फर्जी वारंट बनाकर दो भाइयों को किया अरेस्ट, कोर्ट में खुली पोल… छुट्टी के दिन जारी हुआ था ‘आदेश’

सोचिए अगर एक सुबह दरवाजे पर दस्तक के साथ आपकी आंख खुले. दरवाजा खोले तो सामने पुलिस वाले खड़े हों और कहें कि चलो तुमको गिरफ्तार कर ले चलना है तुम्हारे खिलाफ कोर्ट से गैर जमानती वारंट आया है. आप लाख दुहाई दें कि हमें पता ही नहीं कौन सा केस है, हमारे ऊपर कोई केस नहीं लेकिन पुलिस कोर्ट से जारी वारंट दिखाकर गिरफ्तार कर ले. उससे भी आगे, जब आपको कोर्ट में पेश किया जाए तो पता चले कि पुलिस जिस NBW के आदेश को लेकर गिरफ्तार कर लाई है वह आदेश ही फर्जी है. तब क्या होगा. यह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. लखनऊ कोर्ट से एक फर्जी गैर जमानती वारंट जारी हुआ और उस फर्जी गैर जमानती वारंट से लखीमपुर खीरी से पकड़ कर लाए गए दो भाइयों की आपबीती ने अदालत को साख पर भी सवाल खड़ा किया है.

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लखनऊ से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर लखीमपुर के गोला इलाके में है एक छोटा सा मजरा छोटेलालपुर. जहां पर दो भाई प्रेमचंद और मुन्नालाल रहते हैं. 29 अप्रैल की सुबह गोला थाने के सिपाही विशाल गौतम और पंकज कुमार दोनों भाइयों के घर पहुंचते हैं. कहते हैं तुम दोनों के खिलाफ लखनऊ की कोर्ट से गैर जमानती वारंट जारी हुआ है साथ में चलो. दोनों भाई दलील देते हैं कि उन्हें तो पता ही नहीं कि उनके ऊपर कोई केस चल रहा है, उनका लखनऊ से कोई लेना-देना नहीं है फिर कौन सा केस, कैसा वारंट. लेकिन पुलिस के आगे किसकी चलती है. दोनों सिपाही कोर्ट का एनबीडब्ल्यू दिखाकर प्रेमचंद और मुन्नालाल को गिरफ्तार कर लखनऊ के सिविल जज जूनियर डिवीजन के कोर्ट में खड़ा कर देते है.

अब कहानी यहीं से शुरू होती है. कोर्ट में जब दोनों भाइयों को पेश किया जाता है तो पता चलता है कि उनके खिलाफ तो कोई वारंट जारी ही नहीं हुआ. गोला थाने के दोनों सिपाहियों ने NBW दिखाया तो पता चला 12 अप्रैल को NBW जारी हुआ है. 15 अप्रैल को स्पीड पोस्ट से एसपी लखीमपुर खीरी को भेजा गया है. सिविल जज के कार्यालय में फाइलों को पलटा गया तो पता चला जिस दिन, 12 अप्रैल को कोर्ट से गैर जमानती वारंट जारी होना बताया गया उस दिन तो कोर्ट में महीने के दूसरे शनिवार की छुट्टी थी तो कोई वारंट जारी होने का सवाल ही नहीं उठता. वारंट पर जिसके दस्तखत थे वह पीठासीन अधिकारी के दस्तखत से मेल नहीं खा रहे थे. वारंट पर लिखावट किसी भी कर्मचारी से मेल नहीं खा रही थी और इससे बड़ी बात, एनबीडब्ल्यू जिन केस,लखनऊ के निगोहा थाने में दर्ज केस 345/ 24 और हजरतगंज के 25 /24 के लिए जारी हुए, उनका कोर्ट में कोई केस ही नहीं था.

दरअसल निगोहा थाने के जिस क्राइम नंबर 345/24 का वारंट जारी हुआ उस निगोहा थाने में साल 2024 में कुल केस ही 245 दर्ज हुए तो 345 नंबर की एफआईआर का जिक्र फर्जी किया गया. वहीं हजरतगंज के 25/24 की एफआईआर ट्रैफिक के सब इंस्पेक्टर सुधीर बाबू ने उन 25 वाहनों पर दर्ज कराई थी जो ओवर स्पीडिंग करने से बाज नहीं आ रहे थे और जिनका 15 जनवरी 2024 से 21 जनवरी 2024 के बीच कई बार चालान भी किया गया था.

गोला थाने के सिपाही वारंट के साथ-साथ जिस स्पीड पोस्ट के लिफाफे से वारंट पहुंचा था उसको भी लेकर गए थे. स्पीड पोस्ट के लिफाफे से पता चला कि 12 अप्रैल के जारी फर्जी गैर जमानती वारंट को 15 अप्रैल 2025 को दोपहर 3:08 पर स्पीड पोस्ट किया गया था. लेकिन कोर्ट के डाक रजिस्टर में 15 अप्रैल को कोई डाक भेजी ही नहीं गई.

कोर्ट से कोई वारंट जारी नहीं था तो दोनों भाइयों को छोड़ दिया गया. लेकिन लखनऊ जूनियर डिवीजन के क्लर्क शुभम कुमार की तरफ से लखनऊ की वजीरगंज कोतवाली में जालसाजी और फर्जी दस्तावेज तैयार करने की एक FIR जरूर दर्ज करवा दी गई है. डीसीपी पश्चिमी विश्वजीत श्रीवास्तव का कहना है हम स्पीड पोस्ट जिस डाकघर से की गई है वहां के सीसीटीवी खंगाल रहे हैं. स्पीड पोस्ट की टाइमिंग के आधार पर संदिग्धों की पहचान की जा रही है. पीड़ित दोनों भाइयों से भी पूछा जा रहा है कि आखिर किसने उनको फंसाने के लिए ऐसी जलसाजी की है. जल्द आरोपियों की गिरफ्तारी की जाएगी.

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