मेरठ: वर्ष 2015 में एक प्राइवेट फर्म द्वारा नगर निगम में संविदा सफाई कर्मचारियों की भर्ती की गई भर्ती के बाद 2017 तक फर्म निगम से तो पैसा लेती रही लेकिन ना तो प्रोविडेंट फंड (पीएफ) जमा किया गया और ना ही कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) लाभ कर्मचारियों को दिया गया. जांच हुई तो नगर निगम ने प्राइवेट फर्म की करीब 3 करोड रुपए की आरसी (वसूली पत्र) भी काट दी मगर बाद में इसे रफा दफा कर दिया गया. कमिश्नर के आदेश पर प्रोविडेंट फंड के असिस्टेंट कमिश्नर ने जब इसकी जांच की तो घोटाला सामने आया तब अस्सिटेंट कमिश्नर ने 7 करोड़ 55 लाख रुपए की आरसी काटकर रिकवरी के लिए प्रोविडेंट फंड विभाग की ही एक टीम का गठन किया था लेकिन आज तक भी घोटाले की सही से जांच नहीं हुई और फर्म पर भी कोई कड़ी कार्यवाही नहीं की गई.
बताते चलें यह घोटाला करने वाली फर्म पर कहीं ना कहीं अधिकारियों की मेहरबानी रही तभी तो इतना बड़ा घोटाला इस प्राइवेट फॉर्म के द्वारा कर दिया गया. कंकरखेड़ा के नटेशपुरम में स्थित अलकनंदा एसोसिएट नाम की फर्म को नगर निगम की तरफ से संविदा पर भर्ती के लिए टेंडर दिया गया. फर्म ने 2215 संविदा सफाई कर्मचारियों को भर्ती कर दिया। नगर निगम ने फर्म को पीएफ ईएसआई समेत कर्मचारियों का वेतन दिया फर्म कर्मचारियों को वेतन तो देती रही लेकिन प्रोविडेंट फंड में कुछ भी जमा नहीं किया गया और ना ही ईएसआई का लाभ दिया गया, इस प्रकरण में सहयोगी सेवा समिति संगठन के सचिव व सामाजिक कार्यकर्ता विनोद कुमार ने 10 अप्रैल 2018 को तत्कालीन कमिश्नर डॉ प्रभात कुमार से पूरे प्रकरण की शिकायत की थी जिसके बाद कमिश्नर ने मामले की जांच के आदेश प्रोविडेंट फंड के असिस्टेंट कमिश्नर नितिन उत्तम को सौंप दिए थे जांच पूरी नहीं होने के बाद असिस्टेंट कमिश्नर ने 7.55 करोड रुपए की आरसी काट दी, साथ ही प्रोविडेंट फंड विभाग की रिकवरी के लिए एक टीम भी बना दी जिसका नोडल अधिकारी एक इंस्पेक्टर को बनाया गया. शिकायतकर्ता विनोद कुमार का कहना है कि उनकी शिकायत पर नगर निगम ने जांच की इसमें सामने आया कि प्राइवेट फर्म ने लगभग 3 करोड रुपए का घपला किया है जिसके बाद नगर निगम ने तो 3 करोड रुपए की आरसी काटकर तहसील को भेजी थी लेकिन आज तक रिकवरी नहीं हुई। आखिर क्या वजह है जो इस प्राइवेट फर्म पर तमाम अधिकारी मेहरबान है और इतने बड़े घोटाले की रिकवरी भी आज तक नहीं की गई, शिकायतकर्ता को पूरे प्रकरण में कई बार दबाया भी गया लेकिन सूत्रों के मुताबिक नगर निगम के पूर्व स्वास्थ्य अधिकारी की मिली भगत कहीं ना कहीं इसमें उजागर होती नजर आई है.
