इटावा: उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, सैफई, जो कि एक प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान है और प्रतिदिन इटावा, मैनपुरी, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज, फिरोजाबाद, जालौन और कासगंज सहित 8-10 जिलों से बड़ी संख्या में मरीज इलाज के लिए आते हैं, लगातार मोबाइल चोरी की घटनाओं से जूझ रहा था. विशेष रूप से पुरानी ओपीडी के पांचवें तल पर स्थित पीडियाट्रिक्स विभाग और निचले तल पर स्थित गायनी विभाग में जहां सबसे अधिक भीड़ होती है, वहां से चोरी की शिकायतें लगातार मिल रही थीं. इन घटनाओं के कारण मरीजों और उनके तीमारदारों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था.
पुलिस को मिली सूचना के आधार पर शनिवार रात एक बड़ी सफलता हाथ लगी. पुलिस को जानकारी मिली थी कि किसान बाजार घंटाघर कट के पास दो युवक चोरी के मोबाइल फोन बेचने के इरादे से खड़े हैं. इस सूचना पर त्वरित कार्रवाई करते हुए प्रभारी निरीक्षक राकेश कुमार शर्मा और पीजीआई चौकी इंचार्ज ललित कुमार की टीम ने तत्काल दबिश दी. उन्होंने मौके से दो संदिग्ध युवकों को पकड़ लिया. गिरफ्तार किए गए आरोपियों की पहचान आशीष कश्यप (22), निवासी अहलादपुर थाना करहल, मैनपुरी, और सुरजीत (20), निवासी गीजा थाना सैफई के रूप में हुई.
पूछताछ के दौरान, सुरजीत ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया. उसने बताया कि वह स्वयं विश्वविद्यालय में सफाईकर्मी के रूप में कार्यरत है. इसी पद का फायदा उठाकर वह अपने साथी आशीष के साथ मिलकर वार्डों में सो रहे मरीजों और उनके तीमारदारों के मोबाइल फोन चोरी करता था. पकड़े गए दोनों युवक चोरी किए गए मोबाइलों को सस्ते दामों में बेच दिया करते थे, जिससे उन्हें आर्थिक लाभ होता था. पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से आठ चोरी के मोबाइल फोन बरामद किए हैं, जिनकी कुल अनुमानित कीमत लगभग दो लाख रुपये बताई गई है.
लगातार मिल रही थीं शिकायतें, पुलिस ने बढ़ाई निगरानी
मोबाइल चोरी की घटनाओं की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 25 मई को बकेवर के लखना निवासी जयदीप गुप्ता ने विश्वविद्यालय परिसर से अपना मोबाइल फोन चोरी होने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इसके कुछ ही दिनों बाद, 29 मई को कुरावली निवासी अमित कुमार ने भी इसी तरह की शिकायत दर्ज कराई. इन लगातार हो रही घटनाओं को पुलिस ने गंभीरता से लिया और संदिग्धों पर अपनी निगरानी बढ़ा दी. सीओ रामदवन मौर्य ने थाना परिसर में जानकारी देते हुए बताया कि दोनों आरोपियों के खिलाफ संबंधित धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है और आगे की कानूनी कार्रवाई की जा रही है.
सुरक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल, पहचान के अभाव में सेंधमारी
इस घटना ने विश्वविद्यालय की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. जानकारी के अनुसार, विश्वविद्यालय में करीब 300 सफाई कर्मचारी कार्यरत हैं, लेकिन उनमें से अधिकतर बिना ड्रेस और बिना आईडी कार्ड के काम कर रहे हैं. सफाई व्यवस्था का ठेका लखनऊ की सन फैसिलिटी नामक निजी कंपनी को दिया गया है, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि न तो इस कंपनी का कोई सुपरवाइजर नियमित रूप से यहां तैनात रहता है और न ही कंपनी का कोई प्रतिनिधि मौजूद होता है.
इस स्थिति के कारण, विश्वविद्यालय प्रशासन और सुरक्षाकर्मियों के लिए असली और नकली सफाईकर्मियों की पहचान कर पाना लगभग असंभव हो गया है. सुरक्षा में इस भारी चूक का फायदा उठाकर अपराधी आसानी से परिसर में प्रवेश कर रहे हैं और आपराधिक वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. लोगों का मानना है कि यदि सभी कर्मचारियों की उचित पहचान सुनिश्चित की जाए, उन्हें आईडी कार्ड और ड्रेस कोड का पालन करने के लिए सख्ती से निर्देश दिए जाएं, और उनकी गतिविधियों पर नियमित रूप से निगरानी रखी जाए, तो इस प्रकार की आपराधिक घटनाओं को प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है. यह घटना विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए एक वेक-अप कॉल है ताकि वे अपनी सुरक्षा नीतियों की समीक्षा करें और उन्हें मजबूत करें.