अमेरिकी चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद डोनाल्ड ट्रंप अब चार साल के लिए राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. 20 जनवरी, 2025 को वह राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे. लेकिन इससे पहले ही उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि सत्ता संभालने के पहले ही दिन वह किन मुद्दों पर कदम उठाएंगे.
अमेरिका में अन्य देशों से वैध और अवैध तरीकों से आने वाले लोगों की बढ़ती संख्या लंबे समय से बहस का मुद्दा रही है. चुनाव प्रचार के दौरान भी ट्रंप ने इस समस्या को हल करने का वादा किया था. अब उन्होंने ऐलान किया है कि वह बर्थराइट सिटिजनशिप का नियम खत्म कर देंगे. इसका मतलब यह है कि अमेरिका में जन्म लेने वाले लोगों को अब स्वतः नागरिकता नहीं मिलेगी. ट्रंप के इस फैसले से लाखों भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों में चिंता बढ़ गई है. आखिर यह बर्थराइट सिटिजनशिप क्या है, और इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
क्या होती है बर्थराइट नागरिकता?
दुनिया के हर देश में नागरिकता मिलने के अलग-अलग तरीके होते हैं. मिसाल के तौर पर अगर भारत की बात ही करें तो भारतीय नागरिकों के बच्चे अपने आप भारत के नागरिक माने जाते हैं. इसी तरह अमेरिका का कानून कहता है कि कोई भी शख्स जो अमेरिका की धरती पर पैदा होता है उसे अमेरिका का नागरिक माना जाएगा.
गृहयुद्ध के बाद, कांग्रेस ने जुलाई 1868 में 14वें के तहत अमेरिका में नागरिकता के नियम बदले थे. उस संशोधन ने काले लोगों सहित सभी के लिए नागरिकता का आश्वासन दिया गया था.इसमें यह भी नहीं देखा जाता कि उस बच्चे के माता-पिता वैध रूप से अमेरिका आए या अवैध रूप से.
जन्म के साथ ही मिलने वाली इस नागरिकता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मामला 1898 में आया, जब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सैन फ्रांसिस्को में चीनी प्रवासियों के घर पैदा हुए वोंग किम आर्क अमेरिकी नागरिक थे. क्योंकि उनका जन्म अमेरिका में हुआ था.
ट्रंप को क्या आपत्ति है?
डोनाल्ड ट्रंप इन नियमों को बकवास बताते हुए इन्हें खत्म करने की वकालत करते रहे हैं. चूंकि ये कानून दशकों से लागू है तो इसका फायदा उठाकर कई देशों के लाखों लोग अमेरिका की नागरिकता पा चुके हैं. मौलिक रूप से इसका प्रावधान उन लोगों के लिए रखा गया था जो पहले दास थे और उनकी आने वाली पीढ़ियों को भारत की नागरिकता दी जानी थी.
डोनाल्ड ट्रंप और उनके समर्थकों का मानना है कि इस नियम का गलत इस्तेमाल हो रहा है. इसलिए अमेरिकी नागरिक बनने के लिए नियम और सख्त करने की जरूरत है. ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी ये मुद्दा उठाया गया था मगर उस वक्त कोई ठोस कदम इस ओर नहीं बढ़ाया गया.
भारत पर असर क्या होगा?
तो अगर डोनाल्ड ट्रंप इन नियमों को खत्म कर देते हैं तो इसका असर लाखों लोगों पर पड़ेंगे. प्यू रिसर्च के मुताबिक लगभग 48 लाख भारतीय-अमेरिकी लोग इससे प्रभावित होंगे क्योंकि इसमें से 16 लाख लोग अमेरिका में ही पैदा हुए हैं. ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप के इन नए नियमों से ये लोग अमेरिका के नागरिक ही नहीं रह जाएंगे. इस बात को ट्रंप भी मानते हैं. उन्होंने यह कहा भी था कि इस नियम को खत्म किए जाने के बाद परिवार अलग हो जाएंगे और जिन लोगों के पास नागरिकता नहीं होगी उन्हें उनके देशों में भेजा जा सकता है.
अमेरिकन इमिग्रेशन काउंसिल की 2011 की एक फैक्टशीट में चेतावनी दी गई थी कि जन्मसिद्ध नागरिकता को खत्म करने से अमेरिकी नागरिकों के लिए अपनी नागरिकता साबित करना मुश्किल हो जाएगा. क्योंकि फिलहाल जन्म प्रमाण पत्र से ही नागरिकता साबित होती है. फैक्टशीट में यह भी कहा गया है कि इस नियम को रद्द करने से लाखों अमेरिकी बच्चे भी प्रभावित होंगे और अमेरिकी सरकार के लिए एक प्रशासनिक बोझ पैदा होगा.
किन देशों में बर्थराइट के हिसाब से नागरिकता मिलती है?
अमेरिका ही नहीं, ऐसे लगभग 30 देश हैं जहां बर्थराइट के हिसाब से नागरिकता मिलती है. कनाडा, अर्जेंटिना, बोलिविया, इक्वाडोर, फिजी, ग्वाटेमाला, क्यूबा और वेनेजुएला जैसे कई मुल्क ये अधिकार देते रहे. हालांकि कई जगहें इस मामले में ज्यादा सख्त हैं. कई देशों में नागरिकता के लिए बच्चे के माता-पिता दोनों को वहां का होना चाहिए. ज्यादा लीगल जानकार मानते हैं कि इस संशोधन में बदलाव तब तक संभव नहीं है, जब तक कि संविधान में ही बदलाव न हो जाए. इसके लिए कांग्रेस और स्टेट दोनों का ही समर्थन चाहिए.