परिवार के लिए ट्रेन रोकने वाले TTE को 15 साल बाद मिली राहत, हाईकोर्ट ने सभी सजा आदेश रद्द किए

बिलासपुर में एक अनोखा मामला सामने आया है, जहां ट्रेन में चेन पुलिंग करने पर सजा पाए एक टीटीई को हाईकोर्ट ने 15 साल बाद बरी कर दिया है। साल 2012 में रेलवे ने दो बार चेन पुलिंग के आरोप में टीटीई की वेतनवृद्धि रोकी, डिमोशन किया और वेतन कटौती की सजा दी थी।

मामला साल 2012 का है। रेलवे ने 2 RPF जवानों के गवाह के आधार पर टीटीई को सजा दी थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि TTE ने चेन तो खींची पर उनका परिवार नहीं आया। हाईकोर्ट ने 15 साल बाद उन्हें राहत देते हुए सजा को रद्द कर दिया है। कोर्ट के मुताबिक आरोप स्पष्ट नहीं थे और ऐसे में सजा देना उचित नहीं था।

ये है पूरा मामला

दरअसल आस्टिन हाइड रेलवे में TTE पद पर पोस्टेड हैं। 15 जुलाई 2010 में आस्टिन बिलासपुर रेलवे स्टेशन से यशवंतपुर एक्सप्रेस (ट्रेन नंबर 2252) में बतौर यात्री सफर कर रहे थे।

इस दौरान उन्होंने ट्रेन की अलार्म चेन दो बार खींची। उन पर आरोप लगा कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि उनके परिवार की महिलाएं और सामान ट्रेन में चढ़ाई जा सके।

रेलवे ने कराई जांच, विभागीय जांच में दोषी

रेलवे प्रशासन ने इस मामले की विभागीय जांच कराई, जिसमें आरपीएफ के दो जवानों को गवाह बनाया गया। उन्होंने अपने बयान में बताया कि आस्टिन हाइड ने चेन खींची थी और कारण बताया कि उनका परिवार नहीं पहुंचा।

2012 में उन्हें ट्रेन में चेन पुलिंग के लिए दोषी माना गया। जिसके बाद उनके दो वेतनद्धि रोकने के साथ ही डिमोशन और दो साल के लिए वेतन कटौती की सजा दी गई। इस फैसले के खिलाफ उन्होंने विभागीय अपील और पुनरीक्षण अपील की, जिसे खारिज कर दिया गया।

कैट ने भी रेलवे की कार्रवाई को बताया सही, अपील खारिज

जिसके बाद आस्टिन हाइड ने अपने खिलाफ की गई कार्रवाई को केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के जबलपुर बेंच में चुनौती दी। सभी पक्षों को सुनने और जांच रिपोर्ट के आधार पर कैट ने केस को खारिज कर दिया। साथ ही रेलवे के फैसले को बरकरार रखा।

हाईकोर्ट में दायर की याचिका, अब पक्ष में आया फैसला

साल 2012 में दी गई सजा के खिलाफ टीटीई आस्टिन हाइड लगातार केस लड़ते रहे। 2013 और 2014 में केस खारिज होने के बाद 2015 में उन्होंने कैट में मामला प्रस्तुत किया, जिसके बाद साल 2024 में उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें विभागीय जांच और कैट के फैसले को चुनौती दी।

इसमें तर्क दिया गया कि ट्रेन में चेन खींचना अपने आप में अपराध या अनैतिक नहीं है, जब तक यह सिद्ध न हो कि यह बिना उचित और पर्याप्त कारण के किया गया हो। याचिका में रेलवे अधिनियम 1989 की धारा 141 के प्रावधान का भी उल्लेख किया गया, जिसमें भी यह स्पष्ट है कि यदि कोई यात्री बिना पर्याप्त कारण चेन खींचे तो ही यह अपराध है।

विभाग के साथ ही केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) के आदेश को रद्द कर दिया है। जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने कहा कि केवल चेन खींचना कोई अपराध नहीं है जब तक कि यह साबित न हो जाए कि यह बिना किसी उचित और पर्याप्त कारण के किया गया था।

विभागीय जांच और आरोप स्पष्ट नहीं

याचिका में बताया गया कि गवाहों ने केवल चेन खींचने की बात कही है। लेकिन, यह साबित नहीं किया कि बिना पर्याप्त कारण के उन्होंने चेन पुलिंग कर ट्रेन रोकी थी। आरोप पत्र में भी यह नहीं बताया गया कि अनुचित कार्य के कारण उन्होंने चेन पुलिंग की थी।

हाईकोर्ट बोला- अस्पष्ट आरोप पर दी सजा इसलिए निरस्त

इस मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की बेंच में हुई। याचिकाकर्ता की दलीलों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि अनुशासनिक प्राधिकारी, अपीलीय प्राधिकारी, पुनरीक्षण प्राधिकारी और कैट, सभी ने गंभीर त्रुटि की और अस्पष्ट आरोपों पर ही सजा को बरकरार रखा।

हाईकोर्ट ने सभी आदेशों (2012, 2013, 2014 और 2023) को रद्द कर दिया है। साथ ही याचिकाकर्ता आस्टिन हाइड को दी गई सजा समाप्त कर दी। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में विभागीय अधिकारियों को यह साबित करना आवश्यक है कि कर्मचारी ने बिना कारण चेन खींची, तभी यह कदाचार माना जाएगा।

Advertisements
Advertisement