नगर निगम में 10 साल पहले हुए पीएफ घोटाले में एक बार फिर से आउटसोर्सिंग एजेंसी अलकनंदा के कारनामे की फाइल खोल कर उस पर कार्यवाही करने का दावा पूर्व नगर आयुक्त अमित पाल शर्मा ने भी किया था उनका कहना था कि यह पुराना मामला है इसकी जांच कराकर मामले में वह कार्यवाही करेंगे लेकिन अमित पाल शर्मा का यहां से तबादला हो गया इसके बाद फिर से एक बार फाइल दब के रह गई नगर निगम में इतने बड़े घोटाले को आज तक भी अधिकारी नजर अंदाज करते आ रहे हैं जबकि सरकार को नगर निगम की तरफ से करोड़ों रुपए का राजस्व नुकसान हुआ है। आखिर क्या वजह है जो अलकनंदा एसोसिएट फ़र्म से इतने बड़े घोटाले की रिकवरी नहीं कराई जा रही। तहसील के अधिकारी भी नगर निगम द्वारा रिकवरी के लिए भेजी गई फाइल को दबाकर बैठ गए हैं जिससे साफ जाहिर होता है कि अलकनंदा एसोसिएट फर्म के मालिक के आगे तमाम अधिकारी नतमस्तक हो चुके हैं और उस पर कार्यवाही करने के मूड में नहीं है.
संविदा कर्मचारियों की भर्ती में हुए घोटाले की अगर हम बात करें तो इसमें कार्यवाही के लिए भी कई बार टीम गठित हो चुकी है लेकिन यह टीम कोई कार्य आखिर क्यों नहीं कर पाती। पूर्व नगर आयुक्त अमित पाल शर्मा ने अपर नगर आयुक्त के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई थी. जिसमें जांच करने का दावा किया गया था लेकिन वह दवा धरातल पर उतरता नजर नहीं आया। क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त नितिन उत्तम ने पीएफ घोटाले में 7.51 करोड़ से अधिक के भुगतान का आदेश भी जारी किया है इसके लिए उन्होंने निगम को 15 दिनों की अवधि दी थी और आदेश में यह भी कहा गया कि यदि नगर निगम संबंधित कंपनी से भुगतान नहीं करा पता है तो वह धनराशि निगम को ही भुगतान करनी होगी. काफी समय से 2215 आउटसोर्सिंग सफाई कर्मचारियों के पीएफ का मामला पीएफ कमिश्नर के स्तर पर विचाराधीन है इन कर्मचारियों को नगर निगम में अलकनंदा एसोसिएट के जरिए नवंबर 2015 से अक्टूबर 2017 तक रखा गया था. पीएफ मत में 2215 कर्मचारियों के खाते में 9 करोड़ 59 लाख 57 हजार 101 रुपए का भुगतान करना था कंपनी ने 2 करोड़ 3 लाख 37 हजार 649 का ही भुगतान किया, जिससे कंपनी पर कुल देनदारी 7 करोड़ 51 लाख 19 हजार 452 रुपए अभी भी बाकी है. लेकिन नगर निगम द्वारा रिकवरी भी नहीं कराई गई .जब निगम निगम ने इसकी फाइल तहसील में रिकवरी के लिए भेजी तो तहसील के तमाम अधिकारी भी इस घोटाले की फाइल को दबाकर बैठ गए और अलकनंदा एसोसिएट को कहीं ना कहीं यही भ्रष्ट अधिकारी लाभ पहुंचा रहे हैं.
नगर निगम के सफाई कर्मचारियों की आपूर्ति में हुए घोटाले में राज्यपाल ने नगर विकास मंत्री को दोषियों के खिलाफ कार्यवाही के लिए पत्र लिखा है ठेकेदार और दोषी अफसर पर कार्रवाई नहीं होने पर हैरत भी जताई गई. मंत्री ने डीएम और नगर आयुक्त से 10 दिन में रिपोर्ट तलब की है दूसरी ओर इस मामले की सीबीआई जांच की मांग भी लगातार उठाई जा रही है.