राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की सहाड़ा तहसील में महेंद्रगढ़ है. यहां बारिश की कामना के लिए ग्रामीणों ने एक अनोखी और मजेदार परंपरा निभाई. कई दिनों से गांव में बारिश नहीं हो रही थी. फसलों और खेती-बाड़ी के लिए पानी की ज़रूरत को देखते हुए ग्रामीणों ने पारंपरिक मान्यता के अनुसार बारिश के लिए गधों की पूजा करने का निश्चय किया.
पूर्व सरपंच रामधन सोमानी की अगुवाई में आयोजित इस विशेष कार्यक्रम में पूरे गांव के लोग शामिल हुए. गांव के लोग मानते हैं कि गधों की पूजा करने और उन्हें मिठाई खिलाने से देवता प्रसन्न होते हैं और अच्छी बारिश होती है. इसी मान्यता के तहत गांव में गधों को सजाया-संवारा गया. उन्हें फूलों की मालाएं पहनाई गईं, माथे पर तिलक लगाया गया और विधिवत उनकी आरती उतारी गई.
गधों को गुलाब जामुन खिलाए गए
इस कार्यक्रम की खास बात यह रही कि पूजा के बाद गधों को गुलाब जामुन खिलाए गए. ग्रामीणों का कहना था कि जब तक बारिश नहीं होती, वे विभिन्न टोटके करते हैं, और जैसे ही झमाझम बारिश होती है, वे गधों को मिठाई खिलाकर अपनी परंपरा पूरी करते हैं. इस बार भी शनिवार को गांव में अच्छी बारिश हुई, जिसके बाद ग्रामीणों ने गधों को गुलाब जामुन की दावत दी.
गांव में यह आयोजन केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें गधों के मालिकों को भी विशेष सम्मान दिया गया. उन्हें साफा पहनाकर आदर जताया गया. इससे ग्रामीणों के बीच आपसी भाईचारा और सामाजिक एकता का संदेश भी देखने को मिला.
गांववालों ने बताई इसकी वजह
गांववालों ने बताया कि गांव में पिछले कई दिनों से वर्षा के लिए प्रयास किए जा रहे थे. ग्रामीणों को पूरी आस्था थी कि यदि बारिश होती है, तो गधों को सम्मानित करना और मिठाई खिलाना अनिवार्य है. इसलिए जैसे ही आसमान से बरसात शुरू हुई, इस परंपरा को पूरे हर्षोल्लास के साथ निभाया गया. गांव के बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग सभी इस आयोजन में शामिल हुए. यह नजारा देखने में जितना अनोखा था, उतना ही मजेदार और दिलचस्प भी रहा.
स्थानीय लोगों का कहना है कि महेंद्रगढ़ गांव की यह परंपरा दिखाती है कि कैसे ग्रामीण समाज आस्था और विश्वास के साथ प्रकृति से जुड़ा हुआ है. लोक मान्यताओं और रीति-रिवाजों के माध्यम से लोग न केवल अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं, बल्कि सामूहिक रूप से जीवन की चुनौतियों का सामना करने का साहस भी जुटाते हैं. बारिश की कामना में गधों की पूजा और उन्हें गुलाब जामुन खिलाने का यह आयोजन न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय ग्रामीण संस्कृति की जीवंत झलक भी प्रस्तुत करता है.