ट्यूशन टीचर ने किया था रेप… सुप्रीम कोर्ट ने 40 साल बाद सुनाया ऐतिहासिक फैसला..

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक रेप के केस को लेकर ऐतिहासिक सुनवाई की. यह केस 1-2 नहीं बल्कि 40 साल पुराना है. एक स्कूल की छात्रा के साथ ट्यूशन टीचर ने साल 19 मार्च 1984 में दुष्कर्म किया. इसी के बाद कोर्ट ने आरोपी टीचर के अपराध और सजा की पुष्टि की है और फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि अगर पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में कोई चोट के निशान नहीं है तब भी उसकी गवाही आरोपी को दोषी सिद्ध करने के लिए काफी है.

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इस केस में आरोपी की तरफ से रखे गए पक्ष में कहा गया था कि पीड़िता के निजी अंग में किसी भी तरह की चोट नहीं थी तो फिर यह रेप कैसे हुआ, इसी को लेकर अब कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि ऐसे केस में जिसमें अगर पीड़िता के निजी अंग पर चोट नहीं भी है और बाकी सबूत दुष्कर्म होने की पुष्टि कर रहे हैं तो इसको बलात्कार ही माना जाएगा. इस केस में आरोपी ने तर्क दिया था कि बलात्कार के आरोप साबित नहीं किए जा सकते क्योंकि लड़की के निजी अंगों पर कोई चोट नहीं थी और आरोप लगाया था कि लड़की की मां उसके खिलाफ झूठे आरोप लगा रही थी.

क्या है पूरा केस?

यह केस साल 1984 का है, 19 मार्च को रोजाना की तरह पीड़िता ट्यूशन पढ़ने के लिए गई. ट्यूशन टीचर ने कमरे में बैठी बाकी दो लड़कियों को किन्हीं कामों से बाहर भेज दिया और फिर कमरा बंद करके पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया. बाकी दो लड़कियां बाहर खड़े होकर दरवाजा बजाती रही, लेकिन उसने दरवाजा नहीं खोला. इसी के बाद लड़की की दादी वहां पहुंची और उन्होंने अपनी पोती को बचाया. इस मामले के बाद जब लड़की का परिवार FIR करने जा रहा था और आरोपी के परिवार और मोहल्ले के लोगों ने उन्हें एफआईआर करने से रोकने के मकसद से डराया और धमकाया लेकिन कुछ देरी के बाद उन्होंने एफआईआर दर्ज की थी.

कोर्ट ने क्या-क्या कहा?

कोर्ट ने इस केस की सुनवाई में कहा है कि बलात्कार मामले में अभियोजक की गवाही आरोपी को दोषी ठहराने के लिए काफी है. दोनों दलीलों को खारिज करते हुए, जस्टिस संदीप मेहता और प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने कहा, सिर्फ इसलिए कि मेडिकल एविडेंस में, कोई बड़ी चोट के निशान नहीं हैं, यह अभियोजक के पेश किए गए बाकी विश्वसनीय सबूत को खारिज करने की वजह नहीं बन सकती है.

जस्टिस वराले ने कहा, हर केस में यह जरूरी नहीं है कि अगर कथित रूप से रेप हुआ हो तो पीड़िता के प्राइवेट पार्ट पर चोट लगी हो, यह केस के फैक्ट पर निर्भर करता है. कोर्ट ने कहा, हम इस बात को दोहराते हैं कि पीड़ित के प्राइवेट पार्ट पर चोटों का न होना हमेशा पीड़ित पक्ष के केस को कमजोर नहीं करता है.

इस केस में बेंच ने यह भी कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र का स्थापित सिद्धांत है कि बलात्कार के मामले में अभियोजक के सबूत का वही महत्व है जो घायल गवाह का है और अभियोजन पक्ष की एकमात्र गवाही के आधार पर आरोपी को दोषी माना जा सकता है. आरोपी ने पीड़िता की मां को लेकर भी आरोप लगाए इस पर कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की मां के चरित्र से इस केस का कोई लेना-देना नहीं है.

न्याय में हुई देरी

विलियम ग्लैडस्टोन ने कहा था न्याय में देरी न्याय न मिलने के बराबर है. यह केस 40 साल पुराना है. जब इस केस पर सुनवाई की जा रही है और सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना रही है तब तक पीड़िता और आरोपी की उम्र काफी बढ़ गई है. यह मामला तीन स्तर के न्यायपालिका प्रणाली की दुखद स्थिति को भी सामने रखता है.

एक ट्यूशन टीचर ने साल 1984 में पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया था. ट्रायल कोर्ट ने 1986 में उस व्यक्ति को दोषी ठहराया था. हालांकि, ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखने में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 26 साल लगा दिए इसी के बाद सुप्रीम कोर्ट को भी ऐसा करने में 15 साल लग गए.

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