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चाइल्ड सेलिंग रैकेट के चंगुल में फंसे तीन कपल, मामला कोर्ट तक पहुंचा फिर मिली गोद लिए बच्चों की कस्टडी

महाराष्ट्र (Maharashtra) में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें तीन कपल पहले चाइल्ड सेलिंग रैकेट का शिकार हुए क्योंकि उन्हें बच्चा गोद लेना था. बच्चों को गोद लेने के बाद ये मामला कोर्ट पहुंचा क्योंकि लीगल प्रोसेस के जरिए उन्हें बच्चे नहीं मिले थे. अब कानून दांव-पेंच के बाद उन्हें बच्चे मिल सकेंगे. दरअसल, तीन अलग-अलग दंपतियों ने बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए एक-एक बच्चे को गोद लिया था. अब कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि बच्चे अपने दत्तक माता-पिता के पास जा सकेंगे लेकिन उन्हें कुछ वक्त के लिए मुंबई के महालक्ष्मी स्थित बाल गृह में रखा जाएगा.

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दंपतियों ने जरूरी कानून का पालन किए बिना बच्चों को उनके बायोलॉजिकल माता-पिता से गोद लिया था. बाद में पाया गया कि बच्चों को उनके जैविक माता-पिता ने बेच दिया था, जिसके बारे में मुंबई की विक्रोली पुलिस ने आरोप लगाया था कि यह एक चाइल्ड सेलिंग रैकेट का हिस्सा हैं. जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की बेंच ने दंपति द्वारा दायर तीन याचिकाओं पर सुनवाई की. याचिका मांग की गई थी कि उनके दत्तक बच्चे की कस्टडी उन्हें वापस दी जाए.

कोर्ट ने सुनवाई करते हुए क्या कहा?

बेंच ने कहा कि एक अहम फैक्ट, जिसे ध्यान में रखा जाना चाहिए, वह यह है कि याचिकाकर्ताओं को कानून में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना, बायोलॉजिकल माताओं द्वारा नाबालिग बच्चों की कस्टडी सौंप दी गई थी और बायोलॉजिकल माताओं या बायोलॉजिकल पैरेंट्स द्वारा अपने बच्चों की कस्टडी की मांग करते हुए कोई आवेदन नहीं किया गया था. बेंच ने यह भी कहा कि गोद लेने वाले पैरेंट्स को FIR में आरोपी के रूप में नहीं रखा गया है. बेंच ने दत्तक ग्रहण विलेख (Adoption Deeds) की वैधता पर विचार करने से इनकार कर दिया.

कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दत्तक माता-पिता ने गोद लेने के लिए कानून के तहत निर्धारित प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया, लेकिन उसे बच्चों के हित को सबसे ऊपर रखना चाहिए. बेंच ने कहा कि डेढ़ से तीन साल की उम्र के ये बच्चे शिशु अवस्था से ही अपने दत्तक माता-पिता की देखरेख में थे.

कैसे कोर्ट पहुंचा मामला?

27 अप्रैल, 2024 को विक्रोली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के तहत केस दर्ज किया था, जिसमें दावा किया गया कि बच्चों को वैध रूप से गोद नहीं लिया गया था और उनके बायोलॉजिकल पैरेंट्स ने शिशुओं को याचिकाकर्ताओं के हाथों बेच दिया था.

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने संबंधित बच्चे के जैविक माता-पिता के साथ दत्तक ग्रहण विलेख (Adoption Deeds) एग्जिक्यूट किया था. दलीलों में दावा किया गया कि याचिकाकर्ता आर्थिक रूप से सक्षम हैं और हर बच्चे की जरूरतों और शिक्षा का ध्यान रखने की स्थिति में हैं. बेंच ने अपने आदेश में कहा कि उसे ‘दुर्भाग्यवश’ यह ध्यान रखना होगा कि गोद लेने की प्रक्रिया रजिस्टर्ड नहीं है, बल्कि केवल नोटराइज्ड है, जो वैध नहीं है.

अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा स्थापित केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA-Central Adoption Resource Authority) द्वारा निर्धारित दत्तक ग्रहण प्रोटोकॉल का बिल्कुल भी पालन नहीं किया गया है.

‘याचिकाकर्ताओं को तुरंत मिले बच्चों की कस्टडी…’

बेंच ने कहा कि तीनों बच्चे तकनीकी रूप से छोड़े हुए और समर्पित किए गए या अनाथ नहीं थे. इसलिए बाल कल्याण समिति द्वारा पारित आदेश, जिसमें बच्चों की अभिरक्षा आश्रय गृह को सौंपने का आदेश दिया गया, अवैध था.

कोर्ट ने कहा कि बच्चे याचिकाकर्ताओं के परिवारों के साथ तब से हैं, जब वे शिशु थे और इसलिए अब वे उनके परिवार का हिस्सा हैं. बेंच ने कहा, “बच्चों के सर्वोपरि हित को ध्यान में रखते हुए, हम बाल कल्याण समिति और बाल आशा ट्रस्ट को निर्देश देते हैं कि वे बच्चों की कस्टडी तुरंत संबंधित याचिकाकर्ताओं को सौंप दें.”

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