मंदसौर जिले में दशहरे पर अनूठी और प्राचीन परंपराएं आज भी जीवित हैं। जिले के खानपुरा क्षेत्र में रावण की लगभग 500 साल पुरानी प्रतिमा को नामदेव छीपा समाज जमाई राजा मानकर पूजा-अर्चना करता है। मान्यता है कि रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका इसी क्षेत्र में था, इसलिए रावण को यहां सम्मानपूर्वक पूजनीय माना जाता है।
दशहरे के दिन सुबह ढोल-ढमाके के साथ रावण प्रतिमा स्थल पर पूजा की जाती है। इस दौरान लोग रावण बाबा से क्षेत्र में बीमारी और महामारी से सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं और पैर में लच्छा बांधते हैं। बुजुर्ग महिलाएं प्रतिमा के सामने से गुजरते समय घूंघट निकालती हैं, जो परंपरा का हिस्सा है। शाम को गोधूलि वेला में माफी मांगकर प्रतीकात्मक वध किया जाता है। पटाखों की लड़ जलाकर रावण के दंभ का अंत किया जाता है।
इसी प्रकार ग्राम धमनार में भी दशहरे के दिन राम-रावण सेना के बीच वाकयुद्ध आयोजित किया जाता है। यहां युवक रावण तक पहुंचकर उसके नाक पर मुक्का मारकर प्रतीकात्मक अंत करते हैं। इस दौरान दोनों तरफ से जलते हुए टोपले फेंके जाते हैं, जिससे उत्सव में रोमांचक दृश्य बनता है।
खानपुरा में रावण को जमाई राजा मानने की परंपरा लगभग पांच सौ वर्षों से चली आ रही है। नामदेव छीपा समाज इसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्व देता है। लोग मानते हैं कि रावण बाबा की पूजा करने से क्षेत्र में सुख-शांति बनी रहती है और लोग इसे आज भी श्रद्धा और भक्ति के साथ निभाते हैं।
इतिहासकार मंदोदरी के मंदसौर से संबंध को लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं देते, लेकिन परंपरा और स्थानीय मान्यताओं के कारण यह उत्सव विशेष रूप से यहां मनाया जाता है। दशहरे पर होने वाली ये अनूठी परंपराएं न केवल सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखती हैं, बल्कि समुदाय में उत्साह और भाईचारे की भावना को भी मजबूत करती हैं।