आपके शरीर में पाई जाने वाली ये चीज है खतरनाक, डायबिटीज के मरीज हो जाएं सर्तक

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के एक अध्ययन से पता चला है कि कोलेजन जो मानव शरीर में सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला प्रोटीन है, टाइप 2 डायबिटीज की कंडीशन को भयावह बना सकता है. आपको बता दें कि टाइप 2 डायबिटीज जिंदगी भर रहने वाली बीमारी है जिससे दुनिया भर में 50 करोड़ से अधिक लोग जूझ रहे हैं.

अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के एक जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च में बताया गया है कि त्वचा, हड्डियों और संयोजी ऊतकों में पाया जाने वाला एक प्रमुख प्रोटीन कोलेजन I इस बीमारी को और बिगाड़ने में कैसे मदद करता है. इस शोध के निष्कर्ष त्वचा, जोड़ों और ओवरऑल हेल्थ के लिए लिए लिए जाने वाले कोलेजन सप्लिमेंट्स की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े करते हैं. हालांकि यह स्टडी शरीर में पाए जाने वाले नैचुरल कोलेजन के बारे में हैं ना कि कोलेजन सप्लिमेंट्स के बारे में.

कोलेजन क्या है और लोग सप्लिमेंट क्यों लेते हैं?
कोलेजन एक जरूरी प्रोटीन है जो त्वचा, हड्डियों और टेंडन जैसे ऊतकों का ढांचा बनाता है और कोशिकाओं को सहारा देने और अंगों को सुरक्षित बनाए रखने के लिए एक ढांचे के रूप में काम भी करता है. जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती है, कोलेजन का उत्पादन स्वाभाविक रूप से कम हो जाता है जिससे स्किन पर झुर्रियां आना, जोड़ों में अकड़न और ऊतक कमजोर हो जाते हैं.

इसी वजह से भारत समेत पूरी दुनिया में कोलेजन सप्लिमेंट्स की लोकप्रियता बढ़ी है जो पाउडर, कैप्सूल और ड्रिंक्स के रूप में बाजार में उपलब्ध हैं. ये सप्लिमेंट्स प्लांट्स बेस्ड, एनिमल बेस्ड और मरीन बेस्ड होते हैं.

त्वचा की लोच, जोड़ों के स्वास्थ्य और मांसपेशियों की रिकवरी में सुधार के लिए बाजार में उपलब्ध इन सप्लीमेंट्स को अक्सर कम कैलोरी और कार्बोहाइड्रेट-मुक्त विकल्प के रूप में प्रचारित किया जाता है, जिससे ये डायबिटीज रोगियों के लिए भी आकर्षक बन जाते हैं.

नया अध्ययन क्या कहता है?
आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी कानपुर और चित्तरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान, कोलकाता के सहयोग से किया गया यह अध्ययन कोलेजन I और एमिलिन के बीच परस्पर क्रिया पर केंद्रित है.  एमिलिन पैंक्रियास  में इंसुलिन के साथ-साथ बनने वाला एक हार्मोन है.

टाइप 2 डायबिटीज में, एमिलिन हानिकारक गुच्छे बना सकता है जो इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे ब्लड शुगर को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है.

अध्ययन में पाया गया कि कोलेजन I एक सहायक की तरह काम करता है जो इन हानिकारक गुच्छों को तेजी से बनने में मदद करता है, उन्हें अधिक टॉक्सिक बनाता है. इससे इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को और अधिक नुकसान पहुंचता है और डायबिटीज और भी बदतर हो जाता है.

कोलेजन बिगाड़ देता है कंडीशन

इस स्टडी के लिए रिसर्च टीम ने डायबिटीज से ग्रस्त चूहों और मानव नमूनों का परीक्षण किया था जिससे पता चला है कि जैसे-जैसे डायबिटीज बढ़ती है, कोलेजन और एमिलिन दोनों का स्तर बढ़ता जाता है. इससे पैंक्रियास (अग्न्याशय) को और भी अधिक नुकसान पहुंचता है.

आईआईटी बॉम्बे के बायोसाइंसेज और बायोइंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर शमिक सेन, जिन्होंने इस प्रॉजेक्ट का नेतृत्व और ऑब्जर्वेशन किया था, बताते हैं, ‘ऐसा लगता है कि एमिलिन कोलेजन की सतह पर पूरी तरह से एक परत चढ़ा देता है जिससे स्थिर समूह बनते हैं जिन्हें कोशिकाओं के लिए साफ करना ज्यादा मुश्किल होता है. यह हमारे लिए एक बहुत ही आश्चर्यजनक खोज थी.’

यह अध्ययन यह भी बताता है कि कुछ डायबिटीज ट्रीटमेंट्स, जो सेल्स के अंदर की रिएक्सन्स को टार्गेट करते हैं, रोग को बढ़ने से पूरी तरह क्यों नहीं रोक पाते हैं.  प्रोफेसर सेन के अनुसार, ‘अगर हम एमिलिन और कोलेजन के बीच के संबंध को नहीं तोड़ते हैं तो हम पैंक्रियास के टॉक्सिंस से पूरी तरह छुटकारा नहीं पा सकते हैं.’

रिसर्च टीम अब क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) का उपयोग करके एक विस्तृत मॉडल बना रही है जो यह दिखाता है कि एमिलिन और कोलेजन कैसे परस्पर क्रिया करते हैं.  इससे नई दवाओं को डिजाइन करने में मदद मिल सकती है.

क्या कोलेजन सप्लीमेंट्स जोखिम पैदा करते हैं?

यहां आपको साफ कर दें कि यह अध्ययन शरीर में मौजूद नैचुरल कोलेजन I की जांच करता है, न कि कोलेजन सप्लिमेंट्स की. इसमें यह नहीं जांचा गया है कि कोलेजन सप्लिमेंट्स टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम को बढ़ाता है. हालांकि निष्कर्ष इस बात को लेकर चिंताएं पैदा कर सकते हैं कि क्या सप्लिमेंट्स वाला कोलेजन डायबिटीज से पीड़ितों में इसी तरह के एमिलिन-कोलेजन इंटरैक्शन को बढ़ा सकता है.

हालांकि कुछ अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि कोलेजन सप्लिमेंट्स ब्लड शुगर को स्थिर करके या इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार करके डायबिटीज रोगियों को फायदे पहुंचा सकते हैं. हालांकि इन दोनों कंडीशन के लिए फिलहाल और अधिक रिसर्च की जरूरत है.

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