इलाही एक फोटोस्टेट की दुकान चलाता था और उस ने कथित तौर पर प्रदीप कुमार से पैसे के बदले टेलीफोन पर कुछ जानकारी प्रदान करने के लिए कहा था. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि कुमार ने पैसे के बदले में कानपुर की संवेदनशील जानकारी दी.
हालांकि , पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार होने के पूरे 2 दशक के बाद अब प्रदीप कुमार (46) जज बनने के बहुत करीब पहुंच गए हैं और कोर्ट ने उन के हक में फैसला सुना दिया है. पिछले हफ्ते, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को जून 2002 में गिरफ्तार किए गए कानपुर निवासी प्रदीप कुमार को अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का पत्र जारी करने का आदेश दिया है.
2014 में मामले में किया गया बरी
2014 में उन्हें बरी करते हुए अपने आदेश में, कानपुर की एक अदालत ने कहा, अभियोजन पक्ष को यह प्रदर्शित करना होगा कि आरोपी ने शब्दों, संकेतों के माध्यम से सरकार के प्रति घृणा या अवमानना व्यक्त की है या उकसाने का प्रयास किया है. इस मामले में, सरकार के खिलाफ ऐसी कार्रवाइयों के दावों को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष के गवाहों के रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है.
प्रदीप कुमार की नहीं हुई थी नियुक्ति
साल 2014 में मुकदमों से बरी होने के 2 साल बाद प्रदीप कुमार ने साल 2016 में यूपी हायर न्यायिक सेवा (सीधी भर्ती) (UP Higher Judicial Service ) परीक्षा दी थी. इस एग्जाम में उन्होंने मेरिट लिस्ट में 27वां स्थान हासिल किया था. 18 अगस्त 2017 को हाईकोर्ट ने अन्य चयनित अभ्यर्थियों के साथ उनकी नियुक्ति को राज्य सरकार से रेकमेंड किया. हालांकि, कुमार को नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया गया था.
इसी के बाद नियुक्ति पत्र जारी न होने के बाद प्रदीप कुमार ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने उनकी याचिका के जवाब में अगस्त 2017 में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह मामले को दो सप्ताह के अंदर राज्यपाल के सामने पेश करें और संबंधित अधिकारियों से बातचीत करने के बाद अगले महीने के अंदर राय दें. अदालत ने राज्य को निर्देश दिया कि अगर आवश्यक हो तो नियुक्ति के साथ आगे बढ़ें. इसके अतिरिक्त, अदालत ने याचिकाकर्ता की नियुक्ति के संबंध में अपनी सिफारिश पर कार्रवाई में देरी और “उदासीन रवैये” के लिए राज्य पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था.
आदेश को चुनौती नहीं दी गई. इसके बाद, राज्य सरकार द्वारा मामले की समीक्षा की गई, जिसने 26 सितंबर, 2019 के एक कार्यालय ज्ञापन (office memorandum) के जरिए याचिकाकर्ता को नियुक्त करने से इनकार कर दिया था.
प्रदीप ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया
इसी के बाद प्रदीप कुमार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा फिर खटखटाया. उन्होंने कोर्ट से राज्य सरकार के 2019 के आदेश को रद्द करने और यूपी उच्च न्यायिक सेवा में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की मांग करते हुए याचिका दायर की.
कब होगी प्रदीप कुमार की नियुक्ति
6 दिसंबर को पारित उच्च न्यायालय के आदेश में, जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि “याचिकाकर्ता का चरित्र सत्यापन 2 हफ्ते के अंदर होने के बाद” प्रदीप कुमार को मौजूदा पद के लिए नियुक्त किया जाए. इसी के चलते सभी औपचारिकताएं पूरी होने पर, याचिकाकर्ता को 15 जनवरी 2025 से पहले नियुक्ति पत्र जारी किया जा सकता है. याचिकाकर्ता को आज की तारीख में मौजूदा पदों के लिए नियुक्त किया जा सकता है.
अदालत ने आगे कहा, राज्य के पास इस बात पर पहुंचने के लिए कोई सबूत मौजूद नहीं है कि याचिकाकर्ता ने किसी विदेशी खुफिया एजेंसी के लिए काम किया हो. साथ ही कोर्ट ने कहा, किसी अपराध का संदेह होना कोई अपराध या किसी नागरिक के चरित्र पर दाग नहीं है.