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वो नियम जिससे पॉलिटिक्स में आने से पहले ही विनेश फोगाट को देना पड़ा रेलवे की नौकरी से इस्तीफा!

अब तक पहलवानी का दंगल लड़ते आ रहे विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया अब सियासी दंगल लड़ेंगे. दोनों ही आज कांग्रेस में शामिल हो गए. विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया ने दो दिन पहले ही कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से मुलाकात की थी.

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माना जा रहा है कि विनेश और बजरंग हरियाणा के विधानसभा चुनाव में लड़ सकते हैं. ऐसी अटकलें हैं कि विनेश को दादरी सीट से टिकट मिल सकता है, जबकि बजरंग को किसी जाट बहुल सीट पर उतारा जा सकता है.

बहरहाल, सियासत में एंट्री से पहले विनेश फोगाट ने रेलवे की नौकरी छोड़ दी. विनेश रेलवे में ओएसडी के पद पर थीं. अपने इस्तीफे का ऐलान करते हुए विनेश ने X पर लिखा, ‘रेलवे की सेवा जीवन का एक यादगार और गौरवपूर्ण समय रहा है. मैं रेलवे परिवार की हमेशा आभारी रहूंगी.’ पर सवाल उठता है कि कांग्रेस में आने से पहले विनेश फोगाट ने रेलवे की नौकरी क्यों छोड़ दी? आखिर वो कौनसा नियम है जो सरकारी नौकरी वालों के चुनाव लड़ने पर रोक लगता है?

 

क्या है नियम?

सरकारी अफसर या कर्मचारियों के न सिर्फ चुनाव लड़ने, बल्कि किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधि में शामिल होने तक पर रोक है.

केंद्र सरकार के अफसरों और कर्मचारियों पर सेंट्रल सिविल सर्विसेस (कंडक्ट) रूल्स, 1964 के तहत चुनाव लड़ने पर रोक है. इसमें नियम 5 में ये प्रावधान किया गया है. इसके तहतः-

– कोई भी सिविल सर्वेंट किसी भी राजनीतिक पार्टी या संगठन का न तो हिस्सा होगा, न ही राजनीति से जुड़ेगा और न ही किसी तरह से किसी राजनीतिक आंदोलन या गतिविधि से जुड़ेगा.

– ये हर सरकारी कर्मचारी की जिम्मेदारी है कि वो अपने परिवार के सदस्य या सदस्यों को किसी राजनीतिक आंदोलन या गतिविधि में शामिल नहीं होने देगा. अगर फिर भी ऐसा होता है तो सरकारी कर्मचारी को इस बात की जानकारी सरकार को देनी होगी.

– कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी राजनीतिक व्यक्ति के लिए न तो प्रचार करेगा और न ही अपने प्रभाव का इस्तेमाल करेगा.

राज्य सरकार के कर्मचारियों पर क्या नियम?

जिस तरह से केंद्र सरकार के अफसरों और कर्मचारियों के चुनाव लड़ने या राजनीतिक गतिविधि में शामिल होने की मनाही है, उसी तरह राज्य सरकार के कर्मचारियों और अफसरों के लिए भी यही नियम है.

राज्य सरकार के अफसर या कर्मचारी भी न तो चुनाव लड़ सकते हैं और न ही किसी तरह की राजनीतिक गतिविधि में शामिल हो सकते हैं. इसके लिए हर राज्य के अलग-अलग सिविल रूल्स हैं.

कोई भी सरकारी कर्मचारी राजनीतिक रैली में भी शामिल नहीं हो सकता. अगर किसी राजनीतिक रैली में उसकी ड्यूटी लगती है तो वो वहां न तो भाषण दे सकता है, न ही नारे लगा सकता है और न ही पार्टी का झंडा उठा सकता है.

वहीं, हरियाणा का सिविल सर्विस कंडक्ट रूल्स 2016 राज्य सरकार के कर्मचारियों के किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल होने और चुनाव लड़ने पर रोक लगाता है.

फिर क्या तरीका है?

साफ है कि कोई भी सरकारी अफसर या कर्मचारी पद पर रहते हुए तो चुनाव नहीं लड़ सकता. वो तभी चुनाव लड़ सकता है जब या तो उसने पद से इस्तीफा दे दिया हो या फिर रिटायर हो गया हो.

हालांकि, कभी-कभी अदालतें पद पर रहते हुए भी चुनाव लड़ने की इजाजत दे देती हैं. पिछले साल राजस्थान हाईकोर्ट ने दीपक घोघरा नाम के सरकारी डॉक्टर को विधानसभा चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी थी. हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर दीपक चुनाव हार जाते हैं तो दोबारा ड्यूटी ज्वॉइन कर सकते हैं. दीपक ने भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) के टिकट पर डुंगरपुर सीट से चुनाव लड़ा था, जिसमें वो हार गए थे.

कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर हुई थी. इसमें मांग की गई थी कि रिटायरमेंट या इस्तीफे के तुरंत बाद सरकारी अफसर या कर्मचारी को चुनाव लड़ने की मंजूरी न दी जाए. रिटायरमेंट या इस्तीफे और चुनाव लड़ने के बीच कुछ गैप होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था.

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