बिहार विधानसभा चुनाव का ऐलान होने से पहले ही सियासी पारा बढ़ गया है. केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने गुरुवार को दिल्ली में अपनी पार्टी, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा, का राष्ट्रीय सम्मेलन किया. शुक्रवार को राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पटना के मिलर ग्राउंड में एक बड़ी जनसभा को संबोधित कर बिहार चुनाव की हुंकार भरेंगे.
उपेंद्र कुशवाहा बिक्रमगंज, मुजफ्फरपुर और गया के बाद पटना में रैली कर रहे हैं. यह रैली बिहार में सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाले जगदेव प्रसाद की शहादत दिवस पर रखी गई है. इस तरह उपेंद्र कुशवाहा जगदेव प्रसाद की सियासी विरासत को साधने का दांव चल रहे हैं ताकि कुशवाहा समाज के साथ-साथ दलित और पिछड़ी जातियों के बीच अपनी पैठ जमा सकें.
जगदेव प्रसाद को ‘बिहार का लेनिन’ कहा जाता है, जो कुशवाहा समाज से आते थे. पाँच सितंबर 1974 में जगदेव प्रसाद की मृत्यु हो गई थी. ऐसे में उनके शहादत दिवस पर राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने पटना में ‘परिसीमन सुधार रैली’ कर सियासी संदेश देने के साथ शक्ति प्रदर्शन भी करने जा रहे हैं.
कुशवाहा तलाश रहे सियासी ज़मीन
बिहार की सियासत में उपेंद्र कुशवाहा काफी समय से राजनीतिक ज़मीन तलाश रहे हैं. लोकसभा चुनाव हारने के बाद बीजेपी की मदद से वे राज्यसभा सांसद बने हैं. 2025 का बिहार चुनाव जेडीयू-बीजेपी के एनडीए के साथ मिलकर लड़ रहे हैं, लेकिन अभी तक सीट शेयरिंग नहीं हो सकी है. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा इन दिनों एक के बाद एक रैली करके अपनी सियासी ज़मीन को मजबूत करने के साथ-साथ अपनी बारगेनिंग पावर को भी बढ़ाने में जुटे हैं.
उपेंद्र कुशवाहा की पटना रैली पूरी तरह से संवैधानिक अधिकारों और परिसीमन सुधारों को समर्पित होगी. इस रैली में राज्य के सभी जिलों से पार्टी के कार्यकर्ताओं को बुलाया गया है. यह रैली बिहार के कुशवाहा समाज को एक बड़ा संदेश देने की कोशिश मानी जा रही है, जिसके चलते ही इसे जगदेव प्रसाद के शहादत दिवस पर रखा गया है. पाँच सितंबर को बिहार में शोषित और पीड़ितों के हक की आवाज बुलंद करने वाले कुशवाहा नेता शहीद जगदेव प्रसाद का शहादत दिवस है.
जगदेव प्रसाद कौन हैं?
जगदेव प्रसाद कुशवाहा को सामाजिक न्याय का पुरोधा माना जाता है. वे सामाजिक न्याय की विचारधारा के बड़े नेता थे और गरीब व वंचित समाज की आवाज उठाने के लिए पूरी जिंदगी संघर्ष करते रहे. जगदेव प्रसाद कुशवाहा का जन्म 2 फरवरी 1922 को जहानाबाद में हुआ था. उनकी शहादत 5 सितंबर 1974 को पुलिस की गोली से हुई, जब वे शोषित वर्गों के अधिकारों के लिए एक आंदोलन कर रहे थे.
‘बिहार का लेनिन’
जगदेव प्रसाद का जन्म किसान परिवार में हुआ. उन्होंने अर्थशास्त्र और साहित्य में मास्टर किया था. समाज के गरीब और वंचित तबके के उत्थान के लिए उनकी सोच इतनी प्रखर थी कि उन्हें ‘बिहार का लेनिन’ कहा जाने लगा. बिहार की राजनीति में सवर्ण समाज के वर्चस्व को तोड़ने के लिए दलित-ओबीसी नेताओं को साथ मिलकर ‘त्रिवेणी’ सियासत की नींव रखी थी, जिसमें ओबीसी की तीन जातियों- यादव, कुर्मी और कोईरी समाज को एकजुट किया था.
जगदेव बाबू ने जीवन भर दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की एकता के लिए संघर्ष किया. वे बिहार में पिछड़े वर्ग के बड़े नेता बनकर उभरे. उनका प्रसिद्ध नारा था ‘सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे भाग हमारा है, दस का शासन नब्बे पर नहीं चलेगा’. उनकी राजनीति का आधार यही नारा बना और वे समाज के बड़े हिस्से को एकजुट करने में कामयाब रहे. जगदेव बाबू ने बिहार की राजनीति में जातीय वर्चस्व को तोड़ने में बड़ी भूमिका निभाई.
कुशवाहा समाज को साधने का प्लान
जगदेव प्रसाद सोशलिस्ट पार्टी में बिहार सचिव भी रहे. राज्य में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाने में उनका अहम योगदान माना जाता है. जगदेव प्रसाद के बेटे और पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि खुद को उनका असली राजनीतिक उत्तराधिकारी मानते हैं, लेकिन कुशवाहा समाज से ताल्लुक होने के नाते उपेंद्र कुशवाहा भी अपना दावा करते हैं. यही वजह है कि उपेंद्र कुशवाहा ने जगदेव प्रसाद के शहादत दिवस पर रैली करके उनकी विरासत के साथ-साथ कुशवाहा समाज के वोटों को साधने का दांव माना जा रहा है.
बिहार में 4.21 फीसदी आबादी कुशवाहा समुदाय की है. राज्य के अंदर 55 लाख से अधिक कुशवाहा हैं. हालांकि कुशवाहा जाति के लोग संतुष्ट नहीं हैं और उनका कहना है कि हमारी आबादी और भी अधिक है. कुशवाहा जाति ‘लव-कुश’ समीकरण के चलते एनडीए के साथ इंटैक्ट मानी जाती है, लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान कुशवाहा वोटों के बँटवारे ने एनडीए नेताओं की चिंता बढ़ा दी है. बिहार की करीब 20 से 25 सीटों पर कुशवाहा समुदाय हार-जीत का रोल अदा करता है.
कुशवाहा समाज को अपने सियासी पाले में रखने की रणनीति के तहत ही उपेंद्र कुशवाहा रैली कर रहे हैं. बिहार के विधानसभा चुनाव से पहले कुशवाहा वोटों के सहारे उपेंद्र कुशवाहा अपनी सियासी ताकत को बढ़ाने की कवायद में हैं ताकि सीट शेयरिंग में ज्यादा से ज्यादा सीटों की मोलभाव कर सकें.