फतेहपुर में मकबरा-मंदिर विवाद ने मचाया बवाल: सनातनियों ने की तोड़फोड़, तनाव के बीच पुलिस की सख्ती

फतेहपुर: जिले में नवाब अब्दुल समद के मकबरे को लेकर मंदिर-मकबरा विवाद ने आज उग्र रूप ले लिया. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के जिलाध्यक्ष मुखलाल पाल और हिंदूवादी संगठनों की अपील पर सैकड़ों सनातनी कर्पूरी ठाकुर चौराहे पर जुटे और मकबरे की ओर जुलूस निकाला. पुलिस की भारी बैरिकेडिंग को तोड़कर कुछ प्रदर्शनकारी मकबरे में घुस गए, जहां मजारों में तोड़फोड़ की गई और पूजा-अर्चना की गई. इस घटना ने हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया. पुलिस ने 10 नामजद और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया, जबकि शहर में गंगा-जमुनी तहजीब पर सवाल उठने लगे हैं.

उग्र हुआ मकबरा-मंदिर विवाद

फतेहपुर के आबूनगर रेडड्या में मंगी मकबरे को हिंदू संगठनों ने ठाकुर जी विराजमान मंदिर बताते हुए रविवार को जिलाधिकारी से पूजा की अनुमति मांगी थी. मठ-मंदिर संरक्षण संघर्ष समिति ने मकबरे को मंदिर बताकर सौंदर्यीकरण और शिखर निर्माण की मांग की. प्रशासन ने अनुमति नहीं दी, लेकिन मकबरे के आसपास भारी पुलिस बल और बैरिकेडिंग तैनात की. इसके बावजूद, सोमवार सुबह 11 बजे बजरंग दल के वीरेंद्र पांडे और हिंदू महासभा के मनोज त्रिवेदी के नेतृत्व में सनातनी मकबरे की ओर बढ़े.

प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बैरिकेडिंग को ध्वस्त कर मकबरे में प्रवेश किया. कुछ लोगों ने बाहर और अंदर की मजारों को क्षतिग्रस्त किया, जबकि मनोज त्रिवेदी ने पूजा-अर्चना की. ‘जय श्री राम’ और ‘ठाकुर जी की जय’ के नारे गूंजे. उधर, मुस्लिम समुदाय के लोग भी मकबरे की ओर बढ़े, जिससे माहौल तनावपूर्ण हो गया. पुलिस अधीक्षक अनूप कुमार सिंह ने मुस्लिम पक्ष को रोका और बल प्रयोग कर भीड़ को तितर-बितर किया. जिलाधिकारी रवींद्र सिंह ने मौके पर पहुंचकर दोनों पक्षों को शांत करने की कोशिश की और निष्पक्ष जांच का वादा किया.

हिंदू संगठनों का दावा

हिंदू संगठनों का कहना है कि मकबरे में कमल, त्रिशूल, परिक्रमा मार्ग, धार्मिक कुआं और छत्र की जंजीर मौजूद हैं, जो इसे प्राचीन मंदिर सिद्ध करते हैं. भाजपा जिलाध्यक्ष मुखलाल पाल ने कहा कि दूसरे समुदाय ने मंदिर को मस्जिद में बदला. यह हमारी आस्था का केंद्र है. हम हर कीमत पर पूजा करेंगे. अवैध कब्जा बर्दाश्त नहीं होगा. हिंदू संगठनों ने दावा किया कि उनके पास पर्याप्त साक्ष्य हैं और प्रशासन की जिम्मेदारी होगी अगर स्थिति बिगड़ती है.

मुस्लिम पक्ष का गुस्सा

राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के मोहम्मद नसीम ने घटना को निंदनीय बताया. उन्होंने कहा कि यह सैकड़ों साल पुराना मकबरा है, जो सरकारी दस्तावेजों में 753 नंबर खतौनी में दर्ज है. इसे मंदिर बताकर माहौल खराब किया जा रहा है. क्या हर मस्जिद-मकबरे के नीचे मंदिर ढूंढा जाएगा? यह लोकतंत्र नहीं, राजतंत्र है. उन्होंने आंदोलन की चेतावनी दी और प्रशासन से कार्रवाई की मांग की. मुस्लिम पक्ष ने मकबरे को मुगल सूबेदार नवाब अब्दुल समद खान की ऐतिहासिक धरोहर बताया.

ऐतिहासिक तथ्य और विवाद की जड़

ऐतिहासिक दस्तावेज, जैसे “फतेहपुर: ए गजेटियर” (1906, पृष्ठ 199–200) और “इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया” (1881, खंड 12, पृष्ठ 83), मकबरे को नवाब अब्दुल समद खान का बताते हैं, जो मुगल काल के वरिष्ठ सूबेदार थे. इसकी मुगलकालीन स्थापत्य शैली इसे महत्वपूर्ण धरोहर बनाती है. हिंदू संगठनों के मंदिर के दावों ने फतेहपुर सीकरी जैसे अन्य विवादों को हवा दी है, जहां शेख सलीम चिश्ती की दरगाह को कामाख्या मंदिर बताया गया था.

इतिहासकारों ने ऐसी मांगों पर चिंता जताई है. पुलिस ने वीडियो और फोटो के आधार पर 10 नामजद और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ थाना कोतवाली नगर में मुकदमा दर्ज किया. धारा 190, 191(2), 191(3), 301, 196 बीएनएस, 07 सीएलए एक्ट और लोक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई शुरू हुई. अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए टीमें गठित की गई हैं. मकबरे के आसपास पुलिस और पीएसी बल तैनात है और क्षेत्र में प्रवेश निषेध है.

एडीजी और आईजी ने कानून व्यवस्था की निगरानी की. इस घटना ने फतेहपुर की सामुदायिक सौहार्द को झकझोर दिया. सोशल मीडिया पर लोग गुस्सा और चिंता व्यक्त कर रहे हैं. कुछ इसे सनातन धर्म की रक्षा का कदम बता रहे हैं, तो कुछ इसे भाईचारे को नुकसान पहुंचाने वाला कृत्य मानते हैं. समाजवादी पार्टी के माता प्रसाद पांडेय ने इसे ‘समरसता को खत्म करने की साजिश’ बताया.

जिलाधिकारी ने निष्पक्ष जांच और कठोर कार्रवाई का आश्वासन दिया है. यह विवाद ऐतिहासिक स्थलों और धार्मिक आस्थाओं के टकराव को दर्शाता है. प्रशासन को पुरातात्विक सबूतों और दस्तावेजों के आधार पर जांच करनी चाहिए, ताकि सच सामने आए. दोनों समुदायों के बीच संवाद जरूरी है, ताकि फतेहपुर की शांति बनी रहे. इस तरह की घटनाएं न केवल सामाजिक तनाव बढ़ाती हैं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को भी खतरे में डालती हैं.

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