सहारनपुर: हाल ही में एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई जिसमें समाजवादी पार्टी के कुछ नेता नई दिल्ली स्थित संसद भवन के सामने वाली एक मस्जिद में बैठक करते नज़र आए. इस बैठक की अहम बात यह थी कि उसमें कुछ महिलाएं भी शामिल थीं. यह मस्जिद रामपुर से सांसद और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मौलाना मुहीबुल्लाह नदवी की इमामत के अंतर्गत आती है. तस्वीर वायरल होते ही राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज़ हो गई और एक बार फिर “मस्जिद और राजनीति” को लेकर बहस छिड़ गई.
इस बहस ने तब और उग्र रूप ले लिया जब टीवी डिबेट्स में अक्सर दिखाई देने वाले मौलाना साजिद रशीदी ने डिंपल यादव को लेकर एक आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी. चूंकि तस्वीर में डिंपल यादव भी मस्जिद में बैठी नज़र आईं, रशीदी की टिप्पणी न केवल एक महिला के सम्मान को ठेस पहुँचाने वाली थी,बल्कि इस्लामी अदब और तहज़ीब के भी खिलाफ़ मानी गई.इस बयान की जमकर आलोचना हुई और देश भर से उलेमा-ए-कराम ने इस पर प्रतिक्रिया दी.
इनमें प्रमुख प्रतिक्रिया देश के जाने माने प्रसिद्ध देवबंदी उलेमा मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा की रही, जिन्होंने स्पष्ट शब्दों में साजिद रशीदी की निंदा की. क़ारी गोरा ने कहा कि “जिस व्यक्ति के नाम के साथ मौलाना जुड़ा हो, उससे ऐसी गैर-शरीयत और गैर-अख़लाक़ी भाषा की उम्मीद नहीं की जा सकती. यह बयान न केवल महिलाओं की तौहीन है, बल्कि मज़हब की बुनियादी तालीमात के भी खिलाफ़ है”.क़ारी इसहाक़ गोरा ने मांग की कि साजिद रशीदी को अपने बयान के लिए न सिर्फ़ महिलाओं से, बल्कि पूरे देश से माफ़ी मांगनी चाहिए, क्योंकि इस बयान से ना केवल मज़हबी तहज़ीब को नुक़सान हुआ है, बल्कि एक महिला नेता को नीचा दिखाने की कोशिश भी की गई है, जो सरासर ग़लत है.यह पूरा मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या धर्म के मंच को सार्वजनिक रूप से अपमानजनक टिप्पणियों के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए? क्या एक महिला का मस्जिद में होना इतना बड़ा मुद्दा है कि उसकी गरिमा को कुचल दिया जाए?उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसे बयानबाज़ी करने वाले लोग ख़ुद को इस्लामी तालीमात के दायरे में रखें, और मस्जिद की पाकीज़गी व महिलाओं की इज़्ज़त का भरपूर ख़याल करें.