वाराणसी,राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अर्न्तगत फाइलेरिया उन्मूलन हेतु एक दिवसीय जनपद स्तरीय प्रशिक्षण अपर निदेशक, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, वाराणसी मण्डल, वाराणसी सभागार में आयोजित किया गया. प्रशिक्षण में मुख्य रूप से रुग्णता प्रबन्धन एवं दिव्यांगता रोकथाम (एमएमडीपी) विषय पर प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया गया.
इस प्रशिक्षण में अपर निदेशक डॉ एम पी सिंह ने बताया कि लिम्फोडिमा आपकी त्वचा पर दबाव डालता है, जिससे कट, खरोंच और खरोंच जैसी चोटों से संक्रमण होने की संभावना अधिक हो जाती है, संक्रमण लिम्फोडिमा से पीड़ित लोगों के लिए गंभीर चिकित्सीय समस्याएं पैदा कर सकता है, इसलिए लोंगो को इससे अवगत करायें कि त्वचा को स्वच्छ रखने का अभ्यास करके एवं त्वचा की सुरक्षा करके खुद को बचा सकते हैं.
बचाव के उपाय
जिला मलेरिया अधिकारी डॉ एस सी पाण्डेय ने बताया कि मच्छरों से बचाव के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिये. घर के आस-पास व अंदर साफ-सफाई रखें, पानी जमा न होने दें और समय-समय पर रुके हुए पानी में कीटनाशक का छिड़काव करते रहें. इससे बचने के लिए आईडीए अभियान के दौरान दो वर्ष से ऊपर के सभी लोगों को दवा का सेवन करने की आवश्यकता है, दवा के सेवन से फाइलेरिया रोग से बचा जा सकता है. फाइलेरिया के मरीजों को प्रभावित अंग की अच्छी तरह से साफ-सफाई करनी चाहिए, जिससे किसी प्रकार के संक्रमण से मरीज न प्रभावित हो. इसके लिए उन्हें साफ-सफाई और दवा का सेवन नियमित रूप से करना जरूरी है. वर्तमान में जनपद में लिम्फोडिमा फाइलेरियासिस (एलएफ़) के 995 मरीज हैं. इसी वर्ष सभी मरीजों को एमएमडीपी किट वितरित की जायेगी.
बायोलोजिस्ट/प्रभारी फाइलेरिया नियंत्रण इकाई डॉ अमित कुमार सिंह ने बताया कि फाइलेरिया मच्छर जनित रोग है। यह मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होता है. इसे लिम्फोडिमा (हाथी पांव) भी कहा जाता है. इसके प्रभाव से पैरों व हाथों में सूजन, पुरुषों में हाइड्रोसील (अंडकोष में सूजन) और महिलाओं में स्तन में सूजन की समस्या आती है. यह बीमारी न सिर्फ व्यक्ति को दिव्यांग बना देती है बल्कि इस वजह से मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. शुरू में डॉक्टर की सलाह पर दवा का सेवन किया जाये तो बीमारी को बढ़ने से रोक सकते हैं.