मिर्ज़ापुर: होली का पर्व करीब आते ही उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर का भवानीपुर कांड की याद फिर से ताजी हो जाती हैं। आज से दो दशक पहले हुए भवानीपुर कांड को याद कर आज भी लोग सिहर उठते हैं। इस कांड में 16 नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया गया था. इसमें कुछ निर्दोष और एक बालक भी पुलिस की गोली से मारा गया था.
उस दिन 8 मार्च 2001 होलिका दहन का दिन था. भवानीपुर गांव में नक्सलियों के आने की सूचना पुलिस को मिली थी. तब के मड़िहान (अब राजगढ़) थाना क्षेत्र के भवानीपुर गांव के एक कच्चे मकान में नक्सलियों के लिए खाना पकाया जा रहा था, इसी बीच नक्सलियों के आने की सूचना पुलिस को मिल गई। पुलिस ने पहले गांव को चारों तरफ से घेर लिया, फिर नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने को कहा। जब नक्सली इसके लिए तैयार नहीं हुए तो पुलिस ने चेतावनी दी इसके बाद काफी देर तक दोनों तरफ से पुलिस और नक्सलियों के बीच गोली चली। कई घंटों तक पुलिस और नक्सलियों के बीच हुए चली गोली और मुठभेड़ में 16 नक्सली मारे गए थें। उस दिन गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरा भवानीपुर गांव ही नहीं इसकी गूंज मिर्जापुर तक सुनाई दी थी.
भवानीपुर गांव के वाशिंदे जिन्होंने इस मंजर को अपनी आंखों से देखा था वह आज भी उस पल को याद कर सिहर उठते हैं। हालांकि ग्रामीणों को इस बात का आज भी कसक बना हुआ है कि इसमें एक बालक सहित कई निर्दोषों को भी पुलिस की गोली का शिकार होना पड़ा था, जिन्हें आज तक कोई सहायता मिलनी तो दूर है उनकी ओर कोई झांकने तक नहीं गया है.
ग्रामीणों के मुताबिक मिर्जापुर जिले के राजगढ़ विकासखंड अंतर्गत भवानीपुर गांव में 9 मार्च 2001 को दोपहर के तकरीबन 12 बजे नक्सलियों का दल गांव के भगवान दास के घर पहुंचा था। नक्सलियों ने भगवान दास की पत्नी धनपत्ती से खाना बनाकर खिलाएं जाने की बात कहते हुए उनके घर में डेरा डाल दिया था। धनपत्ती ने नक्सलियों के लिए चावल, दाल और लौकी की सब्जी बनाई थी। बताया जा रहा है कि नक्सली खाना खा रहे थे कि इसी दौरान गांव में पुलिस आ धमकती है, और भगवान दास के घर को चारों ओर से घेर लेती है। उस दौर में सोनभद्र मिर्जापुर और चंदौली जनपदों में नक्सलवाद अपने चरमोत्कर्ष पर था, सो इस बार पुलिस पूरी तैयारी से आई हुई थी। पुलिस ने पहले गांव को चारों ओर से घेर लिया, जहां नक्सलियों को हथियार रखकर हाथ ऊपर करके सरेंडर करने के लिए चेताया गया.
पुलिस की गोली से मारे गए थे निर्दोष
बताया जाता है कि, पुलिस के सरेंडर करने को लेकर चेतावनी देने के बाद भी जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई और नक्सलियों ने सरेंडर नहीं किया तो पुलिस ने पूरी तरह से मोर्चा संभाल लिया था। इधर नक्सली भी भगवानदास का घर छोड़कर गांव के अलग-अलग घरों में घुस गए थे. ग्रामीण भय से थर-थर कांपने लगे थे, किसी अनिष्ट की आशंका से सभी सहम उठे थे। भवानीपुर गांव के सुरेंद्र कुमार बताते है कि जिस वक्त नक्सली गांव में आएं हुए थे, उसी दौरान एक घर में सम्पन्न हुए मांगलिक कार्यक्रम के तहत दूर-दराज से उनके तमाम रिश्तेदार शामिल हुए थे। नक्सलियों के तलाश में पुलिस उनके घर में भी घुस आई थी और सभी को घर से बाहर निकलने के लिए कहा था। घर से निकलते समय एक बालक का पैंट नीचे की ओर खिसक गया था। जिसे जैसे ही वह ऊपर की ओर चढ़ाने के लिए नीचे झुका ही था कि पुलिस ने उसे गोली मार दी थी. जिससे उसकी मौत हो गई थी, ग्रामीणों के मुताबिक इस दौरान घंटों तक गोली चलती रही है जिसमें 16 लोगों को मारा गया था.
इस घटना के 24 वर्ष गुजरने के बाद भी होलिका दहन का दिन आते ही ग्रामीणों के आंखों के सामने वह मंजर उसकी यादें तरोताजा हो जाती हैं। आज गांव में काफी कुछ बदलाव हो गया है लेकिन उस ज़ख्म की यादें आज भी हरी भरी बनी हुई हैं, ख़ासकर नक्सलियों से मुठभेड़ में में मारे गए निर्दोष बालक के परिजन आज भी अपने कलेजे के टुकड़े के लिए बिलखते हुए आंसू बहाते हुए आएं हैं, जिन्हें आज तक न्याय नहीं मिला है.