उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में टमाटर की खेती इस बार किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हुई है. किसानों का कहना है कि टमाटर की कीमतें ₹1-2 प्रति किलो तक आ गई हैं. मंडियों तक पहुंचाने में भी घाटा हो रहा है.
उत्तर प्रदेश के इटावा के किसानों के लिए इस बार टमाटर की खेती घाटे का सौदा साबित हुई है. खेतों में लहलहाती टमाटर की फसल को किसान खुद ही ट्रैक्टर चलाकर उजाड़ रहे हैं. कारण है, मंडियों में गिरी टमाटर की कीमतें, जो 1 से 2 रुपये प्रति किलो तक आ चुकी हैं.
भरथना क्षेत्र के सरैया, रामायन, नगला हरलाल, भोली, मोढी और कुनेठी गांवों में इस बार बड़ी मात्रा में टमाटर की खेती की गई थी. यहां के टमाटर दिल्ली, आगरा, कानपुर और मध्य प्रदेश तक भेजे जाते हैं. लेकिन इस बार उत्पादन तो अच्छा हुआ, पर उचित दाम नहीं मिले. खेतों में मेहनत रंग लाई, पर मंडियों में टमाटर बेचना घाटे का सौदा बन गया.
टमाटर की फसल को ट्रैक्टर से उजाड़ा
किसानों का कहना है कि मंडी में टमाटर के दाम इतने गिर गए कि फसल लादकर ले जाना भी घाटे का कारण बन गया. मजबूरी में कई किसानों ने अपनी खड़ी फसल को ट्रैक्टर से जोत दिया. किसानों ने यह तक कहा कि टमाटर मुफ्त में ले जाने की अपील की गई थी, लेकिन जब कोई नहीं आया तो फसल को जोतने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा.
पूर्व ग्राम प्रधान और सेवानिवृत्त फौजी इंद्रेश बाबू शाक्य कहते हैं, एक बीघा में टमाटर की खेती पर दस से पंद्रह हजार रुपये का खर्च आता है, लेकिन जब बिक्री ही न हो, तो किसान जाए तो कहां. सरकार से सब्सिडी और सहायता की बातें बहुत होती हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं मिलता.
किसानों ने सुनाया दर्द
किसान राजवीर कुशवाह ने कहा, हम पहले से ही कर्ज में डूबे हैं, अब टमाटर की बर्बादी ने हालात और बदतर कर दिए हैं. सरकार के पास सब्जी उत्पादकों के लिए कोई स्थायी नीति नहीं है. इसी वर्ष की शुरुआत में फूलगोभी की फसल को भी किसानों को खेत में जोतना पड़ा था. बार-बार फसलों की इस तरह की बर्बादी ने किसानों को आर्थिक और मानसिक संकट में डाल दिया है