दिल्ली के नॉर्थ ईस्ट इलाके में फरवरी 2020 में हुए दंगों से संबंधित मामले में आरोपी उमर खालिद ने दिल्ली पुलिस की FIR को मजाक करार दिया है। कड़कड़डूमा कोर्ट में उमर खालिद और उनके वकील ने आरोपों को गलत और पक्षपातपूर्ण बताया। उनका कहना है कि FIR में कोई ठोस सबूत नहीं हैं और इसे सिर्फ फंसाने के लिए तैयार किया गया है।
सीनियर एडवोकेट त्रिदीप पाइस ने कोर्ट में कहा कि UAPA के तहत दर्ज FIR संख्या 59/2020 में कोई कानूनी पवित्रता नहीं है और यह अन्य FIR के मामलों से अलग तरीके से पेश किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि FIR में लगाए गए आरोप किसी सबूत या गवाहों पर आधारित नहीं हैं। उनका तर्क है कि ये आरोप पुलिस द्वारा गढ़े गए हैं ताकि कुछ निर्दोष लोगों को फंसाया जा सके।
उमर खालिद ने आरोप लगाया कि पुलिस का पक्षपात स्पष्ट है। उनके अनुसार, कई FIR में उन्हें और अन्य आरोपियों को बिना किसी संबंध के फंसाया जा रहा है। वकील त्रिदीप पाइस ने कहा कि यह रिवर्स इंजीनियरिंग के जरिए आरोप तय करने की कोशिश है, जिसमें पहले यह तय किया गया कि किसे फंसाना है और फिर उसके लिए झूठे सबूत तैयार किए गए।
त्रिदीप पाइस ने नवंबर 2020 की सप्लीमेंट्री चार्जशीट का हवाला देते हुए कहा कि उसमें दर्ज आरोपों का कोई आधार नहीं है। न तो गवाहों के बयान हैं और न ही कोई बरामदगी। उन्होंने कहा कि पुलिस द्वारा फैलाई गई बातें पूरी तरह से झूठी और आधारहीन हैं। उन्होंने 2016 के एक मामले का भी जिक्र किया, जिसमें खालिद पर अपमानजनक शब्द इस्तेमाल करने के आरोप थे, लेकिन चार्जशीट में यह साफ लिखा गया कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया।
कोर्ट में बताया गया कि उमर खालिद और अन्य सह-आरोपी शरजील इमाम, अतहर खान, खालिद सैफी, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, मीरान हैदर, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद को भी जमानत नहीं दी गई। अदालत ने कहा कि प्रारंभिक जांच में इन आरोपियों की भूमिका गंभीर रही और उन्होंने समुदाय के सदस्यों को लामबंद करने के लिए भड़काऊ भाषण दिए।
इस मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी। उमर खालिद की गिरफ्तारी 13 सितंबर 2020 को हुई थी और हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने जमानत देने से इनकार किया था, जिसका वह सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे चुके हैं।