शारदीय नवरात्र की अष्टमी के अवसर पर शक्तिपीठों में सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। मां महामाया मंदिर में परंपरा के अनुसार, सरगुजा राजपरिवार के मुखिया टीएस सिंहदेव ने अष्टमी और नवमी की संधि पूजा की। बाकी शक्तिपीठों में भी संधि पूजन किया गया। अष्टमी के अवसर पर कन्या भोज का भी आयोजन किया गया।
मां महामाया मंदिर में राजपरिवार के मुखिया TS सिंहदेव दोपहर करीब 1 बजे संधि पूजन के लिए पहुंचे। उन्होंने मां महामाया की पूजा अर्चना करते हुए कुष्मांड की बलि दी। संधि पूजन के बाद श्रद्धालुओं के लिए फिर से मंदिर खोल दिया गया। संधि पूजन के दौरान करीब दो घंटे श्रद्धालुओं के लिए मंदिर बंद रहा। बता दें कि मां महामाया सरगुजा राजपरिवार की कुलदेवी हैं।
पहले थी नरबलि की परंपरा
टीएस सिंहदेव ने कहा कि, परंपरा के अनुसार मां महामाया की संधि पूजा की और कुष्मांड की बलि दी। बचपन में सुनते थे कि संधि पूजन में नरबलि दी जाती थी। बाद में भैसों और जानवरों की बलि दी जाती थी। समय के साथ इसमें बदलाव आया है और अब कुष्मांड की बलि दी जाती है।
संधि पूजा के साथ ही पैलेस में दशहरा की शुरुआत
परंपरा है कि जब संधि पूजा कर महाराजा-राजा पैलेस लौटते हैं तो सबसे पहले क्षेत्र के आदिवासी वर्ग से जुड़े लोग जिन्हें अपना रक्षक मानते हैं। वे जब सिंह दरवाजा अर्थात् फाटक पूजा करते हैं और फाटक खोलकर अंदर प्रवेश के लिए आमंत्रित करते हैं। तभी पैलेस में प्रवेश मिलता है, इसके पहले नौबतखाना की पूजा होती है।
दशहरा पर क्षेत्र की रक्षा-सुरक्षा के लिए हाथी-घोड़े, अश्व गज की पूजा राजा के सेना और शक्ति के प्रतीक के रूप में की जाती है। शस्त्र पूजा के बाद नगाड़ा पूजा और निशान पूजा सहित अन्य परंपरानुसार पूजा की जाती है। संधि पूजन के साथ ही आज से सरगुजा पैलेस में दशहरा पर्व की शुरुआत भी हो गई है।
शक्तिपीठों में श्रद्धालुओं का तांता
शारदीय नवरात्र के अष्टमी के अवसर पर सुबह से ही देवी मंदिरों के साथ दुर्गा पंडालों में भक्तों की लाइन लगी रही। मां महामाया मंदिर में सुबह 4 बजे से ही श्रद्धालुओं की लाइन लग गई। पूरे दिन श्रद्धालुओं की कतार मंदिर में लगी रही।
मां दुर्गा मंदिर गांधी चौक, संत हरकेवल दास मंदिर, वनदेवी सांडबार के साथ ही काली मंदिरों में भी विधि विधान से संधि पूजा हुई। मंदिरों और दुर्गा पंडालों में संधि पूजा के साथ कन्या भोज का भी आयोजन किया गया।