नगालैंड से रायपुर के लिए लेकर निकले दो हिमालयन भालू, एक ही पहुंचा जंगल सफारी

रायपुर। नगालैंड के दीमापुर जू और नंदनवन जंगल सफारी के बीच वन्यजीवों की अदला-बदली हुई। एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत यहां से पांच चीतल और दो ब्लैक बैग लेकर दो विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम गई और वापसी में वहां से दो हिमालयन भालू लेकर निकली।

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मगर, टीम सिर्फ एक मादा हिमालयन भालू जंगल सफारी में तीन दिन पहले पहुंची है, जिसे क्वारेंटाइन में रखा गया है। दरअसल, नर हिमालयन भालू की रास्ते में 19 फरवरी को मौत हो गई। इस मौत को लेकर वन विभाग छुपाता रहा है। भालू की मौत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं आई है।

बताते चलें कि टीम दो भालू को लेकर 18 फरवरी को नगालैंड से निकली थी। भालू की मौत हजारीबाग (झारखंड) के पास हुई है। बताया जाता है कि जिस गाड़ी में भालू को लाया जा रहा था, उसे पांच से छह जगहों पर रोका गया।इस दौरान वेटनरी डॉक्टर भी मौजूद थे, फिर भी भालू की मौत हो गई।

वन्यजीव प्रेमियों का कहना है कि मौत डाक्टरों की लापरवाही के चलते हुई होगी। उन्होंने मांग की है कि इस संबंध में जांच-पड़ताल की जानी चाहिए। आखिर रास्ते में भालू की मौत कैसे हुई? यह वन विभाग की लापरवाही भी सामने आ सकती है।

वन्यजीव प्रेमियों में रोष

रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने भालू की मौत को लेकर सवाल खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि वे कौन डॉक्टर थे, जो भालू लेकर आए थे? भालू कैसे मरा, कहां मरा, कब मरा? अगर मरा तो पोस्टमार्टम कहां किया गया? पोस्टमार्टम गोपनीय तरीके से क्यों किया गया? पोस्टमार्टम में सिविल सोसायटी का प्रतिनिधि कौन था?

दोनों डॉक्टरों में से एक डॉक्टर को किसका संरक्षण मिला है कि जिसे सदन में हटाने का आदेश होने के बावजूद भी हटाया नहीं गया है। सिंघवी ने आरोप लगाया कि लापरवाही से वन्य जीवों की हो रही मौतों से वन विभाग कभी सबक नहीं लेगा।

अभी हाल ही में बारनवापारा अभयारण्य से डाक्टर की अदूरदर्शिता और नादानी के चलते एक सब-एडल्ट मादा बाइसन को पड़कर अकेले गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व भेजा गया। वहां पहुंचने पर उसकी मौत हो गई, उससे भी कोई सबक नहीं लिया। सिंघवी ने मांग की है कि जंगल सफारी और कानन पेंडारी से सफेद भालू सहित सभी वन्य प्राणियों के एक्सचेंज प्रोग्राम पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए।

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