धमतरी: भारत भूमि के बीच रचे बसे छत्तीसगढ़ में भी मां दुर्गा विभिन्न रूपों में अनेकों जगह विराजमान है. उनका एक रूप धमतरी जिले के छोटी करेली गांव में महानदी के किनारे बैठी रिक्छिन दाई के रूप में है जो अपना आशीर्वाद सभी भक्तों को देती हैं. रिक्छिन देवी का मंदिर है, लेकिन अंदर कोई मूर्ति नहीं है. रिक्छिन देवी की पहचान अलग तरीके से होती है.
बता दे कि मगरलोड ब्लाक के करेली गांव के एक बाड़ा पर रिक्छिन देवी की पहचान लाल पाले माने डांग और घोड़ा हैं. लोग इन्हीं की पूजा करते हैं. गांव के लोग उन्हें अपने गांव की कुल देवी के रूप में पूजते हैं. साल में दो बार, दशहरा और होली में यह मंदिर खुलता है. इसलिए माता का दर्शन करने मगरलोड ब्लॉक के अलावा धमतरी, रायपुर, गरियाबंद, महासमुंद, बालोद, कांकेर, राजनांदगांव, दुर्ग, भिलाई सहित बड़े शहरों के लोग आते हैं.

माता खुद मंदिर से बाहर आती हैं
दशहरा और होली पर्व वर्ष भर में दो दिन ऐसे होते हैं, जब रिक्छिन दाई खुद भक्तों को दर्शन देने के लिए अपने स्थान से बाहर आती हैं. वैसे तो हफ्ते में दो दिन मां रिक्छिन के मंदिर खुलते हैं, इस दिन देवी दाई को देव बाजा के साथ झलकाया जाता है. इसके बाद आगे-आगे देवी सवारी यानी घोड़ा और उसके बाद अस्त्र-शस्त्र लेकर सभी भक्त पालकी में जाते हैं. भीड़ के बीच देवी दाई गांव के शीतला माता के मंदिर तक आती हैं. कहा जाता है कि मां शीतला और रिक्छिन दाई बहनें हैं. दोनों आपस में केवल इसी दिन मिलती हैं और सुख-दुख बांटती हैं.
देवी को खुश करने बलि की परंपरा भी चलती है
बताया जाता है कि माता रिक्छिन के आंगन से कोई भक्त खाली नहीं लौटतीं. सभी के झोले भर देती हैं. इसी कारण माता के भक्त दशहरा के दिन आते हैं और मां रिक्छिन के दर्शन करके मन्नत मांगते हैं. अगले वर्ष तक उनकी मन्नत पूरी हो जाती है. जब भक्तों की आशा पूरी हो जाती है, तो वे अपनी श्रद्धा के अनुसार माता को भेंट देते हैं. बकरी की बलि देकर मां रिक्छिन को काम पूरा करने के लिए धन्यवाद देते हैं. गुरुवार को माता मंदिर करेली छोटी से मगरलोड भक्तों को दर्शन देने जाएगी. भीड़ को व्यवस्थित करने पुलिस बल की तगड़ी व्यवस्था की गई है. रिच्छिन माता की महिमा अपार है. अदृश्य रूप में माता भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं.