उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का धराली गांव मंगलवार दोपहर ऐसी भयावह त्रासदी का गवाह बना, जिसे भुलाना मुश्किल है. अचानक पहाड़ से आए पानी और मलबे ने गांव में तबाही मचा दी. देखते ही देखते घर, होटल और बाजार बह गए. इस हादसे में अब तक 6 लोगों के शव बरामद किए गए हैं, जबकि कई लोग अभी भी लापता हैं. राहत और बचाव दल ने 190 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला है. धराली गांव में अचानक आई त्रासदी के लिए खीर गंगा नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में बादल फटने की घटना को मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, लेकिन विशेषज्ञों ने इस दावे पर सवाल उठाए हैं.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के वैज्ञानिक रोहित थपलियाल ने पीटीआई-भाषा से कहा, हमारे पास मौजूद आंकड़े यह संकेत नहीं देते कि यहां बादल फटने की घटना हुई. मंगलवार को उत्तरकाशी में मात्र 27 मिलीमीटर बारिश ही दर्ज की गई, ये आंकड़ा बादल फटने या बाढ़ के लिए तय मानकों के लिहाज से काफी कम है.
जब उनसे पूछा गया कि अगर बादल फटना इसका कारण नहीं है, तो अचानक बाढ़ की वजह क्या हो सकती है, तो थपलियाल ने कहा कि यह विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन का विषय है. उन्होंने दोहराया कि उपलब्ध मौसमीय आंकड़े बादल फटने की पुष्टि नहीं करते.
बादल फटने की वैज्ञानिक परिभाषा
आईएमडी के अनुसार, बादल फटने का मतलब है 20 से 30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में तेज हवाओं और बिजली की चमक के बीच, 100 मिलीमीटर प्रति घंटे से अधिक की बारिश. 2023 में प्रकाशित आईआईटी जम्मू और एनआईएच रुड़की के शोध में इसे 100-250 मिलीमीटर प्रति घंटे की अचानक बारिश बताया गया है, जो अक्सर 1 वर्ग किलोमीटर जैसे बेहद सीमित दायरे में होती है.
क्या है विशेषज्ञों की राय?
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने कहा, धराली के जिस अल्पाइन क्षेत्र से कीचड़ और मलबा ढलान से नीचे आया, वहां बादल फटने की संभावना बहुत कम होती है. अधिक संभावना है कि बर्फ का बड़ा टुकड़ा, कोई विशाल चट्टान गिरने या भूस्खलन के कारण हिमोढ़ (glacial debris) अचानक बह गया हो और बाढ़ आ गई हो. उन्होंने सुझाव दिया कि उपग्रह चित्रों के वैज्ञानिक विश्लेषण के बाद ही आपदा के वास्तविक कारणों की पुष्टि होगी. इसरो से इसके लिए सैटेलाइट इमेज मांगी गई हैं.
जर्नल ऑफ जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया में हाल ही में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, 2010 के बाद उत्तराखंड में अत्यधिक वर्षा और सतही जल प्रवाह की घटनाओं में तेज़ बढ़ोतरी हुई है. 1998-2009 के बीच जहां तापमान बढ़ा और वर्षा कम हुई थी, वहीं 2010 के बाद राज्य के मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों में भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ीं. उत्तराखंड का भूगोल इसे स्वाभाविक रूप से आपदाग्रस्त बनाता है
- खड़ी और अस्थिर ढलानें
- कटाव-संवेदनशील संरचनाएं
- मेन सेंट्रल थ्रस्ट जैसे टेक्टोनिक फॉल्ट (ये सभी मिलकर भूस्खलन और अचानक बाढ़ के खतरे को कई गुना बढ़ाते हैं.)
हालिया अध्ययन और आंकड़े
नवंबर 2023 में नेचुरल हजार्ड्स जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, 2020-2023 के बीच केवल मानसून में 183 आपदाएं दर्ज हुईं, जिनमें 34.4% भूस्खलन, 26.5% आकस्मिक बाढ़ और 14% बादल फटने की घटनाएं थीं. विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र के एटलस के मुताबिक, जनवरी 2022 से मार्च 2025 के बीच हिमालयी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 822 दिन चरम मौसमी घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें 2,863 लोगों की मौत हुई. विशेषज्ञों का मानना है कि प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता में मानवीय हस्तक्षेप की बड़ी भूमिका है. अस्थिर ढलानों पर सड़क निर्माण, वनों की अंधाधुंध कटाई, पर्यटन ढांचे का विस्तार और नदी तटों पर अनियंत्रित बस्तियां इस खतरे को कई गुना बढ़ा रही हैं.